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* पुण्यात्पाआँक ससगसे पुण्यका जप्तिक अगमं धनेखर

ब्राह्मणक) कथा « ७७६

[4 ७ ७७००७७७०७७७७७३७७७७४७७७७७७०७०७३५५०००७७७०००७७३५३५३५०० १५७३ ५३७३५.

करके यज्ञ तथा देव-पूजनमें रगे थे। कुछ लोग

जाते हैं--इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। धनेश्वर

नर्मदाके तटपर नृत्य आदि देखता हुआ घूम रहा था।

इतनेपे ही एक काले साँपने उसे काट लिया। यह

व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा। उसे गिरा देख

बहुत-से मनुष्योेनि दयावदा उसको चारों ओरसे बेर लिया

और तुलसीमिश्रित जलके द्वारा उसके मुखपर छीटे देना

आरम्भ किया। देहत्यागके पश्चात्‌ धनेश्वरको यमराजके

दूतेनि बोधा और क्रोधपूर्वक कोड़ोंसे पीटते हुए

वै उसे संयमनीपुरीको ले गये। चित्रगुप्तने घनेश्चरको

(0 \। 9 देखकर उसे बहुत फटकाश और उसने जचपनसे लेकर

ह 4.१

ही भक्त नाच, गान, दान और वाच्चके द्वारा भगवान्‌

विष्णुकी स्तुतिमें सेलग्र धे । धनेश्वर प्रतिदिन घूम-घूमकर

वैष्णवकि दर्शन, स्पर्श तथा उनसे वार्तालाप करता था ।

इससे उसे श्रीविष्णुके नाम सुननेका शुभ अवसर प्राप्त

होता धा । इस प्रकार वह एक मासतक वहाँ रिका रहा |

कर्तिक-त्रतके उद्यापनमें भक्त पुरुषोनि जो श्रीहरिके

समीप जागरण किया, उसको भी उसने देखा । उसके

बाद पूर्णिमाको व्रत करनेवाले मनुष्योनि जो ब्राह्मणों और

गौओंका पूजन आदि किया तथा दक्षिणा ओर भोजन

आदि दिये, उन सबका भी उसने अवल्त्रेकन किया।

तत्पश्चात्‌ सूर्यास्तके समय श्रीशड्भूरजीकी प्रसन्नताके लिये

जो दीपोत्सर्गकी विधि की गयी, उसपर भी धनेश्वरकी

दृष्टि पड़ी। उस तिधिको भगवान्‌ शह्डूरने तीनों पुरोंका

दाह किया था, इसीलिये भक्तपुरुष उस दिन दीपोत्सर्गका

महान्‌ उत्सव किया करते हैं। जो मुझमें और शिवजी

भेद-बुद्धि करता है, उसके सारे पुण्य-कर्म निष्फल हो

मृत्युपर्यन्त जितने दुष्कर्म किये थे, वे सब उन्होंने

| यमराजको बताये।

खित्रगुप्त खोल्के--प्रभो! बचपनसे लेकर

मृत्युपर्यन्त इसका कोई पुण्य नहीं दिखायी देता । यह दुष्ट

~ केवर पापक मूर्तिमान्‌ स्वरूप दीख पड़ता है, अतः इसे

कल्पभर नरकमें पकाया जाय।

यमराज बोले--प्रेतताज ! केवल पार्पोपर हो

दृष्टि रखनेवाले इस दुष्टको मुद्गरोंसे पीटते हुए ले जाओ

और तुरंत ही कुम्भीपाकमें डाल दो।

यपराजकी आज्ञा पाकर प्रेतराज पापी धनेश्वरको ले

चला । मुदगरोंकी मारसे उसका मस्तक विदीर्ण हो गया

था। कुम्भीपाके तेकके खौलनेका खलखल शब्द हो

रहा था। ग्रेतराजने उसे तुरैत ही उसमें डाल दिया । वह

ज्यों ही कुम्भीपाकमें गिरा, तयो हौ उसका तेल ठंडा हो

गया--ठीक उसी तरह, जैसे पूर्वकाले भक्तप्रवर

प्रह्मादको डालनेसे दैत्योंकी जलायी हुई आग बुझ गयी

थी। यह महान्‌ आश्चर्यकी बात देखकर प्रेतरजकों बड़ा

विस्मय हुआ | उसने बड़े वेगसे आकर यह सारा हाल

यमराजको कह सुनाया। प्रेततजकी कही हुई कौतृहल-

पूर्ण बात सुनकर यमने कहा--'आह यह कैसी वात

है !' फिर उसे साथ ले वे उस स्थानपर आये और उस

घटनापर विचार करने कगे । इतनेमें ही देवर्षि नारद

हँसते हुए बड़ी उतावलीके साथ वहां आये । यमराजने

भलीभाँति उनका पूजन किया । उनसे मिलकर देवर्षि

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