उत्तरखण्ड ]
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हो ? अपने आगमनका कारण नताओ । तुमलोगोकि
हिये जो हितकर कार्य होगा, उसे मै अवश्य करूँगा।
अ्रजाओने कहा--ब्रह्मनू ! इस समय महीजित्
नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है। हमल्त्ेग
उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्रकी भाँति पालन
किया है। उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दुःखसे दुःखित हो
हम तपस्या करनेका दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये हैं।
द्विजोत्तम ! राजाके भाग्यसे इस समय हमें आपका दर्शन
मिल गया है। महापुरुषोंके दर्शनसे ही मनुष्योंके सब
कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मुने ! अब हमें उस उपायका
उपदेज्ञ कीजिये, जिससे राजाको पुत्रकौ प्राप्ति हो।
उनकी बात सुनकर महर्षि स्त्ेमदा दो घड़ीतक
ध्यानमप्र हों गये। तत्पश्चात् राजाके प्राचीन जन्मका
वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा--'प्रजाबृन्द ! सुनो--
राजा महीजित् पूर्वजन्ममें मनुष्योंको चूसनेबाला धनहीन
वैज्य था। वह वैद्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया
करता था। एक दिन जेठके शुक्लपक्षमें दश्ममी तिथिको,
जब दोपहरका सूर्य तप रहा था, वह गाँवकी सीमामें एक
जलाइयपर पहुँचा। पानीसे भरी हुई बावली देखकर
वैश्ये वहाँ जल पीनेका विचार किया। इतनेहीमें यहाँ
बछड़ेके साथ एक गौ भी आ पहुँची। वह प्याससे
« भाद्रपद मासकी 'अजा' और "पद्या" एकादक्नीका माहात्म्य +
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व्याकुलः और तापसे पीड़ित थी; अतः बावलीमें जाकर
जल पीने लगी । वैदयने पानी पीती हुई गायको हॉाँककर
दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीया। उसी पाप-कर्मके
कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं। किसी जन्मके
पुण्यसे इन्हें अकण्टक राज्यकी प्राप्ति हुई है।'
प्रजाओंने कहा--मुने ! पुराणमें सुना जाता है
कि प्रायश्चित्तरूप पुण्यसे पाप नष्ट होता है; अतः पुण्यका
उपदेश कीजिये, जिससे उस पापका नादा हो जाय ।
लोमइशजी बोले--प्रजाजनों ! श्रावण मासके
झुकृपक्षमें जो एकादशी होती है, वह 'पुत्रदा'के नामसे
विख्यात है। वह मनोवाज्छित फल प्रदान करनेवाली
है। तुमलोग उसीका त्रत करो ।
यह सुनकर प्रजाओनि मुनिक्रो नमस्कार किया और
नगरमे आकर विधिपूर्वक पुत्रदा एकादज्ीके ब्रतका
अनुष्ठान किया। उन्होंने. विधिपूर्वकं जागरण भी किया
और उसका निर्मल पुण्य राजाकों दे दिया। तत्पश्चात्
रानीने गर्भ धारण किया और प्रसवका समय आनेपर
बलवान् पुत्रको जन्म दिया।
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापसे मुक्तं हो
जाता है तथा इहस्प्रेकमें सुख पाकर् परल्म्रेकमें स्वर्गीय
गतिको प्राप्त होता है।
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भ्राद्रपद मासकी “अजा' और "पद्या' एकादशीका माहात्म्य
युधिष्ठिरने पृषछा-- जनार्दन ! अब मै यह सुनना
चाहता हूँ कि भाद्रपद मासके कृष्णपक्षमें कौन-सी
एकादशी होती है ? कृपया यताइये ।
भगवान् श्रीकृष्ण बोले--राजन् ! एकचितत
द्येक सुनो । भाद्रपद मासके कृष्णपक्षकी एकादशीका
नाम “अजा' है, वह सब पार्पोक् नाङञा करनेवाली बतायी
गयी है । जो भगवान् हृषीकेशक्य पूजन करके इसका
व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
पूर्वकाल हरिश्चदद्र नापक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा
हो गये है, जो समस्त भूमण्डलके स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ
थे । एक समय किसी कर्मका फलभोग प्राप्त होनेपर उन्हें
राज्यसे भ्रष्ट होना पड़ा । राजाने अपनी पती और पुत्रको
ब्रेचा फिर अपनेको भी वेच दिया। पुण्यात्मा होते हुए
भी उन्हें चाण्डालकी दासता करनी पडी । वे मुर्दोंका
कफन छिया करते थे। इतनेपर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्वन्द्र
सत्यसे विचलित नहीं हुए। इस प्रकार चाण्डाल्की
दासता करते उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये । इससे
राजाको बड़ी चिन्ता हुई । वै अत्यन्त दुःखी होकर सोचने
लगे--'क्या करूँ ?. कहाँ जाऊँ ? कैसे मेरा उद्धार
होगा ?' इस प्रकार चिन्ता करते-करते ये शोकके
समुद्रम इन गये । राजाको आतुर जानकर कोई मुनि
उनके पास आये, वे महर्षि गौतम ये श्रेष्ठ ब्राह्मणको