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शिवलिद्ग है, उससे उत्तरायण जानना चाहिये और
शङ्ककर्णको दक्षिणायन। वह उकारे स्थित है।
तदनन्तर पिङ्गला नामक तीर्थ आग्नेय कोणमें
स्थित बताया गया है। सूखी हुई नदी जो असी
नामसे प्रसिद्ध है, उसीको पिङ्गला नाड़ी समझना
चाहिये । उसीके आस-पास लोलार्कतीर्थं विद्यमान
है। इडा नामकी नाडी सौम्या कहीं गयी है।
उसीको वरणाके नामसे जानना चाहिये, जहाँ
भगवान् केशवका स्थान है । इन दोनोकि बीचमें
सुषुम्णा नाडीकी स्थिति कही गयी है । मत्स्योदरीको
ही सुषुम्णा जानना चाहिये। इस महाक्षेत्रको
भगवान् शिव और भगवान् विष्णुने कभी विमुक्त
(परित्यक्त) नहीं किया है और न भविष्ये भी
करेगे । इसीलिये इसका नाम " अविमुक्त" है ।
शुभे! प्रयाग आदि दुस्तर (दुर्लभ) तीर्थसे भी
काशीका माहात्म्य अधिक है, क्योंकि वहाँ
सबको अनायास ही मोक्षकौ प्राति होती है।
निषिद्ध कर्म करनेवाले जो नाना वर्णके लोग
हैं तथा महान् पातकों और पापोंसे परिपूर्ण
शरीरवाले जो घृणित चाण्डाल आदि हैं, उन
सबके लिये बिद्वानोंने अविमुक्तक्षेत्रकों उत्तम
ओषध माना है। वहाँ दुष्ट, अन्ध, दीन, कृपण,
पापी ओर दुराचारी सबको भगवान् शिव अपनी
कृपाशक्तिके द्वारा शीघ्र ही परम गतिकी प्राप्ति
संक्षिप्त नारदपुराण
हैं। कुरुक्षेत्र, हरिद्वार और पुष्करमें भी वह सद्रति
सुलभ नहीं है, जो काशीवासी मनुष्योंको प्राप्त
होती है। वहाँ रहनेवाले प्राणियोंको सब प्रकारसे
तप और सत्यका फल मिलता है, इसमें संशय
नहीं है। काशीपुरीमें रहनेवाले दुष्कर्मी जीव
बायुद्वारा उड़ायी हुई वहाँकी धूलिका स्पशं पाकर
परम गतिकों प्राप्त कर लेते हैं। जो एक मासतक
वहाँ जितेन्दरियभावसे नियमित भोजन करते हुए
निवास करता है, उसके द्वारा भलीभाँति महापाशुपत-
व्रतका अनुष्ठान सम्पन्न हो जाता है। वह जन्म
और मृत्युके भयकों जीतकर परम गतिको प्राप्त
होता है। वह पुण्यमयी नि:श्रेयसगति तथा योगगतिको
पा लेता है। सैकड़ों जन्मोंमें भी योगगति नहीं प्राप्त
करा देते हैं। उत्तरवाहिनी गङ्गा और पूर्ववाहिनी अर र २ '
सरस्वती अत्यन्त पवित्र मानी गयी हैं। वहीं
कपालमोचन है। उस तीर्थमें जाकर जो श्राद्धमें
पिण्डदानके द्वारा पितरोंको तृप्त करेंगे, उन्हें
परम प्रकाशमान लोकोंको प्राप्ति होती है। जो
ब्रह्महत्यारा है, वह भी यदि कभी अविमुन्त क्षेत्र
काशौकी यात्रा करे तो उस क्षेत्रके माहात्म्यसे
उसकी ब्रह्महत्या निवृत्त हो जाती है। जो परम
पुण्यात्मा मानव काशीपुरीमें गये हैं, वे अक्षय,
अजर एवं शरीररहित परमात्मस्वरूप हो जाते