७ + संक्षि
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हाथमें दण्ड और छत्र सुशोभित थे। वे शुक्ल | और बस्त्रोंकी ढेरियां लगवा दीं। इधर भक्तवत्सल
यज्ञोपवीत धारण किये हुए थे। उनके दाँत और
वस्त्र श्वेत थे तथा वे ब्रह्मतेजसे उद्दी्त हो रहे
थे। उन्हें आया देख वसुदेव और देवकीने सहसा
उठकर भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और बैठनेके
लिये रत्लसिंहासन दिया। फिर मधुपर्क, कामधेनु
और अग्निशुद्ध वस्त्र प्रदान करके चन्दन और
पुष्पमालाद्वार उनकी भक्तिभावसहित पूजा की।
इसके बाद यत्लपूर्वक उन्हें मिष्टानि, उत्तम अन्न
और मधुर पिष्टकका भोजन कराया और सुवासित
पानका बीडा दिया। तदनन्तर गर्गजीने बलदेवसहित
श्रीकृष्णको देखकर उन्हें मन-हौ-मन प्रणाम किया
और पतित्रता देवकी तथा वसुदेवजीसे कहा।
गर्गजी बोले-- वसुदेव ! जरा, बलरामसहित
अपने शुद्धाचारी एवं श्रेष्ठ पुत्र श्रीकृष्णकौ ओर
श्रीकृष्णने भी भक्तिपूर्वक देवगणों, मुनीन्द्रो, श्रेष्ठ
सिद्धौ ओर भक्तौका मन-हौ-मन स्मरण किया।
तदनन्तर उस शुभ दिनके प्राप्त होनेपर वे सभी
| उपस्थित हुए । मुनिश्रेष्ठ, बान्धव, बहुत-से नरेश,
देवकन्या नागकन्या राजकुमारियाँ, विद्याधरियाँ
ओर बाजा बजानेवाले गन्धर्व भी आये। ब्राह्मण,
| भिक्षुक, भट्ट, यति, ब्रह्मचारी, संन्यासी, अवधूत
ओर योगीलोग भी पधारे। उस शुभ कर्ममें
स्त्रियोंक भाई- बन्धु, अपने बन्धुओंका समुदाय,
नानाका तथा उनके बन्धुओंका कुटुम्ब-ये सभी
सम्मिलित हुए। फिर भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा,
द्विजवर कृपाचार्य, पत्नी और पुत्रोंसहित धृतरा,
हर्ष ओर शोकमें भरी हुई पुत्रौसहित विधवा
कुन्तो तथा विभिन्न देशोंमें उत्पन्न हुए योग्य राजा
तो देखो । अब इनको अवस्था उपनयन-संस्कारके | और राजकुमार भी आये। नारद! अत्रि, वसिष्ठ,
योग्य हो गयी दै; अतः मेरी इस बातपर | च्यवन, महातपस्वी भरद्वाज, याज्ञवल्क्य, भीम,
ध्यान दो। गार्ग्य, महातपस्वी गर्ग, वत्स, पुत्रसहित धर्म,
वसुदेवजीने कहा -- गुरो ! आप यदुवंशियोंके जैगीषव्य, पराशर, पुलह, पुलस्त्य, अगस्त्य,
पूज्य देव हैं, अतः उपनयनके योग्य ऐसा शुद्ध | सौभरि, सनक, सनन्दन, तीसरे सनातन, भगवान्
एवं शुभ मुहूर्त नियत कीजिये, जो सत्पुरुषोंक | सनत्कुमार, वोदु, पञ्चशिख, दुर्वासा, अङ्गिर,
लिये भी प्रशंसनीय हो। | व्यास, व्यासनन्दन शुकदेव, कुशिक, कौशिक,
गर्गजी बोले-- वसु-तुल्य वसुदेव! परसों | परशुराम, ऋष्यशृङ्ग, विभाण्डक, शृद्गी, वामदेव,
वह शुभ मुहूर्त है; उस दिन चन्द्रमा और तारा गुणके सागर गौतम, क्रतु, यति, आरुणि,
अनुकूल हैं। वह दिन सत्पुरुषोँको भी मान्य है; | शुक्राचार्य, वृहस्पति, अष्टावक्र, वामन, पारिभद्र,
अतः उसी मुहूर्ते तुम उपनयन- संस्कार कर | वाल्मीकि. पैल, वैशम्पायन, प्रचेता, पुरुजित्,
सकते हो । इसके लिये यल्तपूर्वक सभी सामग्री | भृगु. मरौचि, मधुजित, प्रजापति कश्यप, देवमाता
एकत्रित करो और सभी भाई-बन्धुओंको निमन्त्रण- | अदिति, दैत्यजननी दिति, सुमन्तु, सुभानु, एक,
पत्र भी भेज दो। | कात्यायन, मार्कण्डेय, लोमश, कपिल, पराशर,
गर्गजीके वचन सुनकर वसूपम वसुदेवजीने | पाणिनि, पारियात्र, मुनिवर पारिजात, संवर्त,
सभी जाति-बन्धुओके पास मङ्गल-पत्रिका भेज | उतथ्य, नर, मैं (नारायण), विश्वामित्र, शतानन्द,
दौ । फिर दूध, दही, घी, मधु और गुड़की छोटौ- | जाबालि, तैतिर, योगियों और ज्ञानियोंके गुरु
छोटो मनोहर नदियाँ तैयार करायी और नाना | ब्रह्मंशभूत सान्दौपनि, उपमन्यु, गौरमुख, मैत्रेय,
प्रकारके उपहारोकौ राशि तथा मणि, रत्न, सुवर्ण, | श्रुतश्रवा, कठ, कच, करथ, धर्म भरद्वाज-ये
मुक्ता, माणिक्य, हीरे, अनेक तरहके आभूषण । सभी मुनि शिष्योंसहित वसुदेवजीके आश्रमपर