Home
← पिछला
अगला →

पातालखण्ड ]

7 कक कर्क

« झन्नुप्न आदिका घोड़ेसहित आरण्यक मुनिके आश्रपपर जाना +

:६%%###%****७#*७७७४७०७०७०७७७७००००००७*० ०३६३३ ३५३३३३२५३३३३३०३७७७७

श्रीराम स्मरण करनेमात्रसे सारे पापोंको दूर कर देते है ।*

पूर्वकालकी बात है, मैं तत्त्हज्ञानकी इच्छासे ज्ञानी

ह गुरुका अनुसन्धान करता हुआ बहुत-से तीर्थोमि भ्रमण

नरेशके अश्वकी रंक्षा कर रहे हैं। वे इस समय सब

सामग्रियोंसे युक्त अश्वमेध-यज्ञका अनुष्ठान करनेवाले दै ।

आरण्यक बोले--सब सामप्रियोंको एकत्रित

करके भाँति-भाँतिके सुन्दर यज्ञोंका अनुष्ठान करनेसे क्या

तभ ? वे तो अत्यन्त अल्प पुण्य प्रदान करनेवाले हैं

तथा उनसे क्षणभ्रुर फलकी ही प्राप्ति होती है। स्थिर

ऐश्वर्यपदको देनेवाले तो एकमात्र रमानाथ भगवान्‌

श्रीरघुवीर ही हैं। जो लोग उन भगवान्‌कों छोड़कर

दूसरेकी पूजा करते हैं, वे मूर्ख हैं। जो मनुष्योंके स्मरण

करनेमात्रसे पहाड़-जैसे पापोंका भी नादा कर डालते हैं,

उन भगवान्‌को छोड़कर मृद मनुष्य योग, याग और व्रत

आदिके द्वारा छदा उठाते हैं। सकाम पुरुष अथवा

निष्काम योगी भी जिनका अपने हृदयमें चिन्तन करते हैं

तथा जो मनुष्योंको मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं, वे भगवान्‌

करता रहा; किन्तु किसीने मुझे भी तत्त्वका उपदेश नहीं

=] दिया । उसी समय एक दिन भाग्यबश मुझे लोमश मुनि

मिल गये। वे स्वर्गल्लेकसे तीर्थयात्राके लिये आये थे।

उन महर्षिको प्रणाम करके मैंने पूछा--'स्वामिन्‌ ! मैं

) इस अद्भुत और दुर्कभ मनुष्य-शरीरकों पाकर भयङ्कर

ॐ भव-सागरके पार जाना चाहता हूँ, ऐसी दशामें मुझे क्या

करना चाहिये?' मेरी यह बात सुनकर वे मुनिश्रेष्

; बोले--'विप्रवर ! एकाग्रचित्त होकर पूर्ण श्रद्धाके साथ

छ: सुनो, संसार-समुद्रसे तरनेके लिये दान, तीर्थ, ब्रत,

=` नियम, यम, योग तथा यज्ञ आदि अनेकों साधन हैं। ये

‡ सभी स्वर्ग प्रदान करनेवाले हैं; किन्तु महाभाग ! मैं

तुमसे एक परम गोपनीय तत्त्वका वर्णन करता हूँ, जो

सब पापौका नादा करनेवाला और संसार-सागरसे पार

उतारनेवाला है। नास्तिक और श्रद्धाहीन पुरुषको इसका

उपदेद् नहीं देना चाहिये । निन्दक, राट तथा भक्तिसे द्वेष

रखनेवाले पुरुषके लिये भी इस तत्त्वका उपदेश करना

मना है। जो काम और क्रोधसे रहेत हो, जिसका चित्त

श्त हो तथा जो भगवान्‌ श्रीरामका भक्त हो उसीके

सामने इस गूढ़ तत्त्वका वर्णन करना चाहिये । यह समस्त

दुःखॉका नाश करनेवात्म सर्वोत्तम साधन है। श्रीरामसे

बड़ा कोई देवता नहीं, श्रीरामसे बढ़कर कोई व्रत नहीं,

श्रीरामसे बड़ा कोई योग नहीं तथा श्रीरामसे बढ़कर कोई

यज्ञ नहीं है। श्रीरामका स्मरण, जप और पूजन करके

मनुष्य परम पदको प्राप्त होता है। उसे इस ल्लेक और

परलोककी उत्तम समृद्धि मिलती है। श्रीरघुनाथजी

सम्पूर्ण कामनाओं और फलोंके दाता हैं। मनके द्वारा

स्मरण और ध्यान करनेपर वे अपनी उत्तम भक्ति प्रदान

करते हैं, जो संसार-समुद्रसे तारनेवाली है । चाण्डाल भी

# मुदो स्त्रे हरि त्यक्त्वा करोत्यन्यसमर्चनम्‌ । रघुवीर

रप्रानाथं स्थिस्श्नर्यपदफ्रदम्‌ ॥

यो नैः स्मृतमाजोउसौ हरते पापपर्वतम्‌ । तै मुक्त्वा क्लिक्षयते मूढो योगसागव्रतादिभिः ॥

सकामैयॉंगिभिरकापि चिन्त्यते कमवर्जितैः । अपवर्गप्रद॑ कृणौ स्मृतमा्रसित्षदम्‌ ॥ (३५। ३६-- ३४)

← पिछला
अगला →