Home
← पिछला
अगला →

4.

* अर्चयस्व इषीकेदो यदीच्छसि परं पदम्‌ +

[ संक्षिप्त पद्मपुराण

&०००+७७७७७+७७०७७०७++७+४७+७+++४७०७०७++७+७#*४**+ ७७७७+७++७*७ 3 +*०००००***००००**$*% »*#७***% »*०»*#* ०» ०» ४ कक ० कक कक कक

राजन्‌ ! जो उस तौर्थमें कपिछा गौका दान करता है, वह

उस गौके तथा उससे होनेवाले गोवंद्ाके द्वारीरमें जितने

रो होते हैं, उतने हजार वर्षोतक रुद्रलोके सम्मान-

पूर्वक रहता है।

तदनन्तर नन्दि-तीर्थमें जाकर वहां लान करे; इससे

उसपर नन्दीश्वर प्रसन्न होते हैं और वह सोमलोके

सम्मानपूर्वक निवास करता है । इसके बाद व्यासती र्थकी

यात्रा करे। व्यासतीर्थ एक तपोबनके रूपमें है।

पूर्वकालमें वहाँ महानदी नर्मदाकों व्यासजीके भयसे

ल्जैटना पड़ा था। व्यासजीने हुंकार क्रिया, जिससे नर्मदा

उनके स्यानसे दक्षिण दिशाकी ओर होकर बहने छगी।

राजन्‌ ! जो उस तोर्थकी परिक्रमा करता है, उसपर

व्यासजो संतुष्ट होते और उसे मनोवाज्छित फल प्रदान

करते हैं। जो मनुष्य परम तेजस्वी भगवान्‌ व्यासकी

प्रतिमाको वेदीसहित सूत्रसे आवेष्टित करता है, वह

अआड्भूरजीकों भाँति अनन्त कालतक शिवल्त्रेकमें बिहार

करता है। इसके बाद एरण्डीतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये,

यह एक उत्तम तीर्थ है। बयं नर्मदा-एरण्डी-संगमक्के

जलमें खान करनेसे मनुष्य सब पातकोंसे मुक्त हो जाता

है। एरण्डी नदी तीनों तरेकप विख्यात और सब पापोंका

नाश करनेवाली है। आश्विन मासमे शुक्ृपक्षकी अष्टमी

तिथिकों वहां पवित्र भावसे खान करके उपवास

करनेवाला मनुष्य यदि एक ब्राह्मणको भी भोजन करा दे

तो उसे एक करोड़ ब्राह्मणॉंकी भोजन करानेका फल प्राप्त

होता है। जो मनुष्य भक्तिभावसे युक्त होकर नर्मदा-

एरण्डी-संगमपै स्नान करता है अथवा मस्तकपर

नर्मदेश्वरकी मूर्ति रखकर नर्मदाके जलसे मिले हुए

एरण्डीके जलमें गोता गाता है, बह सब पापोंसे मुक्त

हो जाता है । राजन्‌ ! जो उस तीर्थकी परिक्रमा करता है,

उसके द्वाया सात ड्रीपोंसे युक्त समूचो पृथ्वीकी परिक्रमा

हो जाती है।

तदनन्तर सुबर्णतिकक नामक तीर्थमें स्नान करके

सुवर्णं दान करे। ऐसा करनेवा्तर पुरुष सोनेके विमानपर

बैठकर रुद्रलोकपें जाता और सम्मानपूर्वक वहां निवास

करता है। उसके बाद नर्मदा और इक्षुनदीके सङ्गमे

जाना चाहिये। यहाँ स्नान करनेसे मनुष्य गणपति-पटको

प्राप्न होता है। तत्पश्चात्‌ स्कन्दतीर्थकी यात्रा करें। वह

सब पापोंका नाश करनेवाला है । वहाँ स्नान करने मात्रसे

जन्मभरका किया हुआ पाप नष्ट हो जाता है। पुनः

यहाँके आइ्रिरस तीर्थे जाकर स्नान करे, इससे एक

हजार गोदानका फल मिलता है तथा रुद्रलोकमें सम्मान

प्राप्त होता है। अङ्गिरस तीर्थसे तमङ्गल तीर्थमें जाना

चाहिये। तह भौ सत्र पापोंका नाश करनेबाला है।

महाराज ! वहाँ जाकर यदि मनुष्य स्नान करे तो सात

जन्मके किये हुए पापोंसे छुटकारा पा जाता है-- इसमें

तनिक भी सन्देह नहीं है। यहाँसे बटेश्वर तीर्थ और

सर्वतीर्थको यात्रा करे । सर्वतीर्थ अत्युत्तम तीर्थ है। वहाँ

स्नान करनेसे सहस्त गोदानका फल मिलता है। उसके

याद सङ्गमेश्वर तीर्थम जाना चाहिये। यह सब पापोंका

अपहरण करनेवाला उत्तम तीर्थ है। बहाँसे भद्गतीर्थमें

जाकर जो मनुष्य दान करता है, उसका वह सारा दान

कोटिगुना अधिक हो जाता है।

तत्पश्चात्‌ अज्ञुरेश्वर तीर्थमें जाकर खान करे । वहाँ

नहानेमात्रसे मनुष्य रुद्रल्मेकमें प्रतिष्ठित होता है, जो

अङ्गारक- चतुर्थीको वहां स्नान करता है, वह भगवान्‌

विष्णुके शासनमें रहकर अनन्त कालतक आनन्दका

अनुभव करता है। अयोनि-सङ्गम-तीर्थमे. जान करनेसे

मनुष्य गर्भम नहीं आता । जो पाण्डवेश्वर तीर्थम जाकर

वहां स्नान करता है, वह अनन्त कालतक सुखी तथा

देवता और असुरोके लिये अवध्य होता है । उत्तरायण

आनेपर कम्बोजकेश्वर तौर्धम जाकर खानं करे । ऐसा

करनेसे मनुष्य जिस वस्तुकी इच्छा करता है, यही उसे

प्राप्त हो जाती है। तदनन्तर चन्द्रभागामें जाकर सान

करे । वहाँ नहानेमान्नसे मनुष्य सोमलोकमें प्रतिष्ठित होता

है। इसके बाद शाक्रतीर्थकी यात्रा करे। वह सर्वत्र

विख्यात, देवराज इन्द्रद्दारा सम्मानित तथा सम्पूर्ण

देवताओंसे भी अभिवन्दित है। जो मनुष्य वहाँ स्नान

करके सुवर्ण दान करता है अथवा नीले रेगका साँड़

छोड़ता है, वह उस साँड़के तथा उससे उत्पन्न होनेबाले

गोवेहके शरौरमें जितने रों होते हैं; उतने हजार बर्षोतक

← पिछला
अगला →