३६ अधर्वदेद् संहिता पाग-९
२२९३. तस्या यमो राजा वत्स आसीद् रजतपात्रम् पात्रम्॥६ ॥
उसके वत्स राजा य हुए और चाँदी का उसका पात्र धा ॥६ ॥
२२९४. तापरन्तको पार्त्यवोऽधोक् तां स्वधामेवाधोक् ॥७ ॥
उसका मृत्यु के अधिष्ठाता देव अन्तक ने दोहन किया तथा उससे स्वधा का भी दोहन किया ॥७ ॥
२२९५. तां स्वधां पितर उप जीवन्त्युपजीवनीयो भवति य एवं वेद ॥८ ॥
स्वधा से पितरगण जौवनयापन करते हैं, जो इस रहस्य के ज्ञाता ह वे जीविकानिर्वाह करने वाले होते हैं ॥८ ।
२२९६. सोदक्रामत् सा मनुष्यारेनागच्छत् तां
पनुष्या३े उपाहवयन्तेरावत्येहीति ॥९ ॥
उस विराट् शक्ति ने पुनः उत्थान किया, तो मनुष्यों के समीप गयी । मनुष्यों ने “हे इरावती /है अन्नवालौ !)
पथारें," ऐसा कहते हुए उसे समीप बुलाया ॥९ ॥
२२९७. तस्या मनुर्वैबस्वततो वत्स आसीत् पृथिवी पात्रम् ॥१० ॥
विवस्वान् के पुत्र मनु उसके वत्सरूप हुए और पृथ्वी पात्ररूप हुई ॥१० ॥
२२९८. तां पृथी वैन्यो 5घोक् तां कृषिं च सस्यं चाधोक्॥१९॥
उसे राजावेन के पुत्र पृथु ने दुहा, उससे कृषि और धान्यं दोहन पे प्राप्त हुए ॥११ ॥
२२९९. ते कृषिं च सस्यं च मनुष्या३ उप जीवन्ति
कृष्टराधिरुपजीवनीयो भवति य एवं वेद ॥१२॥
उस कृषि ओर धान्य से ही मनुष्य जीवन यापन करते हैं । जो इस रहस्य क ज्ञाता है वे कृषि कार्यों में सिद्धहस्त
होकर दूसरे प्राणियों की आजीविका के निवांहक होते है ॥१२ ॥
२३००. सोदक्रामत् सा सप्तऋषीनागच्छत् तां
सप्ततऋषय उपाह्वयन्त ब्रह्मण्वत्येहीति ॥
विराद शक्ति ने पुनः उत्करमण किया और वह सप्तर्षियों के समीप पहुँची । हे ब्रह्मज्ञानवाली ! आप पदार्पण
करें, उसे सप्तर्षियों ने इस प्रकार कहते हुए निकट बुलाया ॥१३ ॥
२३०१. तस्याः सोमो राजा वत्स आसीच्छन्दः पात्रम् ॥१४॥
राजा सोम उस समय उसके वत्सरूप हुए और छन्द पात्ररूप बने ॥१४ ॥
२३०२. तां बृहस्यतिराङ्गिरसो ऽधोक् तां ब्रह्म तपश्चाधोक् ॥९५ ॥
उसका गिरम् कुल में उत्पन्न बृहस्पति ने दोहन किया, उससे ब्रह्म (ज्ञान) और तपः की प्राप्ति हुई ॥१५ ॥
२३०३. तेद् ब्रह्म च तपश्च सप्तऋषय उप जीवन्ति
ब्रह्मवर्चस्युपजीवनीयो भवति य एवं वेद ॥१६॥
तपः और ज्ञान (वेद) से सप्तर्षि जवनयापन करते हैं, जो इस रहस्य के ज्ञाता है वे ब्रह्मवर्चस सम्पन्न होकर
दूसरे प्राणियों की आजीविका का भी निर्वाह करते है ॥१७ ॥