* अग्निपुराण *
दिया जाता है । इसमें आवाहन और अग्नौकरणकी
क्रिया नहीं होती । सब कार्य जनेऊको अपसव्य
रखकर किये जाते हैं। * अक्षय्यमस्तु' के स्थानें
“उपतिष्ठताम्' का प्रयोग करे। "वाजे वाजे०'
इस मन्त्रसे ब्राह्मणका विसर्जन करते समय
“अभिरम्यताम्।' कहे और ब्राह्मणलोग 'अभिरता:
स्मः।'- ऐसा उत्तर दें। सपिण्डीकरण- श्राद्धमें
पूर्वोक्त बिधिसे अर्ध्यसिद्धिके लिये गन्ध, जल
और तिलसे युक्त चार अर्ध्यपात्र तैयार करे।
(इनमेंसे तीन तो पितरोंके पात्र हैं और एक
प्रेतका पात्र होता है।) इनमें प्रेतके पात्रका जल
पितरोंके पात्रोंमें डाले। उस समय "ये समाना०'
इत्यादि दो मन्त्रीका उच्चारण करे। शेष क्रिया
पूर्ववत् करें। यह सपिण्डीकरण और एकोदिष्टश्राद्ध
माताके लिये भी करना चाहिये। जिसका
सपिण्डीकरण-श्राद्ध वर्ष पूर्ण होनेसे पहले हो
जाता है, उसके लिये एक वर्षतक ब्राह्मणको
सान्नोदक कुम्भदान देते रहना चाहिये। एक
वर्षतक प्रतिमास मृत्यु-तिथिको एकोदिप्ट करना
चाहिये। फिर प्रत्येक वर्षमे एक बार क्षयाहतिथिको
एकोदिप्ट करना उचित है। प्रथम एकोद्दिष्ट तो
मरनेके बाद ग्यारहवें दिन किया जाता है। सभी
श्राद्धोमें पिण्डोंकों गाय, बकरे अथवा लेनेकी
इच्छावाले ब्राह्मणको दे देना चाहिये। अथवा उन्हें
अग्निमें या अगाध जलमें डाल देना चाहिये।
जबतक ब्राह्मणलोग भोजन कर्के वहसि उठ न
जाय, तबतक उच्छिष्ट स्थानपर झाड़ू न लगाये।
श्राद्धमे हविष्यान्नके दानसे एक मासतक और
खीर देनेसे एक वर्षतक पितरोंकी तृप्ति बनी
रहती है। भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशीको, विरोषतः
मघा नक्षत्रका योग होनेपर जो कुछ पितरोके
निमित्त दिया जाता है, वह अक्षय होता है । एक
चतुर्दशीको छोडकर प्रतिपदासे अमावास्यातकको
चौदह तिथियोमे श्राद्धदान करनेवाला पुरुष क्रमशः
इन चौदह फलोंको पाता है --रूपशीलयुक्त कन्या,
बुद्धिमान् तथा रूपवान् दामाद, पशु, श्रेष्ठ पुत्र,
द्यूत-विजय, खेतीमे लाभ, व्यापारे लाभ, दो
खुर ओर एक खुरवाले पशु, ब्रह्मतेजसे सम्पन्न
पुत्र, सुवर्ण, रजत, कुप्यक (त्रपु-सीसा आदि),
जातियोंमें श्रेष्ठता ओर सम्पूर्ण मनोरथ । जौ लोग
शस्त्रद्वारा मारे गये हों, उन्हीके लिये उस चतुर्दशी
तिथिको श्राद्ध प्रदान किया जाता है। स्वर्ग,
संतान, ओज, शौर्य, क्षेत्र, बल, पुत्र, श्रेष्ठता,
सौभाग्य, समृद्धि, प्रधानता, शुभ, प्रवृत्त- चक्रता
(अप्रतिहत शासन), वाणिज्य आदि, नीरोगता,
यश, शोकटीनता, परम गति, धन, विद्या, चिकित्सामें
सफलता, कुप्य (त्रपु-सीसा आदि), गौ, बकरी,
भेड़, अश्च तथा आयु--इन सत्ताईस प्रकारके
काम्य पदार्थोंको क्रमशः वही पाता है, जो
कृत्तिकासे लेकर भरणीपर्यन्त प्रत्येक नक्षत्रमें
विधिपूर्वक श्राद्ध करता है तथा आस्तिक, श्रद्धालु
एवं मद-मात्सर्य आदि दोषोंसे रहित होता है।
वसु, रुद्र॒ ओर आदित्य -ये तीन प्रकारके पितर
श्राद्धके देवता है । ये श्राद्धसे संतुष्ट किये जानेपर
मनुष्योंके पितरोंको तृप्त करते हैं। जब पितर तृप
होते हैं, तब वे मनुष्योंकों आयु, प्रजा, धन,
विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सुख तथा राज्य प्रदान
करते हैं॥ २३--४२॥
इस प्रकार आदि आग्नेव महापुराणमें “श्राद्धकल्पका वर्णन” नामक
एक सौ तिरसठवाँ अध्याय यूटा हुआ॥ १4३ #
नन