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हो जाता हैं ।* जो मनुष्य चाण्डाल, गोघाती (कसाई),
पतित, कोढ़ी, महापातकी और उपपातकीके दीख
जानेपर भगवान् सूर्यका दर्शन करते हैं, ये भारी-से-
भारी पापसे मुक्त हो पवित्र हो जाते हैं । सूर्यकी उपासना
करनेमात्रसे मनुष्यको सब रोगेसे छुटकारा मिल जाता
है। जो सूर्यकी उपासना करते हैं, ये इहल्म्रेक और
परल्त्रेकमें भी अंधे, दरिद्र, दुःखी और दोकगरस्त नहीं
होते । श्रीविष्णु ओर शिव आदि देवताओंके दर्शन सब
स्तेगॉंको नहीं होते, ध्यानमें ही उनके स्वरूपका
साक्षात्कार किया जाता है; किन्तु भगवान् सूर्य प्रत्यक्ष
देवता माने गये हैं।
देवता बोले-- ब्रह्मन् । सूर्य देवताको प्रसन्न
करनेके लछिये आराधना, उपासना अथवा पूजा तो दूर
रहे, इनका दर्शन ही प्रबकालकी आगके समान है।
भूतलके मनुष्य आदि सम्पूर्ण प्राणी इनके तेजके प्रभावसे
मृत्युको प्राप्त हो गये। समुद्र आदि जलाशय नष्ट हो
गये। हमल्लेगोंसे भी इनका तेज सहन नहीं होता; फिर
दूसरे ल्लेग कैसे सह सकते हैं। इसल्यये आप ही ऐसी
कृपा करें, जिससे हमल्मेग भगवान् सूर्यका पूजन कर
सकें। सब मनुष्य भक्तिपूर्वक सूर्यदेवकी आराधना कर
सकें--इसके लिये आप ही कोई उपाय करें ।
व्यासजी कहते हैं--देवताओंके वचन सुनकर
ब्रह्माजी ग्रहोंके स्वामी भगवान् सूर्यके पास गये और सम्पूर्ण
जगतूका हित करनेके लिये उनकी स्तुति करने रगे ।
ब्रह्मजी बोले--देव ! तुम सम्पूर्ण संसारके
नेत्रस्वरूप और निरामय हो । तुम साक्षात् ब्रह्मरूप हो ।
तुम्हारी ओर देखना कठिन है। तुम प्रकूयकालकी
अग्नरिके समान तेजस्वी हो। सम्पूर्ण देबताओंके भीतर
तुम्हारी स्थिति है । तुम्हारे श्रीविग्रहमे वायुके सखा अग्नि
निरन्तर विराजमान रहते है । तुम्होंसे अन्न आदिका पाचन
तथा जीवनकी रक्षा होती है । देव ! तुम्हींसे उत्पत्ति और
प्रकूय होते हैं। एकमात्र तुम्हीं सम्पूर्ण भुवनोंके स्वामी
* अर्चयस्व हृधीकेशं यदीच्छति परं पदम् «»
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हो । तुम्हारे बिना समस्त संसारका जीवन एक दिन भी
नहीं रह सकता । तुम्ही सम्पूर्ण छोकोंके प्रभु तथा चराचर
प्राणियोकि रक्षक, पिता और माता हो । तुम्हारी ही कृपासे
यह जगत् टिका हुआ है। भगवन् ! सम्पूर्ण देवताओंमें
तुम्हारी समानता करनेवाल्ग कोई नहीं है । शारीरके भीतर,
बाहर तथा समस्त विश्वमें--सर्वत्र तुम्हारी सत्ता है।
तुमने ही इस जगत्को धारण कर रखा है। तुम्हीं रूप
और गन्धं आदि उत्पन्न करनेवाले हयो । रसो जो स्वाद
है, वह तुम्हींसे आया है। इस प्रकार तुम्हीं सम्पूर्ण
जगतके ईश्वर और सबकी रक्षा करनेवाले सूर्य हो।
प्रभो! तीर्थो, पुण्यक्षेत्रों, यज्ञों और जगतके एकमात्र
कारण तुम्हीं हो। तुम परम पवित्र, सबके साक्षी और
गुणोंके धाम हो। सर्वज्ञ, सबके कर्ता, संहारक, रक्षक,
अन्धकार, कीचड़ और गरोगोंका नाश करनेवाले तथा
दरिद्वताके दु-खोक निवारण करनेवाले भी तुम्हीं हो । इस
लोक तथा परलतेकमे सबसे श्रेष्ठ बन्धु एवं सब कुछ
जानने और देखनेवाले तुम्हीं हो। तुम्हे सिवा दूसरा
कोई ऐसा नहीं है, जो सब स्प्रेकॉंका उपकारक हो ।
आदित्यने कहा--महाप्राज्ञ पितामह ! आप
विश्वके स्वामी तथा स्रष्टा है, शीघ्र अपना मनोरथ
बताइये । मै उसे पूर्ण करूँगा।
ब्रह्माजी बोले-- सुरेधर ! तुम्हारी किरणे अत्यन्त
प्रखर हैं। लोगोंके लिये वे अत्यन्त दुःसह हो गयी
है । अतः जिस प्रकार उनमें कुछ मृदुता आ सके, वही
उपाय करो ।
आदित्यने कहा-- प्रभो! वास्तवमे मेरी
कोरि-कोटि किरणे संसारका विनाश करनेवाली ही दै ।
अतः आप किसी युक्तिद्वारा इन्हें खरादकर कम कर दें ।
तब ब्रह्माजीने सूर्यके कहनेसे विश्वकर्माको बुलाया
और वज़की सान बनवाकर उसीके ऊपर प्रख्यकालके
समान तेजस्वी सूर्यको आरोषित करके उनके प्रचण्ड
तेजकों छाँट दिया। उस कटे हुए तेजसे ही भगवान्
+ सम्ध्योपासनमात्रेण कल्मषात् पूततो चजेत् । (७५॥ १६)