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श्र्द | [ मस्य पुराण

पुरुष ने सभी धर्मो का समादर कर लिया है जिसने इन तीनों ऊपर

बताये हुए धर्मो को पूर्ण कर लिया है जिसने इन तीनों का आदर

नहीं किया है उसकी समस्त अन्य कियायें बिल्कूल ही फलहीन हुआ

करती हैं । जब तक ये तीनों हो जीवित हैं तब तक अन्य किसी का

समाच रण नहों करना चाहिए । जो प्रिय के हित शें रत है उसे उनकी

नित्य ही शुश्र षा करनी चाहिए । उनके अनुपरोधसे जब भी पारतन्त््य

का आचरण करे--वह सब उनको मन वचन ओर कर्म के द्वारा निवे-

दन कर देना चाहिए । पुरुष का इन तीनों में भी पूर्ण कृत्य स्थित रहा

करता है ।११-१४।

कृतेन कामेन निवत्त याशु धर्मा न तेभ्योऽपि हि उच्यते च ।

ममोपरोधस्तव च क्लमः स्यात्तथाऽधुना तेन तव ब्रवीमि ।१५

गुरुप जार तिर्भक्त त्वञ्च साध्वी पतिव्रता ।

विनिवर्तस्व धर्मज्ञ ! ग्लानिर्भवति तेऽधुना । १६

पतिहिं देवतं स्त्रीणां पतिरेव परायणम्‌ ।

अनुगम्यः स्त्रिया साध्व्या पतिः प्राणधनेश्वच रः । १७

मितन्दति हि पिता भितं भ्राता भितं सुतः।

अमितस्य च दातारं भर्तारं कान पूजयेत्‌ ।१८

नीयते यत्र भर्तामे स्वयं वा यत्र गच्छति ।

मयापि तत्र गन्तव्यं यथाशक्ति सुरोत्तम ! । १६

पतिमादाय गच्छन्तमनुगन्तुमहं यदा ।

त्वांदेव ! न हि शक्ष्यामि तदा त्यक्ष्यामि जीवितम्‌ ।२० .

मनस्विनी तु या काचित्‌ वैधव्याक्षरदूषिता।

मुहत्तं मपि जीवेत मण्डनार्हा ह्यमण्डिता ।२१

` कृत काम से अब तुम अति शीघ्र निकृत हो जाओ उनके लिए भी

धर्म: नहींहै- यहे कहा जाताहै । मेरा उपरोध ओर तुम्हारा. क्लम (श्म)

होगा । अब इसी कारण से मैं बोलता हं ।१५। आप तो गुरुवर्ग की

पूजा में रति वाली--भक्त---साध्वी- और परम पतित्रता है | हे धर्मज्ञ

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