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१८

प्रह्मदके चार पुत्र हुए--आयुष्मान्‌, दिवि, वाष्कलि

ओर चौथा विरोचन । विरोचनको बलि नामकं पुत्रकी

प्राप्ति हुई। बल्कि सौ पुत्र हुए । उनमें बाण जेठा था ।

गुणोंमें भी वह सबसे बढ़ा-चढ़ा था । बाणके एक हजार

नहिं थीं तथा वह सब प्रकारके अस्र चलानेकी कल्म्रमें

भी पूरा प्रवीण था। त्रिशूलघारी भगवान्‌ शङ्कर उसकी

तपस्यासे सन्तुष्ट होकर उसके नगरमें निवास करते थे।

बाणासुरको “महाकाल'की पदवी तथा साक्षात्‌

पिनाकपाणि भगवान्‌ शिवकी समानता प्राप्त हु--वह

महादेवजीका सहचर हुआ। हिरण्याक्षके उल्क,

झकुनि, भूतसन्तापन और महाभीम--ये चार पुत्र थे।

इनसे सत्ताईस करोड़ पुत्र-पौत्रोंका विस्तार हुआ । वे सभी

महाबली, अनेक रूपधारी तथा अत्यन्त तेजस्वी थे ।

दनुने कश्यपजीसे सौ पुत्र प्राप्त किये । वे सभी वरदान

पाकर उन्मत्त थे। उनमें सबसे ज्येष्ठ ओर अधिक

बलवान्‌ विप्रचित्ति था । दनुके दोष पुत्रकि नाम स्वर्भानु

और वृषपर्वा आदि थे । खर्भानुसे सुप्रभा और पुलेमा

नामक दानवसे शची नामकी कन्या हुई । मयके तीन

कन्याएँ हूई--उपदानवी, मन्दोदरी और कुहू। वृषपर्वाकि

दो कन्याएँ थीं--सुन्दरी रार्मिषठा ओर चन्द्रा । वैधानरके

भी दो पुत्रियाँ थीं--पुल्मेमा और कालका । ये दोनों ही

बड़ी झक्तिशालिनी तथा अधिक सत्तानोंकी जननी हुईं।

इन दोनोंसे साठ हजार दानवॉकी उत्पत्ति हुई। पुलोमाके

पुत्र पौस्सेम और कालकाके कालखझ (या कालकेय)

कहलाये । अह्याजीसे वरदान पाकर ये मनुष्योंके लिये

अवध्य हो गये थे और हिरण्यपुरमें निवास करते थे;

फिर भी ये अर्जुनके हाथसे मारे गये ।#

विप्रचित्तिने सिंहिकाके गर्भसे एक भयङ्कर पुत्रको

जन्म दिया, जो सैंहिकेय (राहु) के नामसे प्रसिद्ध था।

हिरण्यकदिपुकी बहिन सिंहिकाके कुल तेरह पुत्र थे,

जिनके नाम ये हैं--कंस, र्ख, नल, वातापि, इल्वल,

नमुचि, खसृम, अज्ञन, नरक, कालनाभ, परमाणु,

[ संक्षिप्त पद्यपुराण

कल्पवीर्य तथा दनुवंशविवर्धन । संह्ााद दैत्यके बंझमें

निवातकवचोंका जन्म हुआ | वे गन्धर्व, नाग, राक्षस एवं

सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये अवध्य थे। परन्तु वीरवर

अर्जुनने संग्राम-भूमिमें उन्हें भी बलपूर्वक मार डालर ।

ताम्राने कश्यपजीके बीर्यसे छः कन्याओंको जन्म दिया,

जिनके नाम हैं--शुकी, इयेनी, भासी, सुगृधी, गृधिका

और शुचि । शुकीने शुक और उल्लू नामवाले पक्षियोंको

उत्पन्न किया। श्येनीने इयेनों (बाजों) को तथा भासीने

कुरर नामक पक्षियोंकों जन्म दिया। गृीसे गृध और

सुगृधीसे कबूतर उत्पन्न हुए तथा शुचिने हंस, सारस,

कारण्ड एवं प्लव नामके पक्षियोको जन्म दिया । यह

ताम्राके वेश्का वर्णन हुआ । अब विनताकी सन्तानका

वर्णन सुनो । पक्षियोमि श्रेष्ठ गरुड और अरुण विनताके

पुत्र है तथा उनके एक सौदामनी नामकी कन्या भी है,

जो यह आकाशमें चमकती दिखायी देती है । अरुणके

दो पुत्र हृए-- सम्पाति ओर जटायु । सम्पातिके पुत्रका

नाम बश्रु और ज्ञीघ्रग है । इनमें शीघ्रग विख्यात है ।

जटायुके भी दो पुत्र हुए-- कर्णिकार और दातगामी । ये

दोनो ही प्रसिद्ध थे। इन पक्ियोकि असंख्य पुत्र-

पौत्र हुए।

सुरसाके गर्भसे एक हजार सर्पोंकी उत्पत्ति हुई तथा

उत्तम ब्रतका पालन करनेवाली कड्ूने हजार मस्तकवाले

एक सहस्र नागोंको पुत्रके रूपमें प्राप्त किया। उनमें

छब्बीस नाग प्रधान एवं विख्यात हैं--शेष, वासुकि,

ककॉटक, शङ्ख, ऐराबत, कम्बल, धनञ्गय, महानील,

पद्य, अश्वतर, तक्षक, एलापत्र, महापद्य, धृतराष्ट्र,

बलाहक, रष्कपाल, महारा, पुष्पदन्त, सुभावन,

शङ्खरोमा, नहुष, रमण, पाणिनि, कपिल, दुर्मुख तथा

पतझलिमुख । इन सबके पुत्र-पौत्रोंकी संख्याका अन्त

नहीं है। इनमेसे अधिकौदा नाग पूर्वकालमे राजा

जनमेजयके यञ्च-मण्डपमे जत्र दिये गये । क्रोधवशाने

अपने ही नामके क्रोधवशसंज्ञक राक्षससमूहको उत्पन्न

किया। उनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ें थीं। उनमेंसे दस ल्थख

* यहाँ तथा आगेके प्रसङ्गोम भी पुलस्त्वजी भविष्यकी बात भूतकालकी भाँति कह रहे हैं--यही समझना चाहिये।

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