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* पुराणं परमं पुण्यं भविष्यं सर्वस्रौख्यदय «

[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क

उद्धार हो जाय।

व्यासजीने कहा--'राजन्‌ ! यह मेरा क्षिष्य सुमन्तु

महान्‌ तेजस्वी एवं समस्त शास्त्रोंका ज्ञाता है, यह आपकी

जिज्ञासाको पूर्ण करेगा।' मुनियोने भो इस बातका अनुमोदन

किया । तदनन्तर राजा झतानीकने महामुनि सुपन्तुसे उपदेश

करनेके लिये प्रार्थना की--हे द्विजश्रेष्ठ ! आप कृपाकर उन

पुण्यमयी कथाओं वर्णन करें, जिनके सुननेसे सभी पाप नष्ट

हो जाते हैं और शुभ फल्मेंकी प्राप्ति होती है।

महामुनि सुमन्तु बोले--राजन्‌ ! धर्मदास सबको

पवित्र करनेवाले है। उनके सुननेसे मनुष्य सभी पाफॉसे मुक्त

हो जाता है। बताओ, तुम्हारी क्या सुननेकी इच्छा है ?

राजा झतानीकने कहा--ब्रह्मणदेव ! ये कौनसे

धर्मदास हैं, जिनके सुननेसे मनुष्य पापोंसे मुक्त हो जाता है ।

सुमन्तु मुनि बोले-- राजन्‌ ! मनु, विष्णु, यम, अङ्गिर,

वसिष्ठ, दक्ष, संवर्त, शातातप, पराझर, आपस्तम्ब, उदाना,

कात्यायन, बृहस्पति, गौतम, द्ध, लिखित, हारीत तथा अत्र

आदि ऋषियोंद्वाए रचित मन्यादि बहुत-से धर्मशास्त्र हैं। इन

धर्मशास्त्रेंकों सुनकर एवं उनके रहस्योंको भल्वरभाँति

झदयड्रमकर मनुष्य देवलोकमें जाकर परम आनन्दको प्राप्त

करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

शतानीकने कहा--प्रभों ! जिन घर्मदास््ोको आपने

कहा है, इन्हें मैंने सुना है। अब इन्हें पुनः सुननेकी इच्छा नहीं

है। कृपाकर आप चा वर्णॉके कल्याणके लिये जो उपयुक्त

धर्मशास्त्र हो उसे मुझे बतायें।

सुमन्तु पुनि खोले--हे महाबाहो ! संसारपमें निमप्र

प्राणियोकि उद्धारके छिये अठारह महापुणण, श्रीरामकथा तथा

महाभारत आदि सदूमन्य नौकारूपौ साधन हैँ । अठारह

महापुराणे तथा आठ प्रकारके व्याकरणोको भलीधांति

समझकर सत्यवतीके पुत्र वेदव्यासजीने 'महाभारतसंहिता'की

रचना की, जिसके सुननेसे मनुष्य ब्रह्महत्याके पापोंसे मुक्त हो

जाता है। इनमें आठ प्रकारके व्याकरण ये हैं--ब्राह्म, रेन्र,

याम्य, रौद्र, वायव्य, वारुण, सावित्र्य तथा वैष्णव । ब्रह्म, पद्म,

ब्रह्मवैवर्त, लिद्ग, वाराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड तथा

बरह्याप्ड--ये अठारह महापुराण है । ये सभी चारों वणेकि लिये

उपकारक हैं। इनमेंसे आप क्या सुनना चाहते हैं ?

राजा शतानीकने कहा--हे विप्र ! मैने मह्मभारत सुना

है तथा श्रीरामकथा भी सुनी है, अन्य पुराणोंको भी सुना है, किंतु

भविष्यपुराण नहीं सुना है। अतः विप्रश्नेष्त आप भविष्य-

पुराणक मुझे सुनायें, इस विषयमे मुझे महत्‌ कौतूहल है।

सुमन्तु मुनि बोले- यजन्‌ ! आपने बहुत उत्तम बात

पूछी है । मैं आपको भविष्यपुराणकी कथा सुनाता हूँ, जिसके

श्रवण करनेसे बरह्महत्या आदि बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं

और अश्वमेधादि यज्ञोंका पुण्यफल प्राप्त होता है तथा अन्तमें

सूर्यल्लोककी प्राप्ति होती है, इसमें कोई संदेह नहीं। यह उत्तम

पुराण पहले बऋह्याजीद्ाग कहा गया है। विद्धान्‌ ब्राह्मणको

इसका सम्यक्‌ अध्ययनकर अपने शिष्यों तथा चारों बणेकि

किये उपदेश करना चाहिये । इस पुराणम श्रौत एवं स्मार्त सभी

धममौका वर्णन हुआ है । यह पुराण परम मङ्गलप्रद, सदयुद्धिको

बढ़ानेवाला, यदा एवं कीर्ति प्रदान करनेवात्य तथा

परमपद -- मोक्ष प्राप्त करनेवाल्म है--

डदै स्वस्त्ययनं श्रेष्ठमिदं युद्धिवियर्धनम्‌ ।

ङ्द यक्षस्य सततमिदं निःश्रेयसं परम्‌ ॥

(ब्र्वर्व १३७९)

इस भविष्यमहापुयणमे सभी धर्मोका संनिवेश हुआ है

तथा सभी कमेकिः गुणों और दोषोंके फ्परैका निरूपण किया

गया है। चारौ वर्णो तथा आश्रमोके सदाचारका भी वर्णन

किया गया है, क्योकि "सदाचार ही श्रेष्ठ धर्म है' ऐसा श्रुतियोनि

कहा है, इसलिये ब्राह्मणको नित्य आचारका पालन करना

चाहिये, क्योंकि सदाचारसे विहीन ब्राह्मण किसी भी प्रकार

वेदके फलक प्राप्त नहीं कर सकता। सदा आचारका पालन

कर्नेपर तो वह सम्पूर्ण फलका अधिकारी हो जाता है, ऐसा

कहा गया है। सदाचारको हो मुनियोने धर्म तथा तपस्याओंका

मूलः आधार मारा है, मनुष्य भी इसीका आश्रय लेकर

धघर्माचरण करते हैं। इस प्रकार इस भविष्यमहापुराणमें

आचारका वर्णन किया गया है'। तोन ल्रेकोकौ उत्पत्ति,

६-आचाए: प्रश्पो धर्म: श्रुल्युक्त॥ तरोत्तम । तंस्मादस्मिन्‌ समायुर्ते नत्वे स्छटात्मवान्‌ द्विजः #

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