Home
← पिछला
अगला →

( १६ )

ज्ञान रखने वाला, कृतज्ञ, कर्मेशर, सहिष्ण्‌,, सत्य प्रिय, गृढ़ तत्वों के

विधान का ज्ञाता हो । ऐसे विशिष्ट गुणों से युक्त व्यक्ति को सेनाध्यक्ष

बनाना चाहिए । राजा का दूत ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो दूसरों के

चित्त के भावों को ठीक तरह समझता रहै । वह अपने स्वामी के कथन

के आशय को ठीक ढजु से प्रकट करने वाला, देश भाषा का विद्वान्‌

वाग्मी साहसी ओर देश-काल की परिस्थिति को समझने वाला होना

चाहिये, राजा के अद्भ रक्षक हर तरह से मुस्तेंद, बहादुर, हृढ़ राजभक्त

और घैयेवान्‌ हों संधि ओर विग्रह का निर्णय करने वाला अधिकणं

(विदेश सचिव) नीति शास्त्रों का पंडित, देशभाषाओं का विद्धान्‌,

षड्गुण का ज्ञाता ओर परम व्यवहार कुशल होना चाहिए । आय व्यय

विभाग का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति हो जो देश की उपज से अच्छी तरह

परिचित हो । रसोई घर का अध्यक्ष पाकशास्तव्रके साथ ही चिकित्सा-

शास्त्र का भी पूर्ण ज्ञाता हो ।'"

भमत्स्यपुराण' में राजा के कतेंग्यों और राज्य व्यवस्था का जो

वर्णन किया है उससे विदित होता है कि पुराने जमाने में भी राआओं

का जीवन वैसा सुखद ओर ऐश आराम का न था, जैसा अनजान लोग

कल्पना किया करते हैं। निस्सन्देह्‌ उसके सर पर रत्नजटित मुकुट होता

था वह सोने के सिंहासन पर बैठता था और उसके महल में बीसियों

रानियां और सैकड़ों दास-दासी होते थे, पर उसे सदा प्राणों का खटका

भी बना रहता था । जो राजा इन कतं व्यों की अवहेलना करते ये और

रास-रंग में डूब कर कुशासन करने लगते थे वे प्राय: दूसरे राजाओं के

आक्रमण से नष्ट-भ्रष्ट होजाते थे। इसलिए उस समय शासकों को और

नहीं तो अपनी सुरक्षा के ख्याल से ही प्रजापालन भौर न्‍्यायमुक्त व्यव-

हार का ध्यान रखना पड़ता था, जिससे उनकी स्थिति सुहृढ़ बनी रहे

और वे बाह्य आक्रमणों का मुकाबला सफलता पूर्वक कर सके ।

← पिछला
अगला →