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उत्तरभाग

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करता है अथवा जो श्रद्धापूर्वक इसे सुनता है, वह | आमरण उपवासका त्रत लेकर मर जाता है, वह

मन, वाणी और शरीयदरार होनेवाले पूर्वोक्त दस पापों

तथा सम्पूर्ण दोषोंसे मुक्त हो जाता है। रोगी रोगसे और

विपत्तिका मारा पुरुष विपत्तिसे छुटकारा पा जाता है।

शत्रुओंसे, बन्धनसे तथा सब प्रकारके भयसे भी वह

मुक्त हो जाता है। इस लोकमें सम्पूर्ण कामनाओंको

प्राप्त करता है और मृत्युके पश्चात्‌ परब्रह्म परमात्मामें # £ (> ।

लीन हो जाता है। जिसके घरमे इस स्तोत्रको

लिखकर इसकी पूजा कौ जाती है, वहाँ आग और ~>

चोरका भय नहीं है । वहाँ पापसे भी भय नहीं होता । || | &#*

ज्येष्ठ शुक्ला दशमीको गद्गाजीके जलमें खड़ा होकर | |.

जो इस स्तोत्रका दस बार जप या पाठ करता है, वह

दरिद्र अथबा असमर्थ होनेपर भी बही फल पाता

है, जो पूर्वोक्त विधिसे भक्तिपूर्वक गङ्गाजीकी पूजा

करनेसे प्राप्त होने योग्य बताया गया है। जैसी गौरी

देवीकी महिमा है, वैसी ही गङ्गा देवीकी भी है, अतः

गौरीके पूजनमें जो विधि कहीं गयी है, वही

गङ्गाजीके पूजनके लिये भी उत्तम विधि है। जैसे

भगवान्‌ शिव हैं, वैसे हो भगवान्‌ विष्णु हैं, जैसे

भगवान्‌ विष्णु हैं, वैसी हो भगवती उमा हैं और जैसी

भगवती उमा हैं, वैसी ही गड्जाजी हैं--इनमें कोई भेद

नहीं है। जो भगवान्‌ विष्णु और शिवमें, गङ्गा और

गौरीमें तथा लक्ष्मी और पार्वतीमें भेद मानता है, वह

मूढबुद्धि है। उत्तरायणमें किसी उत्तम मासका शुक्लपश्च

हो, दिनका समय हो और गड्जाजीके तटकी भूमि हो,

साथ ही हृदयमें भगवान्‌ जनार्दनका चिन्तन हो रहा

हो--ऐसी अवस्थामें जो शरीरका त्याग करते हैं, वे

धन्य हैः । विधिनन्दिनी ! जो मनुष्य गज्जामें प्राणत्याग

करते हैं, बे देवताओंद्वारा अपनी स्तुति सुनते हुए

विष्णुलोकको जाते हैं। जो मनुष्य गङ्खके तटपर

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निश्चय ही अपने पितरेके साथ परमधामको प्राप्त होता

है । गङ्खाजीमे मृत्युके लिये दो योजन दूरकी भूमि और

समीपका स्थान दोनों समान हैं। जो मनुष्य गङ्गाम मर

जाता है, वह स्वर्ग और मोक्षको प्राप्त होता है। जो

मानव प्राण-त्यागके समय गङ्गाका स्मरण अथवा

गङ्गाजलका स्पर्श करता है, वह पापी होनेपर भी

'परमगतिको प्रा होता है। जिन धीर पुरुषोंने गड्भाजीके

समीप जाकर अपने शरीरका त्याग किया है, वे

देवताओंके समान हो गये। इसलिये मुक्ति देनेवाले

दूसरे सब साधनोंकों छोड़कर देहपातपर्यन्त गड्भाजीका

ही सेवन करे। जो महान्‌ पापी होकर भी गद्गाके

समीपवर्ती आकाशमें, गड्भातटकी भूमिपर अथवा

गङ्गाजीके जलमें मरा है, वह ब्रह्म, विष्णु ओर शिवके

द्वारा पूजनीय अक्षयपदको प्राप्त कर लेता है। जो

सर्वापत्प्रतिपक्षाय॑ मज़लायै नमो नमः।

०. वि तुभ्यं अल मोप सदा। ग ममा

स्थितिः। त्व

528“

गड्जा मे पार्श्रयोस्तथा॥

गङ्गा ममाग्रतो

^ च सर्वा त्वं गाड़ते शिवे ॥

हि नारायणः प्रभुः। गड्ढे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमो नमः॥

१. शुक्लपदौ दिवा भूमौ

(ना० उत्तर० ४३। ६९-८४)

गङ्गायामुक्तयायणे । धन्या दहं विमुञ्चन्ति हृदयस्थे जनार्दने ॥

(ना० उत्तर० ४३। ९४)

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