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पुनः पूजा करके वहीं देवताके समीप रातमें

जागरण करे।

इस प्रकार प्रतिवर्षं आलस्य छोड़कर पंद्रह

वर्षोतक इस ब्रतका निर्वाह करे! उसके बाद

विधिपूर्वकं ब्रतका उद्यापन करना चाहिये। उस

समय भगवती उमा और भगवान्‌ शद्भूरकी सुवर्णमयी

दो प्रतिमाएँ बनवावे। यथाशक्ति सोने, चाँदी, ताँबे

अथवा मिट्टाके पंद्रह उत्तम कलश स्थापित करे।

वहाँ एक कलशके ऊपर वस्त्रसहित दोनों प्रतिमाओंकौ

स्थापना करनो चाहिये। उन प्रतिमाओंको पश्चामृतसे

स्रान कराकर फिर शुद्ध जलसे नहलाना चाहिये।

तदनन्तर पोडशोपचारसे उनकी पूजा करनी चाहिये।

इसके बाद पंद्रह ब्राह्मणको मिष्टान्न भोजन करावे

और उन्हें दक्षिणा तथा एक-एक कलश दे।

भगवान्‌ शङ्करकी मूर्तिसे युक्त कलश आचार्यको

अर्पण करे । इस प्रकार 'उमामाहे श्वरत्रत' का पालन

करके मनुष्य इस पृथ्वोपर विख्यात होता ह । बह

समस्त ` सम्पत्तियोकौ निधि बन जाता है। उसो

दिन “शक्रब्रत ' का भी विधान किया गया है । उसमें

प्रातःकाल स्नानं करके विधिपूर्वकं गन्ध आदि

उपचारो तथा नैवेद्य-राशियोंसे देवराज इन्द्रकौ

पूजा करे। फिर निमन्त्रित ब्राह्मणको विधिवत्‌

भोजन कराकर वहाँ आवे हुए दूसरे लोगोंको तथा

दीनो और अनार्थोको भी उसी प्रकार भोजन

करावे । विप्रवर ! धन-धान्यकौ सिद्धि चाहनेवाले

राजाको अथवा दूसरे धनी लोगोको प्रतिवर्ष यह

*शकव्रत" करना चाहिये ।

अश्विन मासकौ पूर्णिमाको कोजागरव्रत' कहा

गया है। उसमें विधिपूर्वक स्नान करके उपवास

करे और जितेन्द्रिय भावसे रहे। ताँबे अथवा

मिट्टीके कलशपर वस्त्रसे ढकी हुई सुबर्णमयी

लक्ष्मीप्रतिमाकों स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारोंसे

उनकी पूजा करे। तदनन्तर सायंकालमे चन्द्रोदय

संक्षिप्त नारदपुराण

होनेपर सोने, चाँदी अथवा मिट्टीके घृतपूर्ण एक

सौ दीपक जलावे। इसके बाद घी और शक्कर

मिलायी हुई बहुत-सी खोर तैयार करे और

बहुत-से पात्रोंमें उसे ढालकर चन्द्रमाको चाँदनीमें

रखे। जब एक पहर बीत जाय तो लक्ष्मीजीको

वह सब अर्पण करे। तत्पश्चात्‌ भक्तिपूर्वक ब्राह्मणोंको

वह खीर भोजन करावे और उनके साथ हौ

माङ्गलिक गीत तथा मङ्गलमय कारयोद्रारा जागरण

करे। तदनन्तर अरुणोदय-कालमें लान करके

लक्ष्मौजीकौ बह स्वर्णमयी मूर्तिं आचार्यको अर्पित

करे। उस राते देवौ महालक्ष्मी अपने कर-

कमले वर और अभय लिये निशीथ कालमें

संसारम विचरती हैं और मन-ही-मन संकल्प

कतौ हैं कि "इस समय भूतलपर कौन जाग रहा

है ? जागकर मेरौ पूजामें लगे हुए उस मनुष्यको

मैं आज धन दूँगी।' प्रतिवर्ष किया जानेवाला यह

व्रत लक्ष्मीजौको संतुष्ट करनेवाला है । इससे प्रसन्न

हुई लक्ष्मी इस लोकमें समृद्धि देती हैं और

शरीरका अन्त होनेपर परलोके सद्रति प्रदान

करती हैं। कार्तिककी पूर्णिमाको ब्राह्मणत्वकौ

प्राप्ति और सम्पूर्ण शत्रुओंपर विजय पानेके लिये

कार्तिकेबजीका दर्शन करें। उसी तिधिको प्रदोषकालमें

दीपदानके द्वारा सम्पूर्ण जीवोंके लिये सुखदायक

'त्रिपुरोत्सव' करना चाहिये। उस दिन दीपका

दर्शन करके कौट, पतंग, मच्छर, वृक्ष तथा जल

और स्थलमें विचरनेवाले दूसरे जीव भी पुनर्जन्म

नहीं ग्रहण करते; उन्हें अवश्य मोक्ष होता है।

ब्रह्मन्‌ ! उस दिन चद्रोदयके समय छहों कृत्तिकाओंकी,

खङ्गधारी कार्तिकेबकी तथा वरुण और अग्निकी

गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, प्रचुर नैवेद्य, उत्तम अन्न,

फल तथा शाक आदिके द्वारा एवं होम और

ब्राह्मणभोजनके द्वारा पूजा करनी चाहिये। इस

प्रकार देवताओंकी पूजा करके घरसे बाहर दीप-

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