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स्वामिनी धर्मपत्नी हूँ; ये गोपियाँ, गोप और गोधन मेरे

अधीन हैं--जिनकी मायासे मुझे इस प्रकारकी कुमति घेरे

हुए है, वे भगवान्‌ ही मेरे एकमात्र आश्रय हैं--मैं उन्हींकी

शरणमे हूँ ॥४२॥ जब इस प्रकार यशोदा माता

श्रीकृष्णणा तत्व समझ गयीं, तब सर्वशक्तिमान्‌

सर्वव्यापक प्रभुने अपनी पुत्रसनेहमयी वैष्णवी

योगमायाका उनके हृदयमें संचार कर दिया ॥ ४३ ॥

यशोदाजीको तुरंत वह घटना भूल गयी । उन्होंने अपने

दुलारे लालकों गोदमें उठा लिया । जैसे पहले उनके

हृदयमें प्रेमका समुद्र उमड़ता रहता था, वैसे ही फिर

उमड़ने लगा ॥ ४४॥ सारे वेद्‌, उपनिषद्‌, सांख्य, योग

ओर भक्तजन जिनके माहात्म्यका गीत गाते-गाते अघाते

नही - उन्हीं भगवान््को यशोदाजी अपना पुत्र मानती

थी ॥४५॥

राजा परीक्षिते पृष्ठा - भगवन्‌ ! नन्दबाबाने ऐसा

कौन-सा बहुत बड़ा मङ्गलमय साधन किया था ? और

परमभाग्यवती यशोदाजीने भी ऐसी कौन-सी तपस्या की

थी जिसके कारण स्वयं भगवानने अपने श्रीमुखसे उनका

स्तनपान किया ॥ ४६॥ भगवान्‌ श्रीकृष्णकी वे बाल-

लीलाएँ, जो वे अपने ऐश्वर्य और महत्ता आदिको छिपाकर

ग्वालबालोमें करते हैं, इतनी पवित्र हैं कि उनका

श्रवण-कीर्तन करनेवाले लोगोंके भी सारे पाप-ताप शान्त

हो जाते हैं । त्रिकालदर्शी ज्ञानी पुरुष आज भी उनका

गान करते रहते हैं । वे ही लीलौएँ उनके जन्मदाता

माता-पिता देवकी-वसुदेवजीको तो देखनेतकको न मिलीं

और नन्द-यशोदा उनका अपार सुख लूट रहे हैं इसका

क्या कारण है ? ॥४७॥

श्रीशुकदेवजीने कहा-- परीक्षित्‌ ! नन्दबावा

पूर्वजन्ममें एक श्रेष्ठ वसु थे । उनका नाम था द्रोण ओर

उनकी पत्नीका नाम था धरा । उन्होंने ब्रह्माजीके

आदेशोंका पालन करनेकी इच्छसे उनसे कहा-- ॥ ४८ ॥

"भगवन्‌ ! जब हम पृथ्वीपर जन्म लें, तब जगदीश्वर

भगवान्‌ श्रीकृष्णमें हमारी अनन्य प्रेममवी भक्ति

हो--जिस भक्तिके द्वारा संसारमें लोग अनायास ही

पार कर जाते हैं'॥४९॥ ब्रह्माजीने

कहा--'ऐसा ही होगा ।' वे ही परमयशस्वी भगवन्मय

द्रोण त्रजमें पैदा हुए और उनका नाम हुआ नन्द । और

वे ही धर इस जन्मे यशोदाके नामसे उनकी पत्नी

हुईं ॥ ५०॥ परीक्षित्‌! अब इस जन्मे जन्म-मृत्युके

चक्रसे छुड़ानेवाले भगवान्‌ उनके पुत्र हुए और समस्त

गोप-गोपियोकी अपेक्षा इन पति-पत्नी नन्द और

यशोदाजीका उनके प्रति अत्यन्त प्रेम हुआ॥ ५१॥

ब्रह्माजीकी बात सत्य करनेके लिये भगवान्‌

श्रीकृष्ण बलरामजीके साथ ब्रजमें रहकर समस्त

व्रजवासियोको अपनी बाल-लीलासे आनन्दित करने

लगे ॥५२॥

नवाँ अध्याय

श्रीकृष्णका ऊखलसे बाधा जाना

श्रीशुकदेक्जी कहते है-- परीक्षित्‌ ! एक समय की दूसरे कामोंमें लगा दिया और स्वयं (अपने लालाको

बात है, नन्दगनी यशोदाजीने घरकी दासिर्वोको तो मक्खन खिलानेके लिये) दही मधने लगीं * ॥ १॥

कै इस प्रसङ्गे "एक समय' का तात्पर्य है कार्तिक मास । पुराणोंमें इसे 'दामोदरमास' कहते है । इनद्र-यागके उक्वसरपर दासि्योक दूसरे

कामम लग आना स्कभाविक है । “नियुक्तास--इस पदसे ध्यनित होता है कि यशोदा माताने जान-बूधकर दासियोंको दूसरे कामम लगा दिया ।

"यरोदा' -- नाय उल्लेख करनेका अभिप्राय यह है कि आपने विशुद्ध वात्सल्यप्रेमके व्यवच्छमे षरैधर्यशाली भगवानकों भी प्रेमाधीजता,

भक्तवश्यताके कमण अपने भरक्तोंके हाथों वैध जानेका "य" यही देती हैं । गोपराज नचदके वात्सल्य-प्रेमके आकर्षणसे सब्चिदानद-परमानदस्वरूप

श्ओोभगवान्‌ कन्‍्दतन्दनरूपसे जगतमें अवतीर्ण होकर जगत्‌के लोगोंको आनन्द प्रदान करते है । जगतको इस अप्राकृत परमानन्दका रस्वस्वादन करानेमें

क़दबाया ही कारण है । उन न्दी गृहिणी होनेसे इक्तें 'नत्दगेहिनी' कहा गया है । साथ हो 'नन्द-गेहिनो' और स्वये -ये दो पद इस जातके

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