५७४ [१
# [ अर ९
9.4... 44444... 34
स्वामिनी धर्मपत्नी हूँ; ये गोपियाँ, गोप और गोधन मेरे
अधीन हैं--जिनकी मायासे मुझे इस प्रकारकी कुमति घेरे
हुए है, वे भगवान् ही मेरे एकमात्र आश्रय हैं--मैं उन्हींकी
शरणमे हूँ ॥४२॥ जब इस प्रकार यशोदा माता
श्रीकृष्णणा तत्व समझ गयीं, तब सर्वशक्तिमान्
सर्वव्यापक प्रभुने अपनी पुत्रसनेहमयी वैष्णवी
योगमायाका उनके हृदयमें संचार कर दिया ॥ ४३ ॥
यशोदाजीको तुरंत वह घटना भूल गयी । उन्होंने अपने
दुलारे लालकों गोदमें उठा लिया । जैसे पहले उनके
हृदयमें प्रेमका समुद्र उमड़ता रहता था, वैसे ही फिर
उमड़ने लगा ॥ ४४॥ सारे वेद्, उपनिषद्, सांख्य, योग
ओर भक्तजन जिनके माहात्म्यका गीत गाते-गाते अघाते
नही - उन्हीं भगवान््को यशोदाजी अपना पुत्र मानती
थी ॥४५॥
राजा परीक्षिते पृष्ठा - भगवन् ! नन्दबाबाने ऐसा
कौन-सा बहुत बड़ा मङ्गलमय साधन किया था ? और
परमभाग्यवती यशोदाजीने भी ऐसी कौन-सी तपस्या की
थी जिसके कारण स्वयं भगवानने अपने श्रीमुखसे उनका
स्तनपान किया ॥ ४६॥ भगवान् श्रीकृष्णकी वे बाल-
लीलाएँ, जो वे अपने ऐश्वर्य और महत्ता आदिको छिपाकर
ग्वालबालोमें करते हैं, इतनी पवित्र हैं कि उनका
श्रवण-कीर्तन करनेवाले लोगोंके भी सारे पाप-ताप शान्त
हो जाते हैं । त्रिकालदर्शी ज्ञानी पुरुष आज भी उनका
गान करते रहते हैं । वे ही लीलौएँ उनके जन्मदाता
माता-पिता देवकी-वसुदेवजीको तो देखनेतकको न मिलीं
और नन्द-यशोदा उनका अपार सुख लूट रहे हैं इसका
क्या कारण है ? ॥४७॥
श्रीशुकदेवजीने कहा-- परीक्षित् ! नन्दबावा
पूर्वजन्ममें एक श्रेष्ठ वसु थे । उनका नाम था द्रोण ओर
उनकी पत्नीका नाम था धरा । उन्होंने ब्रह्माजीके
आदेशोंका पालन करनेकी इच्छसे उनसे कहा-- ॥ ४८ ॥
"भगवन् ! जब हम पृथ्वीपर जन्म लें, तब जगदीश्वर
भगवान् श्रीकृष्णमें हमारी अनन्य प्रेममवी भक्ति
हो--जिस भक्तिके द्वारा संसारमें लोग अनायास ही
पार कर जाते हैं'॥४९॥ ब्रह्माजीने
कहा--'ऐसा ही होगा ।' वे ही परमयशस्वी भगवन्मय
द्रोण त्रजमें पैदा हुए और उनका नाम हुआ नन्द । और
वे ही धर इस जन्मे यशोदाके नामसे उनकी पत्नी
हुईं ॥ ५०॥ परीक्षित्! अब इस जन्मे जन्म-मृत्युके
चक्रसे छुड़ानेवाले भगवान् उनके पुत्र हुए और समस्त
गोप-गोपियोकी अपेक्षा इन पति-पत्नी नन्द और
यशोदाजीका उनके प्रति अत्यन्त प्रेम हुआ॥ ५१॥
ब्रह्माजीकी बात सत्य करनेके लिये भगवान्
श्रीकृष्ण बलरामजीके साथ ब्रजमें रहकर समस्त
व्रजवासियोको अपनी बाल-लीलासे आनन्दित करने
लगे ॥५२॥
नवाँ अध्याय
श्रीकृष्णका ऊखलसे बाधा जाना
श्रीशुकदेक्जी कहते है-- परीक्षित् ! एक समय की दूसरे कामोंमें लगा दिया और स्वयं (अपने लालाको
बात है, नन्दगनी यशोदाजीने घरकी दासिर्वोको तो मक्खन खिलानेके लिये) दही मधने लगीं * ॥ १॥
कै इस प्रसङ्गे "एक समय' का तात्पर्य है कार्तिक मास । पुराणोंमें इसे 'दामोदरमास' कहते है । इनद्र-यागके उक्वसरपर दासि्योक दूसरे
कामम लग आना स्कभाविक है । “नियुक्तास--इस पदसे ध्यनित होता है कि यशोदा माताने जान-बूधकर दासियोंको दूसरे कामम लगा दिया ।
"यरोदा' -- नाय उल्लेख करनेका अभिप्राय यह है कि आपने विशुद्ध वात्सल्यप्रेमके व्यवच्छमे षरैधर्यशाली भगवानकों भी प्रेमाधीजता,
भक्तवश्यताके कमण अपने भरक्तोंके हाथों वैध जानेका "य" यही देती हैं । गोपराज नचदके वात्सल्य-प्रेमके आकर्षणसे सब्चिदानद-परमानदस्वरूप
श्ओोभगवान् कन््दतन्दनरूपसे जगतमें अवतीर्ण होकर जगत्के लोगोंको आनन्द प्रदान करते है । जगतको इस अप्राकृत परमानन्दका रस्वस्वादन करानेमें
क़दबाया ही कारण है । उन न्दी गृहिणी होनेसे इक्तें 'नत्दगेहिनी' कहा गया है । साथ हो 'नन्द-गेहिनो' और स्वये -ये दो पद इस जातके