डर८
भूषण
स्वभावसुन्दराङ्गाय नानाशक्त्याश्रयाय ते।
भूषणानि विचित्राणि कल्पवाम्यमरार्चित ॥ ५४॥
देवपूजित प्रभो ! आपके श्रीअड्भ स्वभावसे हौ
परम सुन्दर हैँ । आप नाना शक्तिवोके आश्रय हैं,
मैं आपको ये विचित्र आभूषण अर्पण करता हू ।
गन्ध
परमानन्दसौरभ्यपरिपूर्णदिगन्तरम् ।
गृहाण परमं गन्धं कृपया परमेश्वर ॥५९॥
परमेश्वर! जिसने अपनी परमानन्दमयी सुगन्धसे
सम्पूर्णं दिशाओंको भर दिया है, उस परम उत्तम
दिव्य गन्धको आप कृपापूर्वक स्वीकार करें ।
पुष्प
तुरीयवनसभूतं नानागुणमनोहरम्।
अमन्दसौरभं पुष्यं गृहयतामिदमुत्तमम्॥ ६०॥
प्रभो! तीनों अवस्थाओंसे परे तुरौयरूपौ वने
प्रकर हुए इस परम उत्तम दिव्य पुष्पको ग्रहण
कीजिये। यह अनेक प्रकारके गुणोकि कारण अत्यन्त
मनोहर है, इसकी सुगन्ध कभी मन्द नहीं होती ।
केतकौ, कुटज, कुन्द, बन्धूक (दुपहरिया),
नागकेसर, जवा तथा मालती-ये फूल भगवान्
शङ्कुरको नहीं चढ़ाने चाहिये । मातुलिड्र (विजौरा
नीबू) और तगर कभी सूर्यको नहीं चढ़ावे। दूर्वा,
आक और मदार-ये सब दुर्गाजीको अर्पण न
करे तथा गणेश-पूजनमें तुलसीको सर्वधा त्याग
दे। कमल, दौना, मरुआ, कुश, विष्णुक्रान्ता, पान,
दुर्वा, अपामार्ग, अनार, आँवला और अगस्त्यके
पत्रमे देवपूजा करनी चाहिये । केला, बेर, आँवला,
इमली, विजौरा, आम, अनार, जंबीर्, जामुन और
कटहल नामक वृक्षके फलोंसे विद्वान् पुरुष
देवताकी पूजा करे । सुखे पत्तों, फूलों और फलोंसे
कभी देवताका पूजन न करे । मुने ! आंवला, खैर,
विल्व और तमालके पत्र यदि छिन्न-भिन्न भी हों
संक्षिप्त नारदपुराण
तो विद्वान् पुरुष उन्हें दूषित नहीं कहते। कमल
ओर आंवला तीन दिनोंतक शुद्ध रहता है।
तुलसीदल और बिल्वपत्र-ये सदा शुद्ध होते है ।
पलाश ओर कासके फूलोंसे तथा तमाल, तुलसी,
ओंबला और दूवकि पत्तोंसे कभी जगदप्बा दुर्गाजीकी
पूजा न करे। फूल, फल और पत्रको देवतापर
अधोमुख करके न चढ़ावे। ब्रह्मन्! पत्र-पुष्प
आदि जिस रूपमें उत्पन्न हों, उसी रूपमें उन्हें
देवतापर चढ़ाना चाहिये।
धूप
बनस्पतिरसं दिव्यं गन्धाद्यं सुमनोहरम्।
आघ्रेयं देवदेवेश धूपं भक्त्या गृहाण मे ॥७९॥
देवदेवेश्वर ! यह सूँघने योग्य धूप भक्तिपूर्वकं
आपकी सेवामे अर्पित हैं, इसे ग्रहण करे । यह
वनस्पतिका सुगन्धयुक्तं परम मनोहर दिव्य रस है ।
दीप
सुप्रकाशं महादीपं सर्वदा तिमिरापहम्।
घृतबर्तिसमायुक्त गृहाण मम सत्कृतम्॥७२॥
भगवन्! यह घीकी बत्तीसे युक्त महान् दीप
सत्कारपूर्वक आपकी सेवामें समर्पित है। यह
उत्तम प्रकाशसे युक्त और सदा अन्धकार दूर
करनेवाला है। आप इसे स्वीकार करें।
नैवेद्य
अत्रं चतुर्विधं स्वादु रतैः षड्भिः समन्वितम्।
भक्त्या गृहाण मे देव नैवेद्यं तुष्टिदं सदा ॥ ७३॥
देव! यह छः रसोंसे संयुक्त चार प्रकारका
स्वादिष्ट अन्न भक्तिपूर्वक नैवेद्यके रूपमें समर्पित
है, यह सदा संतोष प्रदान करनेवाला है। आप इसे
ग्रहण करें।
ताम्बूल
नागवल्लीदलं श्रेष्ठं पूणखादिरचूर्णयुक्।
कर्पुरादिसुगन्धाढ्यं यदत्तं तद् गृहाण मे ॥ ७४॥
प्रभो! यह उत्तम पान सुपारी, कत्था और