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देवाकार प्रमाण वर्णन | [ ४४३

के मण्डल मे युक्त-ऊर्ध्वं भाग की ओर केणो बाले तथा दीषे॑ एवं आयत

नेत्रों बाला स्वरूप करना चाहिए । व्याश्न के चमं से परीधान करने

बाले---झटि में तीन सूत्रों से संयुत हार, केयर और अन्य सुन्दर आभ-

रणों से सम्पन्त--सर्पों के आभूषणों से णोधिन करे । और ऐसे बहुत

से अनेक आभरणों से विभूषित विरचित करे पीन ऊरु गण्ड फलक

वाला तथा कुण्डलों से समलेकृत बनावे ।४-७।

आ जानुलम्बवाहुण्च सौम्यमूत्तिः सुशोभनः ।

खेटकं वामहस्ते तु गङ्कुञ्चैव तु दक्षिणे ।८

शक्ति दण्डत्रिशूलञ्च दक्षिणेषु निवेशयेत्‌ ।

कपालं बामपाश्व तु नागं खट्‌वांगमेव च ।६

एकच वरदो हस्तस्तथाक्षबलयोऽपरः ।

वे गाखस्थानकं कृत्वा नृत्याभिनयसंस्थितः ।१०

नत्यन्दणभरुजः कार्यो गजचर्मधरस्तथा ।

तथा त्रिपुरदाहे च बाहवः षोडशेव तु ।११

णङ्भुचक्रगदाणांगे' घण्टातत्राधिकाभवेत्‌ ।

तथा धनु: पिनाकञ्च शरो विष्णुमयस्तथा । १२

चतुभु जोऽष्टबाहूर्वा जानयोगेश्वरो मतः ।

तीक्ष्णनासाग्रदशना करालवदना महाच्‌ ।१३

भे रवः शस्यते लोके प्रत्यायतनसं स्थितः ।

न मूलायतने कार्ये भेरवस्तु भयङ्करः ।१४

जानु पर्यन्त लम्बी बाहुओं से युक्त-सोम्य मूर्ति सुन्दर शोभा से

संयुत-बाम हस्त ये खेटक धारण करने वाले तथा दाहिने हाथ में शंख

को धारण किये हुए एवं पक्षियों में शक्ति-दण्ड और विशूल को निवे-

शित करना चाहिए । एक हाथ तो वर्‌ प्रदान करने वाली मुद्रामें होना

चाहिए और दूसरा अक्षों के वलय वाला होवे । वंशा स्थानक करके

नृत्यों के अभिनय करने में संस्थित होना चाहिए । नृत्य करते हुए दश

भुजाओं बाला एवं गजके चमं को धारण करने वाले स्द्रदेव का स्वरूप

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