वराहावत्तार के विषय में अजुन का प्रश्न ] [ ३४३
न कमेगुणसंस्थानं न चाप्यन्तं मनीषिणः २.
किमात्मको वराहोऽसौ किमूत्तिः कास्य देवता ।
कि प्रमाणाः कि प्रभावः कि वा तेन पुरा कृतम् ।३
एतन्मे शंस तत्वेन वाराहं श्रू तिविस्तरम् ।
यथाहंञ्च समेतानां द्विजातीनां विशेषतः ।४
एतत्त कथयिष्यामि पुराणं ब्रह्मसम्मितम् ।
महावराह चरितं कृष्णस्यादूभुतकर्मणः ।५
यथा नारायणो राजन् ! वाराहं वपुरास्थितः ।
दंष्ट्रया गां समूद्रस्थामुञ्जहारारिमदंनः ।६
छन्दोगो भिरुदा राभि: श्र तिभिः समलङः कृतः ।
मनः प्रसन्नतां कृत्वा निबोध विजयाधुना ।७ .
अजु न ने कहा--है विध्र ! अपरिमित तेज से युक्त. भगवान् विष्णु
के पुराणों में प्रादुर्भावों को कहने वाले सत्पुरुषों में. हमने एक . वाराह
का भी प्रादुर्भाव सुना ।१। उस वाराह का. चरिभ्न मैं नहीं जातता हैं
और न तो उसकी कोई विधि ही मुझे मालूम है और न कुछ .विस्तार
का ही ज्ञान है । उनके कमं और ग्रुणों का संस्थान क्या था-यह भी मैं
नहीं जानता ६ । उन अत्यन्त मनीषी प्रभु का तो, अद्भुत.ही कर्म---
गुण संस्था होगा ।२। यह वराह किस स्वरूप वाला प्रादुर्भाव था ?
इनकी कंसी मूत्ति थी और इनका देवता कौन था? इनका प्रमाण
कितना था और क्या प्रभाव था तथा पहिले इन्होने क्या किया था ?
। श्र,ति विस्तार इस वाराह को आप तात्विक रूप से मुझे सब बत-
लाइए ? विशेष रूप से ये एकत्रित हुए द्विजाति गण हैं इनके अनुसार.
जो भी योग्य हो श्रवण कराइए ।४। श्रो शौनक जी ने कहा-अदुभुत
कर्म वाले भगवान् श्रीकृष्णके इस महा वराह चरित्रको जो ब्रह्मसम्मित
पुराण है मैं आपको कहूँगा ।५। हे राजन् ! जिस प्रकार, से भगवान्
शत्रुओं में मर्दन करने बलि नारायण ने बाराह के वपु मे समास्थित