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( १७ )

“दुगं में सभी प्रकार के आयुधों का संग्रह करना अत्यावश्यक

है । इसके लिए राजा को धनुष, तीर, तलवार, तोमर, कवच, लट्‌ठ,

फरसा, परिघ, पत्थर, मुगदर, त्रिशुल, पट्टिश, कुठार, प्राण, भाला,

शक्ति, चक्र, चमं आदि का संग्रह करना आवश्यक है | कुदाल, क्षुर,

बेंत, घास-फूस ओर अग्नि की भी व्यवस्था रहे । ईघतन और तेल का

पूरा संग्रह होना चाहिये ।""

युद्धकाल में सेना के लिय ~य और घायलों की चिकित्सा के

लिये औषधियों का संग्रह भी आवश्यक है। इसका वर्णन करते हुए कहा

है--“जो, गेहूँ, मू ग, उदं, चावल आदि सत्र प्रकार के अन्न इकट्ठे किये

जायें । सन, मूज, लाख, सुहागा, लोहा, सोना, चांदी, रत्न, वस्त्र आदि

सभी आवश्यक वस्तु, जो यहाँ कही गई हैं और नहीं भी कही गई हैं,

राजा द्वारा सञ्चित की जानी घाहिये। सब प्रकार की वनस्पततियाँ तथा

ओषधियाँ जैसे-जीवकर्षण, काकोल, आमलकी, शालपर्णी, मुग्दरपर्णी

माषपर्णी, सारिवा, बला, घारा, श्वसन्ती, वृष्या, वहती, कण्टकारिका,

श्यङ्खी, श्वज्भाटकी, द्रोणी, वर्षाभू, दभ, रेणुका, मधुपर्णी, विदारीकन्द,

महाक्षीरा, महातपा, सहदेई, कटुक, एरण्ड, पर्णी, शतावरी, कल्गु,

सजेरयाष्टिका, शुक्राति शुक्रका, अश्मरी, छत्राति छच्रका, वीरणा, इक्षु,

दक्षृचिकार (सिरका), सिंही अश्वरोधक, मधूक, शतपुष्पा, मधूलिका,

मधूक, पीपल, ताल, आत्मगृप्ता, कतुफला, दाविना, राजशीर्षंकी,

राजसबंप (सरसों), धान्याक, उत्कटा, कालश।क, पद्मबीज, मोबल्ली,

मधुवस्लिका, शीतपाकी, कुवेराक्षी, काकजिह्वा, ऽद्पुष्पिका, त्रयुष,

गुख्जातक, पुनर्नवा, कसेरू, कार काश्मीरी, वत्या, शालूक, केसर,

सबतुष धान्य, शमीधान्य, क्षीर, क्षौद्र, तक्र, तल, बसा, मज्जा,

चृत, नीम, अरिष्टिक, सुरा, आसव, मश्च, मण्ड आदि सभी का संग्रह

किया जाप ।/

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