% श्री लिंग पुराण # १८३
गये हैं।दिव्य पर्वतों के ऊपर देवशंकर के असंख्य धिमान
हैं जिनमें शिवजी की कृपा से अनेक सिद्ध और मुनि
लोग वास करते हैं।
इसी प्रकार से पातालों की भी स्थिति है। वहाँ
भगवान विष्णु की साक्षात् मूर्ति भगवान हलायुध
विद्यमान हैं। वहाँ देव देव की शैय्या है। पनस वृक्षों के
वन में श्री शुक्राचार्य सहित उरग रहते हैं। मनोहर वन में
करोड़ों संख्याओं के वृक्ष हैं वहाँ गणों के साथ नन्दीश्वर
शिव की स्तुति करते हैं। सन्तानक स्थली के मध्य में
साक्षात् देवी सरस्वती रहती हें ।
. इस प्रकार संक्षेप से मैंने वन तथा पर्वतो में रहने
वाले इन वन-वासियों की कथा तुमसे कही हे । इनका
वर्णन विस्तार से मैं नहीं कह सकता।
रः
भगवान की रचना से देशों का वर्णन
सूतजी बोले-शितान्त पर्वत पर पारिजात वन में
इन्द्र, उसके पूर्व में कुमुदाद्भि पर्वत है। बहाँ दानवों के
आठ पर्वत है । सुवर्णं कोटर में भी राक्षसो के स्थान हैं,
नीलक लोगों के भी ६८ नगर हैँ । नील पर्वत पर भी ९५
नगर हैं। किन्नर और विद्याधरो के महाशैल पर तीन पुर