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जाह्मपर्ण ] „ सौर-पर्ये शान्तिक कर्म एवं अभिषेक-विधि + [

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यशोवती नामकी अनुपम पुरीमें रहनेवाले त्रिनेत्रधारी उनत्तात्मा इसके अनन्तर सत्ताईस नक्षत्रों, मेषादि ट्वादश राशियों,

रुद्राक्ष-मास्मधारी परपदेज ईशान (भगवान्‌ शौक) आपको सप्र्षियों, महातपस्वियों, ऋषियों, सिद्धों, विद्याधरों, दैल्येद्रों

नित्य शान्ति प्रदान करें। भूः, भुवर्‌, मह्‌ एवं जन आदि तथा अष्ट नागेति शान्तिकी प्रार्थना करे* ।

लोके रहनेवाले प्रसत्रचित्त देवता आपको शान्ति प्रदान करें । "परमश्रेष्ठ कृत्तिका, वरानना रोहिणी, मृगविर, आद्र,

सूर्यभत्ता सरस्वती आपको शान्ति प्रदान करे । हाथमे पुनर्वसु, पुष्य तथा आदलेषा (पूर्व दिज्ञामे रहनेवाल्ली) ये

कमल धारण करनेवाली तथा सुन्दर स्वर्ण -सिंहासनपर सभी नक्षत्र-मातृकाएँ सूर्यार्चनमें रत हैं और प्रभा-मालासे

अवस्थित, सूर्यकी आग्रधनामें तत्पर भगवती महालक्ष्मी विभूषित हैं। मघा, पूर्वा तथा उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा,

आपको ऐश्वर्य प्रदान करें और आदित्यकी आराधनामे स्वाती, विशाखा--ये दक्षिण दाका आश्रय ग्रहण कर

तल्लीन, विचित्र यर्णके सुन्दर हार एवं कनकमेखला धारण भगवान्‌ सूर्यकी पूजा करती रहती हैं। आकाशमें उदित

करनेवाली सूर्यभक्ता भगवती अपराजिता आपको विजय होनेवाली ये नक्षत्र-मातृकाएँ आपको सान्ति प्रदान करें।

प्रदान करें ।' पश्चिम दिशामें रहनेवाली अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषादा

देवमादित्य॑ सुरपूजितम्‌ । तबापि झाश्लिक॑ झ्ोते कुर्वनु गगनोदिता:॥

अभिजिन्नाम नक्षजं श्रवणं च बहशरलम्‌ । एताः पश्चिमतो दीपा राजत्ते चानुूर्यः ॥

भास्कर पूजपक्येता: सर्वकाल सुभाविता: । रान्ति कुर्वन ते नित्य विभूति च मार्दिकयम्‌ ॥

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