के श्री लिंग पुराण ॐ १३३
विषय में सुनिष्ठा रौद्री कहती है। इसी प्रकार इन्द्र में
एन्द्री, सोम में सोम्या, नारायण में नारायणी तथा सूर्य
और अग्नि में जाननी चाहिए।
हे विप्रो! यह चराचर ब्रह्ममय है। इसको जानकर
चराचर विभाग त्याज्य, ग्राह्य, कृत्य, अकृत्य सब त्याग
देना चाहिये । जिसको ऐसी स्थिति होती है उसी तृप्तात्मा
की ब्राह्मी स्थिति है अन्यथा नहीं। सो इस प्रकार
अभ्यन्तरार्चन मैंने तुमसे कहा । अभ्यन्तरार्चक नमस्कार
आदि से सदा पूजनीय है । चाहे वे विरूप विकृत कैसे
भी हों, निन्दनीय नहीं, वे ब्रह्मवादी हैं। विशेषज्ञों को भी
आभ्यंतर पूजा की परीक्षा नहीं करनी चाहिये। निन्दा
करने वाले दुःखी होते हैं। जैसे दारुवन में रुद्र की निन्दा
करने वाले मुनि दुःखी हुए थे। तिससे ब्रह्म ज्ञानी को
सदा नमस्कार करना चाहिए।
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श्वेत मुनि द्वारा मृत्यु पर जय पाना
सनत्कुमार बोले--हे विभो! दारूवन स्थित
तपस्वियो का जो वृत्तान्त है उसे सुनने की हमारी इच्छा