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२०२ * संक्षिप्त ब्रह्मपुराण *

शिव बहुत प्रसन्न हुए और बोले-' तुम दोनों अत्यन्त | भगवानूकौ आज्ञा स्वीकार की ओर दोनों प्रसन्न

दुर्लभ अभीष्ट वर माँगो।' तब इन्द्रने कहा-- | होकर उस कार्यमें लग गये। देवगुरुने इन्द्रका

' भगवन्‌! मेरा राज्य बार-बार अधिकारमें आता और | महाभिषेक किया। उससे एक नदी प्रकट हुई, जो

छिन जाता है। जिस पापके कारण ऐसा होता है, पुण्या ओर मङ्गला कहलायी। उस नदीके साथ

वह पाप नष्ट हो जाय। यदि आप दोनों देवेश्वर जो गङ्गाजीका संगम हुआ, वह बड़ा ही पवित्र

अत्यन्त प्रसन्न हों तो मेरा सब कुछ सदा स्थिर | एवं कल्याणकारक है। इन्द्रकी स्तुतिसे प्रसन्न

रहे ।' यह सुनकर भगवान्‌ शिव और विष्णुने | होकर जगन्मय भगवान्‌ विष्णु प्रत्यक्ष प्रकट हुए

मुसकराते हुए इन्द्रके वाक्यका अनुमोदन किया और | और उनसे इन्द्रने त्रिलोकौका राज्य प्राप्त किया।

इस प्रकार कहा--'यह गोदावरी नदी ब्रह्मा, विष्णु | अत: (इन्र गामविन्दयत्‌- इस व्युत्पत्तिके अनुसार)

और शिव--इन तीनों देवताओंसे सम्बन्ध रखनेवाला भगवान्‌ वहाँ गोविन्दके नामसे विख्यात हुए,

महान्‌ तीर्थ हैं। यहाँ सबके मनोरथ पूर्ण होते हैं। तुम | क्योंकि इन्द्रने उनसे त्रिलोकमयी गौ प्राप्त की थी।

दोनों यहाँ श्रद्धापूर्वक स्नान करो । इनद्रके मङ्गलके | देवगुरु बृहस्पतिने जहाँ इन्द्रके राज्यकी स्थिरताके

लिये तथा इनके वैभवकी स्थिरताके लिये बृहस्पति | लिये महादेवजीका स्तवन किया, वहाँ वे सिद्धेश्वर

हम दोनोंका स्मरण करते हुए इन्द्रका अभिषेक करें | नामसे निवास करते हैं। सिद्धेश्वर नामक शिवलिड्डकी

तथा उस समय निप्नाद्धित मन्त्र भी पढ़ें- सम्पूर्ण देवता भी पूजा करते हैं। तबसे वह तीर्थ

इह जन्यनि पूर्वस्मित्‌ यत्किंचित्‌ सुकृतं कृतम्‌। | गोविन्दतीर्थके नामसे विख्यात हुआ। वहीं मङ्गला-

तत्‌ सर्वं पूर्णतामेतु गोदावरि नमोऽस्तु ते॥ संगम, पूर्णतीर्थं, इन्द्रतीर्थं और बार्हस्पत्यतीर्थ भी

"गोदावरि ! पैंने इस जन्मे अथवा पूर्वजन्ममें | हैं। उन तीर्थोमिं जो स्नान, दान अथवा किंचिन्मात्र

जो कुछ भी पुण्यकर्म किया हो, वह सब | भी पुण्यका उपार्जन किया जाता है, वह सव

पूर्णताकों प्राप्त हो। आपको नमस्कार है।' अक्षय होता है। वहाँका श्राद्ध पितरोंको अत्यन्त

जो इस प्रकार स्मरण करके गौतमी गङ्गामें | प्रिय है। जो मनुष्य प्रतिदिन इस तीर्थके माहात्म्यको

स्नान करता है, उसका धर्म हम दोनोंकी कृपासे | सुनता, पढ़ता और स्मरण करता है, उसे खोये

परिपूर्ण होता है तथा वह साधक अपने पूर्वजन्मके | हुए राज्यकी प्राप्ति होती दै । नारद! वहाँ गौतमीके

दोषसे भी मुक्त होकर पुण्यवान्‌ हो जाता है।' दोनों तटोंपर सैंतीस हजार तीर्थ रहते हैं, जो सब

इन्द्र और बृहस्पतिने “बहुत अच्छा" कहकर | प्रकारकी सिद्धि देनेवाले हैं।

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श्रीरामतीर्थकी महिमा

ब्रह्माजी कहते हैं--नारद! रामतीर्थ भरूणहत्याका | बुद्धिमान्‌ ओर शूरवीर थे तथा बलिकी भाँति

नाश करनेवाला है। उसकी महिमाके श्रवणमात्रसे | अपने पिता-पितामहोके राज्यका पालन करते थे।

मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है । इक्ष्वाकुवंशमें महागज दशरथके तीन रानियां र्था - कौसल्या,

दशरथ नामके क्षत्रिय राजा हुए, जो सम्पूर्ण सुमित्रा और कैकेयी) वे तीनों कुलीन,

विश्वमे विख्यात थे । वे इन्द्रको हो भाँति बलवान्‌, सौभाग्यशालिनी, रूपवती और सुलक्षणा धीं ।

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