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गुना न्यास करना चाहिये।पच्चीस पदोंका | के लिये उपयुक्त है। इसीके समान वास्तु ब्रह्म-

वास्तुमण्डल चितास्थापनके समय विहित है । | शिलात्मक पृष्ठन्यासमें, शावाकके निवेशर्में और

उसकी “वताल' संज्ञा हैं। दूसरा नौ पदोंका भी | मूर्तिस्थापनमें भी उपयोगी होता है। वास्तुमण्डलवर्ती

होता है। इसके सिवा एक सोलह पदोंका भी | समस्त देवताओंको खीरसे नैवेद्य अर्पित करे । उक्त-

वास्तुमण्डल होता है॥ ३४-३९ ॥

अनुक्त सभी कार्योके लिये सामान्यतः पाँच हाथको

षट्कोण, त्रिकोण तथा वृत्त आदिके मध्यमें | लंबाई-चौड़ाईमें वास्तुमण्डल बनाना चाहिये। गृह

चौकोर वास्तुमण्डलका भी विधान है। ऐसा | और प्रासादके मानके अनुसार ही निर्मित वास्तुमण्डल

वास्तु खात (नींव आदिके लिये खोदे गये गड्ढे )- | सर्वदा श्रेष्ठ कहा गया है ॥ ४०--४२ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापृद्णमें 'वाल्तुपूजाकी विधिका वर्ण” तरामक

वियतबेवाँ अध्याय पय हुआ॥ ९३॥

गा

चौरानबेवाँ अध्याय

शिलान्यासकी विधि

भगवान्‌ शिव कहते हैं--स्कन्द! ईशान

आदि कोणोंमें वास्तुमण्डलके बाहर पूर्ववत्‌ चरकी

आदिका पूजन करे। प्रत्येक देवताके लिये

क्रमशः तीन-तीन आहुतियाँ दे। भूतबलि देकर

नियत लग्नमें शिलान्यासका उपक्रम करे। खातके

मध्यभागे आधार-शक्तिका न्यास करे। वहाँ

अनन्त (शेषनाग)-के मन्त्रसे अभिमन्त्रित उत्तम

कलश स्थापित करे। "लं पृथिव्यै नमः।'- इस

मूल-मन्त्रसे इस कलशपर पृथिवौस्वरूपा शिलाका

न्यास करे। उसके पूर्वादि दिग्भागोंमें क्रमशः

सुभद्र आदि आठ कल्शोकी स्थापना करे । पहले

उनके लिये गड्ढे खोदकर उनमें आधार-शक्तिका

न्यास करनेके पश्चात्‌ उक्त कलशोंको इन्द्रादि

लोकपालोंके मन्त्ोद्रारा स्थापित करना चाहिये।

तदनन्तर उन कलशोंपर क्रमशः नन्दा आदि

शिलाओंको रखे ॥ १--४॥

तत्त्वमूर्तियोके अधिदेवता-सम्बन्धी शस्त्रोंसे

युक्त वे शिलाएँ होनी चाहिये । जैसे दीवारमे मूर्ति

तथा अस्त्र आदि अङ्कित होते हैं, उसी प्रकार उन

शिलाओंमें शर्व आदि मूर्ति, देवताओंके अस्त्र-

शस्त्र अद्धित रहें। उक्त शिलाओंपर कोण और

दिशाओंके विभागपूर्वक धर्म आदि आठ देवताओंकी

स्थापना करे। सुभद्र आदि चार कलशोंपर नन्दा

आदि चार शिलाएँ अग्रि आदि चार कोणोंमें

स्थापित करनी चाहिये! फिर जय आदि चार

कलशोपर अजिता आदि चार शिलाओंकी पूर्व

आदि चार दिशाओमें स्थापना करे । उन सबके

ऊपर ब्रह्माजी तथा व्यापक यहेश्वरका न्यास

करके मन्दिरके मध्यवर्ती *आकाश' नामक

अध्वाका चिन्तन करे। इन सबको बलि अर्पित

करके विष्नदोषके निवारणार्थं अस्त्र-मन्त्रका जप

करे। जहाँ पाँच ही शिलाएँ स्थापित करनेकी

विधि है, उसके पक्षम भी कुछ निवेदन किया

जाता है ॥५--८॥

मध्वभागमें सुभद्र-कलशके ऊपर पूर्णा नामक

शिलाकी स्थापना करे और अग्नि आदि कोणोंमें

क्रमशः पद्म आदि कलशोंपर नन्दा आदि शिलाएँ

स्थापित करे। मध्यशिलाके अभावमे चार शिलाएँ

भी मातृभावसे सम्मानित करके स्थापित की जा

सकती हैँ । उक्त पाचों शिलाओंकी प्रार्थना इस

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