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[ संक्षिप्त अ्रह्मवैयर्तपुराण [
भीष्मकद्वारा रुकिमिणीके विवाहका प्रस्ताव, शतानन्दका उन्हें श्रीकृष्णके साथ
विवाह करनेकी सम्मति देना, रुक्मीद्रारा उसका विरोध और शिशुपालके
साथ विवाह करनेका अनुरोध, भीष्मकका श्रीकृष्ण तथा अन्यान्य
राजाओंको निमन्तित करना
श्रीनारायणजी कहते है -- नारद! विदर्भ
दशमे भीष्मक नामके एक राजा राज्य करते थे,
जो नारायणके अंशसे उत्पन्न हुए थे। वे
विदर्भदेशोय नरेशोंके सम्राट्, महान् बल-पराक्रमसे
सम्पन्न, पुण्यात्मा, सत्यवादी, समस्त सम्पत्तियोके
दाता, धर्मिष्ठ, अत्यन्त महिमाशाली, सर्वश्रेष्ठ और
समादृत थे। उनके एक कन्या थी, जिसका नाम
रुक्मिणी था। वह महालक्ष्मीके अंशसे उत्पन्न थी
तथा नारियोंमें श्रेष्ठ, अत्यन्त सौन्दर्यशालिनी,
मनोहारिणी और सुन्दरी स्त्रियोंमें पूजनीया थी।
उसमें नयी जवानीका उमंग था। वह रत्लनिर्मित
आभूषणोंसे विभूषित थी। उसके शरीरकौ कान्ति
तपाये हुए सुवर्णकी भाँति उद्दीत्त थी। वह अपने
तेजसे प्रकाशित हो रही थी तथा शुद्धसत्त्वस्वरूपा,
सत्यशीला, पतिव्रता, शान्त, दमपरायणा और
अनन्त गुणोंकी भण्डार थी। वह शरत्पूर्णिमाके
चन्द्रमाके सदृश शोभाशालिनी थी। उसके नेत्र
शरत्कालीन कमलके-से थे और उसका मुख
लज्नासे अवनत रहता था। अपनी उस सुन्दरी
युवतौ कन्याको सहसरा विवाहके योग्य देखकर
उत्तम त्रतका पालन करनेवाले, धर्मस्वरूप एवं
धर्मात्मा राजा भीष्मक चिन्तित हो उठे। तब वे
अपने पुत्रों, ब्राह्मणों तथा पुरोहितोंसे बिचार-
विमर्श करने लगे।
सत्यसंध, नारायणपरायण, बेद-बेदाड्रका विशेषज्ञ,
पण्डित, सुन्दर, शुभाचारी, शान्त, जितेन्द्रिय,
क्षमाशील, गुणी, दीर्घायु, महान् कुलमें उत्पन्न
और सर्वत्र प्रतिष्ठित हो।
राजाधिराज भीष्मककी बात सुनकर महर्षि
गौतमके पुत्र शतानन्द, जो वेद-वेदाङ्गके पारगामी
विद्वान्, वथार्थस्ानी, प्रवचनकुशल, विद्वान्, धर्मात्मा,
कुलपुरोहित, भूतलपर सम्पूर्ण तत्त्वोंके ज्ञाता और
समस्त कर्मोंमें निष्णात थे, राजासे बोले।
शतानन्दने कहा--राजेन्द्र! तुम तो स्वयं
भीष्पक बोले--सभासदो ! मेरी यह सुन्दरी | ही धर्मके ज्ञाता तथा धर्मशास्त्रमें निपुण हो;
कन्या बढ़कर विवाहके योग्य हो गयी है; अतः | तथापि मैं वेदोक्त प्राचीन इतिहासका वर्णन करता
मैं इसके लिये मुनिपुत्र, देवपुत्र अथवा | हूं सुनो। जो परिपूर्णतम परमेश्वर ब्रह्मके भी
राजपुत्र-- इनमेंसे किसी अभीष्ट उत्तम वरका वरण | विधाता हैँ; ब्रह्मा, शिव और शेषद्वारा वन्दित,
करना चाहता हूँ। अत: आप लोग किसौ ऐसे | परमज्योति:स्वरूप, भक्तानुग्रहमूर्ति, समस्त प्राणियोंके
योग्य वरकी तलाश करो, जो नवयुवक, धर्मात्मा, | परमात्मा, प्रकृतिसे परे, निर्लिप्त, इच्छारहित और