६१० * संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण *
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जो तीनों लोकोंके सत्पुरुषोंद्वारा सेव्य हैं; उन | भगवान् श्यामसुन्दर कौतृहलपूर्वक गोपियोंके
श्यामसुन्दरने अपनी सैव्यरूपा प्राणवल्लभाकी सेवा | साथ वहसे प्रस्थित हुए । वत्स ! इस प्रकार मैंने
की। तदनन्तर सेवकोचित भक्तिसे श्वेत चवर | श्रीहरिकी एसक्रीड़ाका वर्णन किया। वे भगवान्
डुलाया। यह कैसी अद्भुत बात है । इसके बाद | श्रीकृष्ण स्वेच्छामय रूपधारी, परिपूर्णतम परमात्मा,
समस्त भावोंके जानकारोंमें श्रेष्ठ बोधकलाके साता | निर्गुण, स्वतन्त्र, प्रकृतिसे भी परे, सर्वसमर्थ और
एवं विलास-शास्त्रके मर्मज्ञ श्रीहरिने अपनी | ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव आदिके भी परमेश्वर हैं।
प्राणवह्वभाको जगाया और अपने वक्षःस्थलमे इस प्रकार श्रीकृष्णजन्मका रहस्य, मनको प्रिय
उनके लिये स्थान दिया।
इस प्रकार श्रीराधाको जगाकर श्रीकृष्णने
उन्हें भाँति-भाँतिके पुष्पमाला, आभूषण तथा
कौस्तुभमणि आदिके द्वारा सुसज्जित किया।
रत्ञपात्रमें भोजन और जल प्रस्तुत किये। इसी
समय चरण-चिह्रोंकों पहचानतो हुई श्रीराधाकी
सुप्रतिष्ठित सहचरी सुशीला आदि छत्तीस गोपियाँ
अन्यान्य बहुसंख्यक गोपाङ्गनाओकि साथ वहाँ आ
पहुँचीं। किन्होंके हाथमें चन्दन था और किन्हीके
लगनेवाली उनकी बाललीला तथा किशोर-
लीलाका भी वर्णन किया गया। अब तुम और
क्या सुनना चाहते हो?
नारदजीने पूछा--मुनिश्रेष्टर इसके बाद
कौन-सी रहस्य-लीला हुई ? भगवान् श्रीकृष्ण
किस प्रकार नन्दभवनसे मथुराको गये ? श्रीहरिके
| वियोगसे पीड़ित हुए नन्दने कैसे अपने प्राण
| धारण किये? जिनका चित्त सदा श्रीकृष्णके
| चिन्तनमें ही लगा रहता धा, वे गोपाङ्गनापं और
हाथमे कस्तूरी । कोई चंवर लिये आयी धी और | यशोदाजी भी कैसे जीवन धारण कर सकं ? जो
कोई माला। कोई सिन्दूर, कोई कंधी, कोई आँखोंकी पलक गिरनेतकका भी वियोग होनेपर
आलता (महावर) और कोई वस्त्र लिये हुए जीवित नहीं रह सकती थीं; वे ही देवी श्रीरधा
थी। कोई अपने हाथमे दर्पण, कोई पुष्पपात्र, अपने प्राणेश्चरके चिना किस तरह प्राणोंको रख
कोई क्रौड़ाकमल, कोई फूलोकि गजे, कोई सकीं ? जो-जो गोप शयन, भोजन तथा अन्यान्य
मधुपात्र, कोई आभूषण, कोई करताल, कोई सुखोंके उपभोग-कालमें सदा श्रीकृष्णके साथ
मृदंग, कोई स्वर-यन्त्र ओर कोई वीणा लिये रहे; वे अपने वैसे प्रेमी बान्धवको ब्रज रहते
आयी थीं। जो छत्तीस राग-रागिनियाँ गोपीका हुए कैसे भूल सके? श्रीकृष्णने मथुरामें जाकर
रूप धारण करके गोलोकसे राधाके साथ कौन-कौन-सी लीलाएँ कीं ? परमधाम-गमनपर्यन्त
भारतवर्षमें आयी थीं, वे सब वहाँ उपस्थित हुईं। उन्होने जो कुछ किया हो, उसे आप बतानेकी
कई गोपियाँ वहाँ आकर नाचने और गाने लगीं कृपा करें।
तथा कोई श्वेत चवर डुलाकर राधाकी सेवा करने श्रीनारायणने कहा--महामुने ! कंसने धनुषयज्ञ
लगीं। महामुने! कुछ गोपियाँ प्रसन्नतापूर्वक देवी नामक यज्ञका आयोजन किया था। उसमें उस
राधाके पैर दबाने लगीं। एकने उन्हें चबानेके राजाका निमन्त्रण पाकर भगवान् श्रीकृष्ण भी गये
लिये पानका बीड़ा दिया। इस प्रकार पवित्र थे। राजा कंसने श्रीकृष्णको बुलानेके लिये
वृन्दावनमें श्रीराधाके वक्ष:स्थलमें विराजमान | भगवद्धक्त अक्रूरकों उनके पास भेजा था।