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बड़ी घनिष्ठ मित्रता है । जवसे देवकीकी कन्यासे उसने

यह बात सुनी है कि उसको मारनेवाला और कहीं पैदा

हो गया है, तबसे वह यही सोचा करता है कि देवकीके

आवें गर्भसे कन्याका जन्म नहीं होना चाहिये । यदि

मैं तुम्हारे पुत्रका संस्कार कर दूँ और वह इस बालकको

वसुदेवजौका लड़का समझकर मार डाले, तो हमसे बड़ा

अन्याय हो जायगा॥ ८-९॥

नन्दबाबाने कहा--आचार्यजी ! आप चुपचाप इस

एकान्त गोशालामें केवल स्वस्तिवाचनं करके इस

बालकका द्विजातिसमुचित नामकरण-संस्कारमात्र कर

दीजिये । औरोंकी कौन कहे, मेरे सगे-सम्बन्धी भी इस

बातको न जानने पावें ॥ १० ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैं--गर्गाचार्यजी तो संस्कार

करना चाहते ही थे । जब नन्दकाबाने उनसे इस प्रकार

प्रार्था की, तब उन्होंने एकान्तमें छिपकर गुप्तरूपसे

दोनों बालकॉंका नामकरण-संस्कार कर दिया ॥ ११॥

गर्गाचार्यजीने कहा--यह ग्रेहिणीका पुत्र है ।

इसलिये इसका नाम होगा रौहिणेय यह अपने

सगे-सम्बधी और मित्रोको अपने गुणोंसे अत्यन्त

आनन्दित करेगा, इसलिये इसका दूसरा नाम होगा

'राम' । इसके बलकी कोई सीमा नहीं है, अतः इसका

एक नाम 'बल' भी है । यह यादवोमि। और तुमलोगोमें

कोई भेदभाव नहीं रक्वेगा ओर लोगों फूट पड़नेपर

मेल करावेगा, इसलिये इसका एक नाम सङ्कर्षण" भी

है॥ १२॥ और यह जो साँवला-साँवला है, यह प्रत्येक

युगमें शरीर ग्रहण करता है । पिछले युगॉमें इसने

क्रमशः श्वेत, रक्त और पीत--ये तीन विभिन्न रंग

स्वीकार किये थे अबकी यह कृष्णवर्णं हुआ है ।

इसलिये इसका नाम "कृष्ण" होगा ॥ १३ ॥ नन्दजी ! यह

तुम्हार पुत्र पहले कभी बसुदेवजीके घर भी पैदा हुआ

था, इसलिये इस रहस्यको जाननेवाले लोग इसे “श्रीमान्‌

वासुदेव भी कहते हैं॥ १४ ॥ तुम्हारे पुत्रके और भी

बहुत-से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं । इसके जितने

गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार

अलग-अलग नामं पड़ जाते हैं । मैं तो उन नामोको

जानता हूँ, परन्तु संसारके साधारण लोग नहीं

जानते॥ १५॥ यह तुमलोगोंका परम कल्याण

* श्रीमद्धागवत *

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करेगा । समस्त गोप और गौओंको यह बहुत ही

आनन्दित करेगा । इसकी सहायतासे तुमलोग बड़ी-बड़ी

विपत्तियोंको बड़ी सुगमतासे पार कर लोगे॥ १६॥

ब्रजराज ! पहले युगकी बात है । एक बार पृथ्वीमें कोई

राजा नहीं रह गया था। डाकुओने चाय ओर

लूट-खसोट मचा रक्खी थी । तब तुम्हारे इसी पुत्रने

सज्जन पुरुषोंकी रक्षा की और इससे बल पाकर उन

लोगोने लुटेगॉपर विजय प्राप्त की ॥ १७॥ जो मनुष्य

तुम्हारे इस साँवले-सलोने शिशुसे प्रेम करते हैं । वे बड़े

भाग्यवान्‌ हैं । जैसे विष्णुभगवानके करकमलोंकी

छत्रकायामे रहनेवाले देवताओंको असुर नहीं जीत

सकते, वैसे ही इससे प्रेम करनेवालॉको भीतर या बाहर

किसी भी प्रकारके शत्रु नहीं जीत सकते ॥ १८ ॥

नन्दजी ! चाहे जिस दृष्टिसे देखें --गुणमे, सम्पत्ति और

सौन्दर्यमें, कीर्ति और प्रभावमें तुम्हारा यह बालक

साक्षात्‌ भगवान्‌ नारायणके समान है । तुम बड़ी

सावधानी और तत्परतासे इसकी रक्षा करो' ॥ १९॥ इस

प्रकार नन्दबाबाकों भलीभाँति समझाकर, आदेश देकर

गर्गाचार्यजी अपने आश्रमको लौट गये । उनकी बात

सुनकर नन्दबाबाको बड़ा ही आनन्द हुआ । उन्होंने ऐसा

समझा कि मेरी सब आशा-लालसाएँ पूरी हो गयीं, मैं

अब कृतकृत्य हूँ॥ २०॥

परीक्षित्‌ ! कुछ ही दिनोंमें राम और श्याम घुटनों

और हाथोंके बल बकैयाँ चल-चलकर गोकुलमें खेलने

लगे॥ २१॥ दोनों भाई अपने ननदै-नन्ह पाँवोंको

गोकुलकी कीचड़में घसीटते हुए चलते । उस समय

उनके पाँव और कमरके घुँघरू रुनझुन बजने लगते ।

वह शब्द बड़ा भला मालूम पड़ता । वे दोनों स्वयं वह

ध्वनि सुनकर खिल उठते । कभी-कभी बे रस्ते चलते

किसी अज्ञात व्यक्तिके पीछे हो लेते । फिर जब देखते

कि यह तो कोई दूसरा है, तब झक-से रह जाते और

इरकर अपनी माताओं --रोहिणीजी और यशोदाजीके

पास लौट आते॥ २२॥ माताएँ यह सब देख-देखकर

स्नेहसे भर जातीं । उनके स्तनोंसे दूधकी धारा बहने

लगती थी । जब उनके दोनों नन्हे-नन्हेसे शिशु अपने

शरीरम कौचड़का अङ्गराग लगाकर लौटते, तब उनकी

सुन्दरता और भी बढ़ जाती थी । माताएँ उन्हें आते

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