५७० * संक्षिप्त ब्रह्मवैयर्तपुराण +
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गयीं । आगे चलकर पार्वतीने दीर्घकालतक | दर्पमोचनसे सम्बन्ध रखनेवाली सारी बातें कही
तपस्या करके भगवान् त्रिलोचनको पतिरूपमें प्रात | गयीं । पार्वतीका यह चरित्र गूढ है । बताओ, तुम
किया। तिने भी शंकरके वरसे यथासमय | ओर क्या सुनना चाहती हो?
कामदेवको प्राप्त किया। राधे ! इस प्रकार पार्वतीके (अध्याय ३९)
न
पार्वतीकी तपस्या, उनके तपके प्रभावसे अग्निका शीतल होना, ब्राह्मण-बालकका
रूप धारण करके आये हुए शिवके साथ उनकी बातचीत, पार्वतीका घरको
लौटना ओर माता-पिता आदिके द्वारा उनका सत्कार, भिश्षुवेषधारी
शंकरका आगमन, शैलराजको उनके विविध रूपोंके दर्शन,
उनकी शिव-भक्तिसे देवताओंको चिन्ता, उनका
बृहस्पतिजीको शिव-निन्दाके लिये उकसाना तथा
बृहस्पतिका देवताओंको शिव-निन्दाके
दोष बताकर तपस्याके लिये जाना
श्रीराधिका बोलीं ~. प्रभो! यह बहुत ही | निराहार रहकर भक्ति-भावसे तपस्या की । तदनन्तर
विचित्र ओर अपूर्व चरित्र सुननेको मिला है, | ओर भी कठोर तप आरम्भ किया। ग्रीष्म-ऋतुमें
जो कानोंमें अमृतके समान मधुर, सुन्दर, निगृढ | अपने चारों ओर आग प्रज्वलित करके वह दिन-
एवं ज्ञानका कारण है । भगवन्! यह न तो अधिक | रात उसे जलाये रखती और उसके बीचमें बैठकर
संक्षेपसे सुना गया है और न विस्तारसे ही। परंतु | निरन्तर मन्त्र जपती रहती थी । वर्षां-ऋतु आनेपर
अब विस्तारसे ही सुननेकी इच्छा है; अतः आप | श्मशानभूमिमे शिवा सदा योगासन लगाकर बैठती
विस्तारपूर्वक इस विषयका वर्णन कीजिये।| ओर शिलाकी ओर देखती हुई जलकी धारासे
पार्वतीने स्वयं कौन-कौन-सा कठोर तप किया | भीगती रहती थी। शीतकाल आनेपर वह सदा
था? और किस-किस वरको पाकर किस तरह | जलके भीतर प्रवेश कर जाती तथा शरत्की
महेश्चरको प्राप्त किया तथा रतिने फिर किस प्रकार | भयंकर बर्फवाली रातोंमें भी निराहार रहकर
कामदेवको जिलाया ? प्यारे कृष्ण! आप पार्वती | भक्तिपूर्वक तपस्या करती धी।
और शिवके' विवाहका वर्णन कौजिये। इस प्रकार अनेक वर्षोतक कठोर तप करके
श्रीकृष्णने कहा--प्राणाधिके राधिके ! | भी जब सती-साध्वी पार्वती शंकरको न पा सकी,
प्राणवल्लभे ! सुनो । प्राणेश्वरि ! तुम प्राणोकी अधिष्ठात्री | तब वह शोकसे संतप्त हो अग्निकुण्डका निर्माण
देवौ हो। प्राणाधरे। मनोहरे! जब रुद्रदेव | करके उसमें प्रवेश करनेको उद्यत हो गयी।
वटवृक्षके नीचेसे चले गये, तब पार्वती माता- | तपस्यासे अत्यन्त कृशकाय हुई सती शैल-पुत्रीको
पिताके बार-बार रोकनेषर भी तपस्याके लिये अग्निकुण्डमें प्रवेश करनेको उद्यत देख कृपासिन्धु
चली गयी । गज़ाके तटपर जा तीनों काल स्नान | शिव कृपा करके स्वयं उसके पास गये । अत्यन्त
करके वह मेरे दिये हुए मन्त्रका प्रसन्नतापूर्वक | नादे कटके बालक ब्राह्मणका रूप धारण करके
जप करने लगी । उस जगदम्बाने पूरे एक वर्षतक | अपने तेजसे प्रकाशित होते हुए भगवान् शिव