Home
← पिछला
अगला →

भय होनेपर "अयमग्ने जरिता त्वे०' (१०। १४२। १)

इत्यादि ऋचाका जप करे। जंगलोंमें ' अरण्यान्य-

रण्यानि०' (१०। १४६। १)- इस मन्त्रका जप

करे तो भयका नाश होता है। ब्राह्मीको प्राप्त

करके ब्रह्म-सम्बन्धिनी दो ऋचाओंका जप करे

और पृथक्‌-पृथक्‌ जलसे ब्राह्मीलता एवं शतावरीको

ग्रहण करे। इससे मेधाशक्ति और लक्ष्मीकी प्राप्ति

होती है। 'शाश इक्तथा०' (१०।१५२। १)--यह

ऋचा शत्रुनाशिनी मानी गयी है। संग्राममें विजयकी

अभिलाषा रखनेवाले वीरको इसका जप करना

चाहिये। 'ब्रह्मणाग्रि: संविदान:०' (१०। १६२। १)--

यह ऋचा गर्भमृत्युका निवारण करनेवाली

है॥५१--९१॥

"अपेहि ' (१० । १६४)--इस सूक्तका पवित्र

होकर जप करना चाहिये। यह दुःस्वप्नको नाश

करनेवाला है। 'येनेदम्‌०' इत्यादि ऋचाका जप

करके साधक परम समाधिमें स्थिर होता है।

“मयोभूर्बात:०' (१०।१६९। १)-यह ऋचा

गौओंके लिये परम मङ्गलकारक है। इसके द्वारा

शाम्बरी माया अथवा इन्द्रजालका निवारण करे।

"महि त्रीणामवोऽस्तु°' (१०।१८५। १)-इस

कल्याणकारी ऋचाका मार्गमें जप करे। द्वेषपात्रके

प्रति विद्वेष रखनेवाला पुरुष “प्राग्रये०'

(१० । १८७। १) इत्यादि ऋचाका जप करे, इससे

शत्रुओंका नाश होता है। ' वास्तोष्यते०' आदि

चार मन्त्रोंसे गृहदेवताका पूजन करे । यह जपकी

विधि बतायी गयी है। अब हवनमें जो विशेष

विधि है, वह जाननी चाहिये। होमके अन्मे

दक्षिणा देनी चाहिये। होमसे पापकी शान्ति, अन्नसे

होमकी शान्ति और स्वर्णदानसे अन्नकी शान्ति

होती है। इससे मिलनेवाले ब्राह्मणोंक आशीर्वाद

कभी व्यर्थ नहीं जाते। यजमानकों सब ओरसे

बाह्य स्नान करना चाहिये। सिद्धार्थक (सरसों),

यव, धान्य, दुग्ध, दधि, घृत, क्षीरवृक्षकी समिधाएँ

हवने प्रयुक्त होनेपर सम्पूर्ण कामनाओंको सिद्ध

करनेवाली हैं तथा अभिचारमें कण्टकयुक्त समिधा,

राई, रुधिर एवं विषका हवन करे । होमकाले

शिलोज्छवृत्तिसे प्राप्त अन, भिक्षान, सत्त, दूध,

दही एवं फल-मूलका भोजन करना चाहिये । यह

“ऋग्विधान' कहा गया है ॥ ९२--९८॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महाएुराणमें 'ऋ्विधानका कथन” नामक

दो सौ उनसठवाँ अध्याय परा हुआ॥ २५९ ॥

दो सौ साठवाँ अध्याय

यजुर्विधान- यनुर्वेदके विभिन मन्त्रोंका विभिन्न कार्योकि लिये प्रयोग

पुष्कर कहते है - परशुराम ! अब मैं भोग | यह कर्म अभीष्ट मनोरथ देनेवाला है। शान्तिकी

ओर मोक्ष प्रदान करनेवाले 'यजुर्विधान' का वर्णन | इच्छावाला पुरुष प्रणवयुक्त व्याहति-मन्त्रसे जौकी

करता हूँ, सुनो। ॐकार- संयुक्त महाव्याहतियाँ | आहुति दे और जो पापोंसे मुक्ति चाहता हो, बह

समस्त पापोंका विनाश करनेवाली और सम्पूर्ण | उक्त मन्त्रसे तिलोंद्रार हवन करे। धान्य एवं

कामनाओंको देनेवाल मानी गयी है । विद्वान्‌ | पौली सरसोके हवनसे समस्त कामनाओंकी सिद्धि

पुरुष इनके द्वारा एक हजार घृताहुतियाँ देकर | होती है। परधनकी कामनावालेके लिये गूलरकी

देवताओंकी आराधना करे। परशुराम! इससे | समिधाओंद्वारा होम प्रशस्त भाना गया है । अन

मनोवाञ्छित कामनाकी सिद्धि होती है; क्योकि | चाहनेवालेके लिये दधिसे, शान्तिकी इच्छा

← पिछला
अगला →