५५० * संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण *
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बतानेवाली कथाएँ कहीं । इसी समय उन्होंने वहाँ। अष्टावक्र बोले--प्रभो! आप तीनों गुणोंसे
आते हुए एक श्रेष्ठ मुनिकों देखा, जिनके मुख | परे होकर भी समस्त गुणोंके आधार हैं। गुणोंके
और नेत्र प्रसन्नतासे खिले हुए थे। परमात्मा | कारण और गुणस्वरूप हैं। गुणियोंके स्वामी तथा
श्रीहरिके जिस रूपका वे ध्यान करते थे, उसे | उनके आदिकारण हैं। गुणनिधे ! आपको नमस्कार
हृदयमें न देखकर उनका ध्यान टूट गया था। अब | है। आप सिद्धिस्वरूप हैं। समस्त सिद्धियाँ आपकी
वे अपने सामने बाहर ही उस रूपका प्रत्यक्ष | अंशस्वरूपा हैं। आप सिद्धिके बीज और परात्पर
दर्शन करने लगे थे। उनका शरीर काला था। सारे | हैं। सिद्धि और सिद्धगणोंके अधीश्वर हैं तथा
अवयव टेढ़े-मेढ़े थे और वे नाटे तथा दिगम्बर | समस्त सिद्धोंके गुरु हैं; आपको नमस्कार है।
थे। उनका नाम था--अष्टावक्र। वे ब्रह्मतेजसे | वेदोंक बीजस्वरूप परमात्मन् आप वेदोंके जाता,
प्रकाशित हो रहे थे। उनका मस्तक जटाओंसे भरा वेदवान् और वेददेत्ताओंमें श्रेष्ठ हैं। बेद भी
था और वे अपने मुँहसे आग उगल रहे थे, मानो | आपको पूर्णतः नहीं जान सके हैं। रूपेश्वर! आप
मुखद्वारसे उनकी तपस्याजनित तेजोराशि हो प्रकट | वेदज्ञोंक भी स्वामी हैं; आपको नमस्कार है। आप
हो रही हो। अथवा वे ऐसे लगते थे, मानो उनके | ब्रह्मा, अनन्त, शिव, शेष, इन्द्र और धर्म आदिके
रूपमें स्वयं ब्रह्मतेज ही मूर्तिमान्-सा हो गया हो। | अधिपति हैं। सर्वस्वरूप सर्वे र! आप शर्व
उनके नख और मूँछ-दाढ़ीके बाल बढ़े हुए थे।| (महादेवजी)-के भी स्वामी हैं; सबके बीजरूप
वे तेजस्वी और परम शान्त थे तथा भयभीत हो | गोविन्द! आपको नमस्कार है। आप ही प्रकृति
भक्तिभावसे दोनों हाथ जोड़ मस्तक झुकाये हुए | और प्राकृत पदार्थ हैं। प्राज्ञ, प्रकृतिके स्वामी तथा
थे। उन्हें देख राधा हँसने लगीं; परंतु माधवने | परात्पर हैं। संसार-वृक्ष तथा उसके बीज और
उन्हें ऐसा करनेसे रोका और उन महात्मा | फलरूप हैं। आपको नमस्कार है। सृष्टि, पालन
मुनौद्धके प्रभावका वर्णन किया। मुनिवर अष्टावक्रने | और संहारके बीजस्वरूप ब्रह्मा आदिके भी ईश्वर!
गोविन्दको प्रणाम करके उनकी स्तुति कौ।|आप ही सृष्टि, पालन और संहारके कारण हैं।
पूर्वकालमें महात्मा भगवान् शंकरने उन्हें जिस | महाविराट् (नारायण)-रूपी वृक्षके बीज राधावल्लभ!
। ण पह. आपको नमस्कार दै । अहो! आप जिसके बीज
हैं, उस महाविराट्रूपी वृक्षके तीन स्कन्ध (तने)
ह~ ब्रह्म, विष्णु ओर शिव। वेदादि शास्त्र उसकी
र शाखा-प्रशाखाएँ हैं और तपस्या पुष्प है । जिसका
फल संसार है, वह वृक्ष प्रकृतिका कार्य है । आप
६ | हौ उसके भी आधार हैं, पर आपका आधार
| कोई नहीं है । सर्वाधार! आपको नमस्कार ह ।
स तेजःस्वरूप ! निराकार ! आपतक प्रत्यक्ष प्रमाणकी
्५। | पहुँच नहीं है । स्वरूप! प्रतयक्षके अविषय !
हि 2““ ; द -# स्वेच्छामय परमेश्वर! आपको नमस्कार है।
स्तोत्रका उपदेश दिया था, उसीको उन्होंने सुनाया। यों कहकर मुनिश्रेष्ठ अष्टावक्र श्रीकृष्णके