माताके बन्धु-बान्धवोंने दिया हो, जिसे पिताके
बन्धु-बान्धवोंने दिया हो तथा जो बर-पक्षकी
ओरसे कन्यके लिये शुल्करूपमें मिला हो एवं
विवाहके पश्चात् पतिकुलसे जो वधूको भेंट मिला
हो, वह सब “स्त्रीधन' कहा गया है। यदि स्त्री
संतानहीना हो--जिसके बेटी, दौहित्री, दौहित्र,
पुत्र और पौत्र कोई भी न हों, ऐसी स्त्री यदि
दिवंगत हौ जाय तो उसके पति आदि बान्धवजन
उसका धन ले सकते हैं। ब्राह्म, दैव, आर्षं और
प्राजापत्य-इन चार प्रकारके विवाहोंकी विधिसे
विवाहित स्त्रियोके निस्संतान मर जानेपर उनका
धन पतिको प्राप्त होता है। यदि वे संतानवती
रही हों तो उनका धन उनकी पुत्रियोंको प्राप्त
होता है और शेष चार गान्धर्व, आसुर्, राक्षस
तथा पैशाच विवाहकी विधिसे विवाहित होकर
मरी हुई संतानहीना स्त्रियोंका धन उनके पिताको
प्राप्त होता है॥ ३०--३२॥
जो कन्याका वाग्दान करके कन्यादान नहीं
करता, बह राजाके द्वारा दण्डनीय होता है तथा
वाग्दानके निमित्त वरने अपने सम्बन्धियों और
कन्या-सम्बन्धियोंके स्वागत-सत्कारमें जो धन खर्च
किया हो, वह सब सूदसहित कन्यादाता वर्को
लौटावे। यदि वाग्दत्ता कन्याकी मृत्यु हो जाय, तो
वर अपने और कन्यापक्ष दोनोंके व्ययका परिशोधन
करके जो अवशिष्ट व्यय हो, वही कन्यादातासे
ले। दुर्िक्षमें, धर्मकार्ये, रोग या बन्धनसे मुक्ति
पानेके लिये यदि पति दूसरा कोई धन प्राप्त न
होनेपर स्त्रीधनको ग्रहण करे, तो पुनः उसे लौटानेको
बाध्य नहीं है । जिस स्त्रीको श्वशुर अथवा पतिसे
स्त्रीधन न प्राप्त हुआ हो, उस स्त्रीके रहते हए
दूसरा विवाह करनेपर पति “ आधिवेदनिक "के
समान धन दे। अर्थात् अधिवेदन" (द्वितीय
विवाह )- में जितना धन खर्च होता हो, उतना ही
धन उसे भी दिया जाय। यदि उसे पति और
श्वशुरकी ओरसे स्त्रीधन प्राप्त हुआ हो, तब आधि-
वेदनिक धनका आधा भाग ही दिया जाय । विभागक्ता
अपलाप होनेपर यदि संदेह उपस्थित हो तो
कुदुम्बीजनों, पिताके बन्धु- बान्धवो, माताके बन्धु-
बान्धवो, पूर्वोक्तं लक्षणवाले साक्षियों तथा
अभिलेख -विभागपत्रके सहयोगसे विभागका
निर्णय जानना चाहिये । इसी प्रकार यौतक ( दहेजमें
मिले हुए धन) तथा पृथक् किये गये गृह और
क्षेत्र आदिके आधारपर भी विभागका निर्णय जाना
जा सकता है ॥ ३३--३६॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'दाय-विभागका कथन” नामक
दो सौ छप्पनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २५६ #
[य
दो सौ सत्तावनवाँ अध्याय
सीमा-विवाद, स्वामिपाल-विवाद, अस्वामिविक्रय, दत्ताप्रदानिक,
क्रीतानुशय, अभ्युपेत्याशुश्रूषा, संविद्व्यतिक्रम, वेतनादान
तथा द्यूतसमाह्वयका विचार
सीमा-विवाद
खडा होनेपर सामन्त (सब ओर उस खेतसे सटकर
दो गाँवोंसे सम्बन्ध रखनेवाले खेतकौ | रहनेवाले), स्थविर (वृद्ध) आदि, गोप (गायके
सीमाके विषयमे विवाद उपस्थित होनेपर तथा | चरवाहे ), सीमावर्ती किसान तथा समस्त वनचारी
एक ग्रामके अन्तर्वतीं खेतकी सीमाका झगड़ा | मनुष्य -ये सब लोग पूर्वकृत स्थल (ऊँची भूमि)