* ब्रह्मखण्ड ° ३९
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कर्मरूपी वृक्षका मूलोच्छेद करनेमें भी समर्थ होते | नहीं है। ब्राह्मणोंके मुखमें तथा ऊसर भूमिसे
हैं। देवतासे बढ़कर कोई बन्धु नहीं है। देवतासे | रहित उत्तम खेतमें मनुष्य भक्तिभावसे जो आहुति
बढ़कर कोई बलवान् नहीं है। देवतासे बढ़कर | डालता है, उसका फल उसे निश्चय ही प्राप्त
दयालु और दाता भी दूसरा कोई नहीं है। मैं समस्त | होता है। बल, सौन्दर्य, ऐश्वर्य, धन, पुत्र, स्त्री
देबताओंसे याचना करती हूँ कि बे मुझे पतिदान | और उत्तम पति--कोई भी पदार्थ तपस्याके बिना
दें। यही मुझे अभीष्ट है। धर्म, अर्थ, काम और | नहीं मिलता। अत: तपके बिना क्या हो सकता
मोक्षके फल देनेवाले देवता कल्पवृक्षरूप हैं।|है? जो भक्तिभावसे प्रकृति (दुगदिवी ) - का सेवन
इसलिये मैं इनसे याचना करती हूँ, ये मेरा मनोरथ | करता है, वह प्रत्येक जन्ममें विनयशील सद्गुणवतौ
सफल करें। यदि देवतालोग मुझे अभीष्ट पतिदान | तथा सुन्दरी प्राणवल्लभा पन्नीको प्राप्त करता है।
देंगे, तब तो इनका भला है; अन्यथा मैं इन सबको | प्रकृतिके ही वरते भक्त पुरुष लीलापूर्वक'
निश्चय हौ स्त्रीके वधका पाप दूँगी। इतना ही नहीं, अविचल लक्ष्मी, पुत्र-पौत्र, भूमि, धन और
मैं इन सबको दारुण एवं दुर्निवार शाप भी दे सकती | संततिको पाता है। भगवान् शिव कल्याणस्वरूप,
हूँ। सतीके शापकों टालना बहुत कठिन होता है। | कल्याणदाता और कल्याणप्राप्तिके कारण हैं। वे
किस तपस्यासे उसका निवारण किया जायगा? । ज्ञानानन्दस्वरूप, महात्मा, परमेश्वर एवं मृत्युञ्जय
शौनक! ऐसा कहकर शोकातुर पतिव्रता हैं। जो भक्तिभावसे उन महे श्वरका सेवन करता
मालावती उस देवसभामें चुप हो गयी। तब उन | है, वह पुरुष प्रत्येक जन्ममें सुन्दरी पत्नी पाता
श्रेष्ठ ब्राह्मणने उससे कहा। है और उनकी आराधना करनेवाली स्त्री प्रत्येक
ब्राह्मण बोले--मालावती! इसमें संदेह | जन्ममें उत्तम पति पाती है। भगवान् हरके वरसे
नहीं कि देबतालोग कर्मोका फल देनेवाले है;
परंतु वह फल तत्काल नहीं, देरसे मिलता है । |
ठीक वैसे ही, जैसे किसान बोये हुए अनाजका
फल तुरंत नहीं, देरसे पाता है। पतिव्रते ! गृहस्थ
पुरुष हलबाहेके द्वारा अपने खेतमें जो अनाज
बोता है, उसका समयानुसार अङ्कुर प्रकट होता
है। फिर समय आनेपर वह वृक्ष होता और
फलता भी है। तत्पश्चात् अन्य समयमे वह पकता
है ओर अन्य समयमें गृहस्थ पुरुष उसके फलको
पाता है। इसी प्रकार सवके विषयमे समझ लेना
चाहिये । प्रत्येक कर्मका फल देरसे ही मिलता
है । संसारे गृहस्थ पुरुष जो बीज बोता है, वही
भगवान् विष्णुकी मायासे समयानुसार अङ्कूर और |
वृक्ष होता है ओर यथासमय गृहस्थ पुरुषको |
उसके फलकौ उपलब्धि होती है । पुण्यात्मा पुरुष |
पुण्यभूमिमें चिरकालतक जो तप करता है, उसका |
मनुष्यको विद्या, ज्ञान, उत्तम कविता, पुत्रपौत्र,
उत्कृष्ट लक्ष्मी, धन, बल और पराक्रमकी प्रापि
होती है। जो मानव ब्रह्माजीका भजन करता है,
वह भी संतान और लक्ष्मीको पाता है । ब्रह्माजीके
वरदानसे मनुष्यको विद्या, ऐश्वर्य और आनन्दकौ
प्राप्ति होती है। जो मनुष्य भक्तिभावसे दीननाथ,
दिनेश्वर सूर्यकी आराधना करता है, वह निश्चय
ही यहाँ विद्या, आरोग्य, आनन्द, धन और पुत्र
पाता है। जो सबसे प्रथम पूजने योग्य, सर्वेश्वर,
सनातन, देवाधिदेव गणेशजीकी भक्तिभावसे पूजा
करता है, उसके जन्म-जन्ममें समस्त विष्लोंका
नाश होता है । बह सोते-जागते हर समय परम
आनन्दका अनुभव करता है । गणेशजीके वरदानसे
उसको ऐश्वर्य, पुत्र, पौत्र, धन, प्रजा, ज्ञान, विद्या
और उत्तम कवित्वकी प्राप्ति होती है। जो
देवताओंके स्वामी लक्ष्मीपति भगवान् विष्णुका
फल देनेवाले सचमुच देवता ही हैं; इसमें संशय | भजन करता है, वह यदि वर पानेका इच्छुक