मदन पुनेभंब वर्णन | [ ४३३
श्री देवी ने कहा-है वत्स ! आओ, है मनोजजन्मन् आपको अव कुछ
भी कहीं पर भय नहीं है । है अव्याहत वाशों वाले ! मेरे प्रसाद से आप
सम्पूर्ण जगत को मोहित करो ।५७। तुम्हारे बाणों के पातन से धेयं के विप्लव
होने से शम्भु पर्वत हितवान् की सुता पावंतो को शीघ्र ही व्याह लेंगे ।४८।
मेरे प्रसाद से तुमसे समुत्पन्न सहुस्नों करोड़ कामदेव सबके टेहों में प्रवेश
करके उत्तम रति को देग ।५६। मेरे प्रसाद से क्रुद्ध भी भगवान शम्भु
जिनको कि वेराग्य हो गया है,तुम्हारे वेह को दण्ध करने में समथे नहीं
होगे ।६०। भव को मोहित करने बाला कामदेब सब प्राणियों में अदृश्य
मूत्ति काला होकर रहेगा । अपनी भार्या के बिरह की आशंका वाला देह के
आधे भाग को दे देता । तुम्हारे वाण से आहत मानस वाले यह कातरात्मा
होकर प्रयाण कर गये हैं ।६१। आज से लेकश है कन्दर्प ! महान् मेरे प्रसाद
से जो तेरी निन्दा करेगे अथवा तुझसे विमुख विचार वाले होंगे उनको
अवश्य ही नपु सकता जन्म-जन्मो मे हो जायगी ।६२। जो पापिष्ठं ओर
मेरे भक्तों के द्रोही हैं उनको अगम्या अर्थात् न गमन करने के योग्य नारियों
में गिराकर विनाश करदो ।६३।
येषां मदीय पूजासु मद्धूक्तेष्वाहतं मन: ।
तेषां कामसुखं सवं संपादय समीप्सितम् ६४
इति श्रीललितादेव्या कृताज्ञावचनं स्मरः ।
तथेति शिरसा विश्रत्सांजलिनि्येयौ वतः ॥६५
तस्यानं गस्य सर्वेभ्यो रोमखूपेभ्य उत्थिताः ।
बहवः णोभनाकारा मदना विश्वमोहनाः । ६९
तैविमोह्य समस्तं च जगच्चक्रं मनोभवः ।
पुनः स्थाण्वाश्रमं प्राप चन्दर मौलेजिगीषया ।।६७
वसंतेन च मित्र ण सेनान्या लीतरोचिषा ।
रागेण पीठमर्देन मन्दानिलरयेण च ।।६८
पु स्कोकिलगलत्स्वानकाकलीभिश्च संयतः ।
श्रद्भारवीरसंपन्नो रत्यालिगितविग्रह: ।॥६€
जेवर णरासनं धुन्वन्प्रवीराणां पुरोगमः ।
मदनारेपभिम्खं प्राप्य निर्भय आस्थितः ॥॥७०