३४२ |] [ ब्रह्माण्ड पुराण
शक्तिचक्र की सेना को सत्र स्वामिनो शीघ्र ही पूजित हुईं और
विभाबरोी रात्रि के व्यतीत होने पर उन्होने रथेन्द्र को चारों ओर से परि-
बारित कर लिया था।८) मन्त्रिणी और दण्ड नायिका दोनों अपने यानों से
नीचे उतरी थीं और नीचे की ओर सेना को आवेशित करके तब रथ पर
समारूढ हुई थीं ।६। क्रम से नौ पर्बो को व्यतीत करके शीक्र क्रमों वे चलीं
थीं। उन-उनके सवगत शक्ति चक्र जो सम्यक् रीति से निवेदित थे वे युक्त
थों ।१०। मन्श्रिणी ओर दण्ड नायिका दोनों ने महाराज्ञो का सेवन किया
था । उन्होने देवो के आगे भूमि में साष्टाड्भ प्रणाम किया था और निवेदित
किया था ११ है अम्बिके ! महान प्रमाद हो गया है ऐसा हमने श्रवण
किया है | उन ल दैत्यो ने क्ट युद्ध के प्रकार से आपका अपकार किया
है ।१९२। वह दुष्ट बुरे आचार वाला प्रकाश में युद्ध से डरकर कुहक व्यवहार
से जय की सिद्धि चाहता है ।१३। यह तो देव की गति है कि उन सुरों के
द्रोहो दुष्ठों का हमारी स्वामिनी के शरीर में शर आदि का स्पर्श नहीं हुआ
और उसो से जीवित विद्यमान हैं ।१४।
एकावलांबन कृत्वा महाराज्ञि भवत्पदम् ।
वयं सर्वाहि जीवामः साधयामः समीहितम् ॥१५
अतोऽस्माभिः प्रकर्लयं श्रीमत्यंगस्य रक्षणम् ।
मायाविनश्च देत्येन्द्रास्तत्र मन्त्रो विधीयताम् ।। १६
आपत्कालेषु जेतव्या भंडाद्या दानवाधमाः ।
कूटयूद्ध न कुवन्ति न विशंति चमूभिमाम् १७
प्रथमयुद्धदिवसः-
तथा महेद्रशेलस्य कायं दक्षिणदेगतः ।
शिबिर बहुविस्तार' योजनानां शतावधि ॥१८
वहिन प्राकारवलयं रक्षणाथं विधीयताम् ।
अस्मत्सेनानिवेगस्य द्विषां दषंगमाय च ॥१६
जतयोजनमात्रस्तु मध्यदेशः प्रकल्प्यताम् ।
वहिनप्राकारचक्रस्य द्वार दक्षिणतो भवेत् (२०
यतो दक्षिणदेशस्थं शुन्यक' विद्विषां पुरम् ।
द्वारे च बहूव: कल्प्याः परिवारा उदायुधाः ॥२१