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* पुराणौ परमं पुण्यै भविष्य सर्वसौख्यदम्‌ «

[ संक्षिप्त भविष्यपुरााङ्क

भी फुल-पौत्र, आग्रेग्य एवं लक्ष्मीको प्राप्त करता है और

सूर्यल्लोकको भी प्राप्त हो जाता है।

भगवान्‌ कृष्णने कहा--साम्ब ! साघ॒ पासके

श पक्षकी पश्षमी तिथिकों एकभुक्त-व्रत और पह्नीको नक्तव्रत

करना चाहिये'। सुत्रत ! कुछ लोग सप्ममीमें उपवास चाहते

हैं और कुछ विद्वान्‌ षष्ठीमें उपवास और साप्रपी तिथिमें पारण

करनेका विधान कहते हैं ( इस प्रकार विविध मत हैं) ।

वस्तुतः पष्ठीफों उपथासकर भगवान्‌ सूर्यनारायणकी पूजा करनी

चाहिये। रक्तचन्दन, करवीर-पुष्प, गुणणुल धूप, पायस आदि

वैलेद्यॉंसे माघ आदि चार महीनॉलक सूर्यगारायणकी पूजा करनी

चाहिये। आत्मशुद्धिके लियि गोमयमिश्रित जलसे खान,

गोमयका प्राशन और यथादक्ति ब्राह्मण-भोजन भी कराना

चाहिये ।

ज्येष्ठ आदि चार महीनोंमें श्वेत चन्दन. श्वेत पुष्प, कृष्ण

अगरु धूप और उत्तम नैवेद्य सूर्यनारायणको अर्पण करना

चाहिये । इसमें पञ्चगव्यप्राशन कर ब्राह्मणोंकों उत्कृष्ट भोजन

कराना चाहिये।

आश्विन आदि चार पासो अगस्त्य-पुष्प, अपराजिते धूप

और गुड़के पु" आदिका नैवेद्य तथा इक्षुरस भगवान्‌ सूर्यकों

समर्पित करना चाहिये। यथादाक्ति ब्राह्मण-भोजन कराकर

आत्मशुद्धिके छिये काके जलसे सान करना चाहिये। उस

दिन कुओदकका ही परादान करे । ब्रतकी समाप्तिमें माघ मासकी

शुक्ला सप्रमीकों स्थका दान करे और सुर्यभगवान्‌की प्रसन्नताके

लिये रथयात्रोत्सतका आयोजन करे। महापुण्यदायिनी इस

सप्तमीको रथसप्तमी कहा गया है। यह महासप्ममीके नामसे

अभिहित है। रथसप्ममीकों जो उपवास करता है, वह कीर्ति,

धन, विद्या, पुत्र, आरोग्य, आयु और उत्तमोत्तम कन्ति प्राप्त

करता है! हे पुत्र | तुम भी इस बतको करो, जिससे तुम्हारे

सभी अभीष्टोंकी सिद्धि हो। इतना कहकर शङ्क, चक्र,

गदा-फ्घारी श्रीकृष्ण अन्तर्हित हो गये।

सुमनन्‍्तुने कहा -- राजन्‌ ! उनकी आज्ञा पाकर साप्बने भी

त्रत किया और कुछ ही समयमें रोगमुक्त होकर मनोवाज्छित

फल प्राप्त कर सिया" । (अध्याय ५० -५१)

सूर्यदेवके रथ एवं उसके साथ भ्रमण करनेवाले

देवता-नाग आदिका वर्णन

राजा झशतानीकने पूछा--मुने ! सूर्यनारावणकी

रथयात्रा किस विधानसे करनी चाहिये। रथ कैसा बनाना

चाहिये 2? इस स्थयात्राका प्रचलन मृत्युलोकमें किसके द्वारा

हुआ 2? इन सब बातोंको आप कृपाकर मुझे बतस्थयें ।

सुमन्तु मुनि बोछे--राजन्‌! किसी समय सुमे

पर्वतपर समासौन भगवान्‌ रुद्रने ब्रह्माजीसे पूछ--'ब्रह्मन्‌ !

इस लोकको प्रकाशित करनेत्राले भगवान्‌ सूर्य किस प्रकारके

स्थमें बैठकर भ्रमण करते हैं, इसे आप बतायें।'

ब्रह्माजीने कहा--क्रिटोचने ! सूर्यनारायण जिस

प्रकारके रथं बैठकर भ्रमण करते हैं, उसका मैं वर्णन करता

एक चक्र, तीन नाभि, पाँच अरे तथा स्वर्णमय अति

कात्तिमानू आठ वन्धे युक्त एवं एक नेमिसे सुसज्जित--

इस प्रकारके दस हजार योजन लेखे-चौड़े अतिद्ताय प्रकाशमान

स्वर्ण-रथमें विराजमान भगवान्‌ सूर्य घिचरण करते रहते हैं।

रथके उपस्थसे ईपा-दण्ड तीन-गुना अधिक है। यहीं उनके

सार्यथ अरुण बैठते हैं। इनके रधका जुआ सोनेका यना हुआ

है । रथमें वायुके समान वेगवान्‌ छन्दरूपी सात घोड़े जुते रहते

हैं। संवत्सरमें जितने अवयव होते हैं, ये ही र्यके अङ्गं हैं।

तोनों काल चक्रकी तीन नाभियाँ हैं। पाँच ऋतु अरे हैं, छठी

१० जिस दिन प्रायः दिक्‍का अधिक अंश कलाक साय चार वेकं ल्थाभग भोजन कय पुरो गत उपवास रहकर चित्या जाता है, उसे

एकरभूक्त-त्रत कहा आता हैं और दिनभर उपवासककर यारे भोजन करना 'नक्ततत' कडन्प्रता है ।

` गयमकरैकं विफयम वतर्राकर, व्रतकल्पदुम, णाम आदिके अतिरिक्त पदपूरण एवं वायुपुधगक्के माघ-माहात्म्थर्मे बहू विस्तारसे

त -विधानकय निरूपण हुआ है. और कृछ पक्वानि भो इसे दिन भगवान्‌ सदे स्थपर चदु करे आकाशकों प्रचम यात्रा करनेन उर्लेख् किया

गया है । यमे रमनलमौके हित भगवान्‌ रागका, ननकषटगत्व; दिन भगवार्‌ श्रकृत्णय प्रकट मानन उत्सव किया जाता है, जैसे ही रथसामीक

दिन भगवान सुर्यका प्राकट्य प्नकर उनके ल्टिरे श्रत उफ्वासके सोच विशेष अर्सा पणन्न कौ जवनौ है।

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