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१७० * पुराणं परणं पुण्य भविष्य स्वंसौख्यदम्‌ ज

[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क

ह्ाथोंमें वच्र लिये हुए, महाबलशाली, सफेद, नीले,

काले तथा लाल वर्णवाले, पृथ्वी, आका, पाताल तथा

अत्तरिक्षमें रहनेवाले पेनद्रगण निरन्तर आपका कल्याण करें

और शान्ति प्रदान करें। आग्रेयी दिशामे। रहनेवाले निरन्तर

ज्वलनदील, जपाकुसुमके समान लाख तथा स्प्रेहित वर्णवाले,

हाथमें निरन्तर दण्ड धारण करनेवाले सूर्यके भक्त भास्कर

आदि मेरे दवारा दिये गये बलि (नैवेध्च) को ग्रहण करें और

आपको नित्य सान्ति एवं कल्याण प्रदान करें। ईशानकोणपें

अवस्थित झान्ति-स्वभावयुक्त, त्रियुलधारी, अङ्गौ भस्म

धारण किये हुए, नीलकण्ठ, रक्तवर्णवाले, सूर्य-पूजनमें तत्पर,

अन्तरिक्ष, आकाश, पृथ्वी तथा स्वर्गमें निवास करनेवाले

रुद्रगण आपको नित्य शान्ति एवं कल्याण प्रदान करे ।

रत्रोके प्राकारो एव॑ महारत्रोंसे ज्ोभित, विद्याधर एवं

सिद्ध-गन्धर्योसे सुसेवित पूर्वदिज्ञामें अवस्थित अमरावती

नामयाली नगरीमें महाबली, वज्रपाणि, देवताओंके अधिपति

इन्द्र निवास करते हैं। वे ऐराबतपर आरूढ एवं स्वर्णकी

आभाके समान प्रकादामान हैं, सूर्यकी आराधनापें तत्पर तथा

नित्य प्रसन्न-चित्त रहनेवाले हैं, वे परम शान्ति प्रदान करें।

विविध देवगणोंसे व्याघ्र, भाँति-भाँतिके रोस शोधित,

अप्रिकोणमें अवस्थित तेजस्वती नामकी पुरी है, उसमें स्थित

जले हुए अंगारोके समान प्रकाशवाले, ज्वालमालाओंसे

व्याप्त, निरन्तर ज्वलन एवं दहनज्ञील, पापनाश्क, आदित्वकी

आयघनापे तत्पर अग्निदेव आपके पापोंका सर्वथा नाश करें एवं

दान्ति प्रदान करें। दक्षिण दिका संयमनीपुरी स्थित है, वह

नाना रसे सुरभित एवं सैकड़ों सुरासुरोंसे व्याप्त है, उसमे

रहनेवाले हरित-पिङ्गर नेत्रॉंवाले महामहिषपर आरूढ, कृष्ण

वख एवं मासे विभूषित, सूर्यकी आराधनामें तत्पर

महातेजस्वी यमराज आपको कषेम एवं आरोग्य प्रदान करें।

तैकत्यकोणमें स्थित कृष्णा नामकी पुरी है, जो महान्‌ रक्षोगण,

प्रेत तथा पिशाच आदिसे व्याप्त है, उसमें रहनेवाले रक्त माल

और बख्रॉंसे सुशोभित हाथमें तलवार लिये, कराल्यदन,

सूर्यकी आगधनामें तत्पर रक्षसोकि अधिपति निर्कतिदेव शान्ति

एवं धन-धान्य प्रदान करें। पश्चिम दिक्षामें झुद्धवती नामकी

नगरी है, वह अनेक किनरोंसे सेलित तथा भोगिगणोंसे व्याप्त

है। वहाँ स्थित हरित तथा पिङ्गर वर्णके नेत्रवाले यरुणदेव

प्रसन्न होकर आपको शान्ति प्रदान करें। ईशान-कोणमें स्थित

आदित्यागाधनरत आदित्यगतमानसः । शान्तिं करोतु तै देवस्तथा पापपरिक्षयम्‌॥

वैवस्वती पुरी रम्या दसिणेत महात्मतः। सुरामुरदाताकीर्णा नानारत्रोपशोभिता ॥

खर कुत्दनिभो देवो रक्तखन्वखभृषणः । सङ्गपाणिर्मह्यतेजाः कगाल्स्वदन्ेर्ज्वलः ॥

शद्रो वते नित्यपादित्याघने रतः । करोतु मे सदा इढन्ति घने धान्ये प्रयच्छतु ॥

प्रिये तु दिशे भागे पुरौ शुद्धवती सदा । ऋनाभोगिरस्कीर्वौ कतक्ित्ररमेविता ॥

तत्र॒ कुहदेनटुसैकशो हिपिङ्गलल्मेचनः । शन्ति कगोतु से प्रोतः शान्तः दान्तेन चेतसा ४

भूलोके तु भुवलेकि नियर्सति च ये सदा । देकदेवाः शभायुक्तः शान्ति कुर्वन्तु ते सद्‌ा ॥

अनलोके महत्लोंकि परल्लेके . गताश्च ये। ते सर्वे मुदिता देखाः इवन्ति कुर्नतु ते सादा ।।

सरस्वती सूर्यभक्ता शाक्तिदा विदध्यतु मे।

चारुचामीकरस्था._ या... सरोजकरपल्लखा । सूर्यंधकत्याश्निता देखो विभूति ते प्रयच्छतु ॥

हाोरेण. सुविच्चिक्रेम. भास्वत्कतकगेखत्प । अपराजिता सूर्थभक्ता करोतु विजय तब॥।

है.

(जराहम्वं १७८ | १ --४८)

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