तथा नपुंसकलिङ्ग होनेपर जुएके अर्थमें आता है।
कान्तार' शब्द बहुत बड़े जंगल और दुर्गम
क् वाचक है तथा पुल्लिज्ञ और नपुंसक-
दोनों लिड्रोंमें उसका प्रयोग होता है। ' हरि' शब्द
यम, वायु, इन्द्र, चन्द्रमा, सूर्य, विष्णु और सिंह
आदि अनेकों अर्थोंका वाचक है। 'दर' शब्द
स्त्रीलिड्रकों छोड़कर अन्य दो लिङ्गोपिं प्रयुक्त
होता है। उसका अर्थ है-भय और खंदक।
"जठर" शब्द उदर एवं कठिन अर्थका बोधक है।
“उदार' शब्द दाता और महान् पुरुषके अर्थमें
आता है। 'इतर' शब्द अन्य और नीचका वाचक
है। 'मौलि' शब्दके तीन अर्थ हैं-चूडा, किरीट
और बँधे हुए केश। 'बलि' शब्द कर (टैक्स या
लगान) तथा उपहार (भेंट आदि)-के अर्थमें
प्रयोग आता है। 'बल' शब्द सेना और स्थिरता
आदिका बोधक है। “नीवी' शब्द स्त्रीके कटिवस्त्रके
बन्थनरूप अर्थमें तथा परिषण (पूँजी, मूलधन
अथवा बंधक रखने)-के अर्थमें आता है। ' वृष”
शब्द शुक्रल (अधिक वीर्यवान्), चूहा, श्रेष्ठ
पुरुष, पुण्य (धर्म) तथा बैलके अर्थमें प्रयुक्त
होता है। 'आकर्ष' शब्द पासा तथा चौसरकी
बिछाँतके अर्थमें आता है । ' अक्ष' शब्द नपुंसकलिङ्ग
होनेपर इन्द्रियके अर्थम आता है तथा पिङ्ग
होनेपर पासा, कर्षं (सोलह मासेका एक
माप), गाड़ीके पिये, व्यवहार ( आय-व्ययकी
चिन्ता) और बहेड़ेके वृक्षके अर्थमें उपलब्ध
होता है। 'उष्णीष' शब्द किरीट आदिके अर्थमें
प्रयुक्त होता है। स्त्रीलिङ्गं 'कर्ष्' शब्द कुल्या
अर्थात् छोटी नदीका वाचक है। “अध्यक्ष
शब्द प्रत्यक्ष (द्रष्टा) और अधिकारीके अर्थमें
आता है। 'विभावसु' शब्द सूर्य ओर अग्निका
वाचक है। "रस" शब्द विष, वीर्य, गुण, राग,
द्रव तथा शृङ्गार आदि रसोंका बोध करानेवाला
यह क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले आठ दोषोंका समूह
है। 'कौपीन' शब्द नहीं करनेयोग्य खोरे कर्म
तथा गुषस्थानका वाचक है। “मैथुन' शब्द संगति
तथा रतिके अर्थमें आता है। ' प्रधान ' कहते हैं--
परमार्थबुद्धिको तथा 'प्रज्ञान' शब्द बुद्धि एवं चिह्न
(पहचान)-का वाचकं है। “क्रन्दन' शब्द रोने
और पुकारनेके अर्थमें आता है। “वर्ष्मन्' शब्द
देह और परिमाणका बोधक है । * आराधन ' शब्द
साधन प्राप्ति तथा संतुष्ट करनेके अर्थमे प्रयुक्त
होता है। “रत्न” शब्दका स्वजातिमें श्रेष्ठ पुरुषके
लिये भी प्रयोग होता है और ' लक्ष्मन्' शब्द चिह्न
एवं प्रधानका बोध करनेवाला है। 'कलाप' शब्द
आभूषण, मोरपंख, तरकस और संगठितके अर्थमें
भी उपलब्ध होता है। ' तल्प' शब्द शब्या,
अट्टालिका तथा स्त्रीरूप अर्थका बोधक है।
*डिम्भ' शब्द शिशु और मूर्खके अर्थमें प्रयुक्त
होता है। 'स्तम्भ' शब्द खंभे तथा जडवत् निश्चेष्ट
होनेके अर्थमें आता है। 'सभा' शब्द समिति तथा
सदस्योंका भी वाचक है॥ १३--२९॥
*रश्मि' शब्द किरण तथा रस्सीका वाचक है।
'धर्म' शब्दका प्रयोग पुण्य ओर यमराज आदिके
लिये होता है। 'ललाम' शब्द प, पुण्ड (तिलक),
घोड़ा, आभूषण, श्रेष्ठता तथा ध्वजा इत्यादि
अर्थे आता है। 'प्रत्यय' शब्द अधीन, शपथ,
ज्ञान, विश्वास तथा हेतुके अर्थमें प्रयुक्त होता है।
"समय" शब्दका अर्थ है--शपथ, आचार, काल,
सिद्धान्त और संविद् (करार) । 'अत्यय' अतिक्रमण
(उल्लह्नन) और कठिनाई अर्थमें तथा “सत्य
शब्द शपथ और सत्यभाषणके अर्थमें आता है।
"वीर्य" शब्द बल और प्रभावका तथा “रूप्य
शब्द परमसुन्दर रूपका वाचक है। 'दुरोदर' शब्द
चुल्लिज्र होनेपर जुआ खेलनेवाले पुरुष और जुएमें
लगाये जानेवाले दाँवका बोध करानेवाला होता है