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और चार मुख हों। वह सब आभूषणोंसे
विभूषित हो, उसे व्याप्नलर्भ पहनाया गया
हो । उसके सुखपर कुछ-कुछ हास्यकी छटा
छा रही हो। उसने अपने दो हाथोंमें वरद
और अभषकी पुद्रा धारण की हो और दोष
दो हाथोंपें घृणा मुद्रा और यड्भू ले रखे हों।
खायें चार हाथोंमे
डर
हिष्वमूर्तिके अद्कुपे परादाक्ति माहेश्वरी
शिवा आरूढ है । उनकी अवस्था सोलह
चर्षकी-सी है । वे सबका पन मोहनेयाली हैं
और महालश्ष्मीके नामसे विख्यात हैं।
इस प्रकार भावनापवी मूर्तिका निर्माण
और सकत्छीकरण करके उसमें मूर्तिमान्
परम कारण शिवका आवाहन और पूजन
करे । यहाँ स्वान करानेके लिये कपिला
गायके पञ्चगव्य और पञ्चापृतका संप्रा
करे । लिदेषत: चूर्ण और ब्रीजको भी एकत्र
करे । फिर पूर्वं ठिशामें मप्डल यनाकर उसे
रत्नचूर्ण आदिसे अकरा करके कमस्छकी
कर्णिकामें ईशान-कलशकी स्थापना करे ।
तत्पक्षात् उसके चारो ओर सद्योजात आदि
उन-उनके द्वारा मकेश्वरमों नहताये। फिर