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फूल अर्पण करने चाहिये। घृत आदिकी सौ

आहुतियाँ देकर पूर्णाहुति प्रदान करनेवाला साधक

सम्पूर्ण सिद्धियोंका भागी होता है। फिर बलि

अर्पित करके तीन या आठ कुमारियोंकों भोजन

करावे। पूजाका नैवेद्य शिवभक्तोंकों दे, स्वयं

अपने उपयोगमें न ले। इस प्रकार अनुष्ठान करके

कन्या चाहनेवालेको कन्या ओर पुत्रहीनको पुत्रकौ

प्राप्ति होती है । दुर्भाग्यवाली स्त्री सौभाग्यशालिनी

होती है। राजाको युद्धे विजय तथा राज्यकी

प्राप्ति होती है । आठ लाख जप करनेसे वाक्सिद्धि

प्राप्त होती है तथा देवगण वशमें हो जाते है ।

इष्टदेवको निवेदन किये चिना भोजन न करे।

बारये हाथसे भी अर्चना कर सकते है । विशेषतः

अष्टमी, चतुर्दशी तथा तृतीयाको ऐसा करनेकी

विधि है॥ १९--२२ ६॥

अब मै मृत्युंजयकी पूजाका वर्णन करूँगा।

कलशमें उनकी पूजा करे । हवनमें प्रणव मृत्युंजयकी

मूर्ति है और 'ओं जं सः ।'-- इस प्रकार मूलमन्त्र

है।'ओं जं सः वौषट्‌ । '-- ऐसा कहकर अर्चनीय

देवता मृत्युंजयको कुम्भमुद्रा दिखावे। इस मन्त्रका

दस हजार बार जप करे तथा खीर, दूर्वा, घृत,

अमृता (गुडुची), पुनर्नवा (गदहपूर्ना), पायस

(पयःपक्त वस्तु) और पुरोडाशका हवन करे ।

भगवान्‌ मृत्यजयके चार मुख और चार भुजाएँ

हैं। वे अपने दो हाथोंमें कलश और दो

हाथोंमें वरद एवं अभयमुद्रा धारण करते हैँ ।

कुम्भमुद्रासे उन्हें स्नान कराना चाहिये! इससे

आसेग्य, ऐश्वर्य तथा दीर्घायुकी प्राप्ति होती है ।

इस मन्त्रसे अभिमन्त्रित ओषध शुभकारक होता

है । भगवान्‌ मृत्युंजय ध्यान किये जानेपर दुर्मुत्युको

दूर करनेवाले हैं, इसलिये उनकी सदा पूजा होती

है ॥ २३--२७॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “गौरी आदिकी पूजाका वर्णन” नामक

तीन सौ छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३२६ ॥

पा

तीन सौ सत्ताईसवाँ अध्याय

विभिन कर्मोमें उपयुक्त माला, अनेकानेक मन्त्र, लिड्ड-पूजा

तथा देवालयकी महत्ताका विचार

भगवान्‌ महेश्वर कहते हैं-- कार्तिकेय ! व्रतेश्वर

और सत्य आदि देवताओंका पूजन करके उनको

ब्रतका समर्पण करना चाहिये। अरिप्ट-शान्तिके

लिये अरिष्टमूलकी माला उत्तम है। कल्याणप्राप्तिके

लिये सुवर्णं एवं रलमयी, मारणकर्ममें महाशङ्खमयी,

शान्तिकर्म शङ्घमयी और पुत्रप्राप्तिक लिये

मौक्तिकमयी मालासे जप करे। स्फटिकमणिकी

माला कोष-सम्पत्ति देनेवाली और रुद्राक्षकी

माला मुक्तिदायिनी है। उसमें आँवलेके बराबर

रुद्राक्ष उत्तम माना गया है। मेरुसहित या मेरुहीन

माला भी जपमें ग्राह्म हैं। मानसिक जप करते

समय मालाके मणियोंकों अनामिका और अङ्गु्ठसे

सरकाना चाहिये। उपांशु जपमें तर्जनी और

अड्गुष्ठके संयोगसे मणियॉंकी गणना करे; किंतु

जपमें मेरुका कभी उल्लज्वन न करे। यदि प्रमादवश

माला गिर जाय, तो दो सौ बार मन्तरजप करे।

घण्टा सर्ववाद्यमय है। उसका वादन अर्थ-सिद्धि

करनेवाला है। गृह और मन्दिरमें शिवलिङ्गकी,

गोमय, गोमूत्र, वल्मीक-मृत्तिका, भस्म और

जलसे शुद्धि करनी चाहिये॥ १--६॥

कार्तिकिय! (3७ नमः शिवाय '- यह मन्त्र

सम्पूर्णं अभीष्ट अर्थोको सिद्ध करनेवाला है।

बेदमें ' पञ्चाक्षर" और लोकमें " षडक्षर ' माना गया

है। परम अक्षर ओंकारे शिव सूक्ष्म वटबीजमें

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