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पूर्वोक्त उपासनाके समय द्रोणपुष्य, कमल
और बिल्वपत्रको सिरपर धारण न करे। पञ्चमी
और सप्तमीके दिन क्रमशः लवण और आँवलेका
परित्याग कर् दे। साधक खीरका भोजन करके
श्रीसुक्तका जप करे तथा श्रीसुक्तसे ही श्रीदेवीका
अभिषेक करे। आवाहनसे लेकर विसर्जनपर्यन्त
सभी उपचार-अर्पण श्रीसूक्तकी ऋचाओंसे करता
हुआ ध्यानपूर्वकं श्रीदेवीका पूजन करें। बिल्व,
घृत, कमल और खीर--ये वस्तुएँ एक साथ या
अलग-अलग भी श्रीदेवीके निमित्त होममें उपयुक्त
हैं। यह होम लक्ष्मीकी प्राप्ति एवं वृद्धि करनेवाला
है ॥ १५--१७॥
विषं (म), हि, मज्जा (ष), काल (म),
अग्नि (र), अत्रि (द), निष्ठ (इ), नि, स्वाहा
( मर्दिषमर्दिनि स्वाहा )-- यह भगवती महिषमर्दिनी
(महालक्ष्मी) -का अष्टाक्षर-मन्त्र॒ कहा गया
है॥ १८॥
"ॐ हीं महामहिषमर्दिनि स्वाहा ।'-- यह
मूलमन्त्र है । इसका पञ्चाङ्गन्यास इस प्रकार
करे-' महिषमर्दिनि हं फट्, हदयाय नमः।
महिषशब्रत्सादिनि हं फट्, शिरसे स्वाहा । महिषं
भीषय हुं फट्, शिखायै वषट् । महिषं हन हन देवि
हुं फट्, कवचाय हुम्। महिषसूदनि हुं फट्,
अस्राय फट् ।'
यह अङ्गोंसहित 'दुर्गाहदय' कहा गया है, जो
सम्पूर्ण कामनाओंको सिद्ध करनेवाला है । दुगदिवीका
निम्नाङ्कित प्रकारसे पीठ एवं अष्टदल-कमलपर
पूजन करे ॥ १९-२०॥
"ॐ हूं दुर्गे दुर्गे रक्षणि स्वाहा '- यह दुर्गाका
मन्त्रे है। अष्टदलपद्मपर दुर्गा, वरवर्णिनी, आर्या,
कनकप्रभा, कृत्तिका, अभयप्रदा, कन्यका और
सुरूपा--इन शक्तियोके क्रमशः आदिके सस्वर
अक्षरोंमें बिन्दु लगाकर उन्हीं बीजमन्त्रोंसे युक्त
नाममन्त्रोंद्रारा यजन करे! वधा दुं दुर्गायै नमः '
इत्यादि। इनके साथ क्रमश: चक्र, शङ्खं, गदा,
खङ्ग, बाण, धनुष, अङ्कुश और खेट-इन
अस्त्रोंकी भी अर्चना करे। अष्टमी आदि तिथियोंपर
लोकेश्वरी दुर्गाकी पूजा करे । दुर्गाकी यह उपासना
पूर्ण आयु, लक्ष्मी, (आत्मरक्षा) एवं युद्धमें विजय
प्रदान करनेवाली है। साध्यके नामसे युक्त मन्त्रसे
तिलका होम 'वशीकरण' करनेवाला है। कमलोंके
हवनसे “विजय' प्राप्त होती है। शान्तिकी कामना
करनेवाला दू्बसि हवन करे। पलाश-समिधाओंसे
पुष्टि, काकपक्षके हवनसे मारण एवं विद्वेषणकर्म
सिद्ध होते हैं। यह मन्त्र सभी प्रकारकी ग्रहबाधा
एवं भयका हरण करता है ॥ २१--२६॥
ॐ दु दु रक्षणि स्वाहा '-- यह अङ्गसहित
“जय दुर्गा" बतलायी गयी है। यह साधककीौ
रक्षा करती है। “मैं श्यामाङ्गी, त्रिनेत्रभूषिता,
चतुर्भुजा, शङ्ख, चक्र, शूल एवं खङ्गधारिणी
रौद्ररूपिणी रणचण्डीस्वरूपा हूँ'--ऐसा ध्यान करे ।
युद्धके प्रारम्भे इस “जयदुर्गा'का जप करे।
विजयके लिये खड़ आदिपर दुर्गाका पूजन
करे ॥ २७--२९॥
"ॐ नमो भगवति ज्वालामालिनि
गृध्चगणपरिवृते चराचररक्षिणि स्वाहा ' - युद्धके
निमित्त इस मन्त्रका जप करे। इससे योद्धा
शत्रुओंपर विजय प्राप्त करता है ॥ ३०-३१॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें " लक्मौ आदिक एूजाका वर्णन” नामक
तीन सौ आठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३०८॥
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