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पृष्वीसे देवसमुदायके चले आनेपर प्रतापी राजा दिषोदाखने

यणो निर्न राज्य किया । उन्होंने खदाीपुरीमे सुरद

राजघानी फनाकर धर्मपूर्वक प्रजाका पालन करते हुए सबको

उन्नतिशीछ बनाया | हांयियोंसे भी अधिक बलवान्‌ महाराज

दियोदासका अपराध कमी नागल्लोग भी नहीं करते थे ।

दानष मी मानवकी आकृति धारण करके उनकी सेवा करते

थे। गृह्यक लोग सब ओर मन्याम राजाके गुप्तचर बनकर

रते थे । उनके समामवनके ऑगनमें बैंठे दए विद्वानों

एयं मन्त्रियोंको फिसीने कभी शाज््लौद्धारा पराजित नहीं किया

तथा रणाङ्गणर्गे टे हुए उनके योद्ाओंकों कभी किसीने

अल्न-शस्ोदारा परास्त नहीं श्वा । उनके राज्यमें कमी

ऐसे छोग नहीं देखे गये, ओ पदभ्नष्ट तथा दूसरोंके देष.

माजन हों । उस समय सब प्रजा अपने-अपने पदपर प्रतिष्ित

एवं छुछी थी । राजा दियोदासके राज्यमें सभी गष ईति.

भीतिसे रदित थे | कोई गाँव ऐसा नहीं था, किसकी रक्षाके

लिये राजकर्मचारी उपस्थित न हों । षर-परम लोग कुनेरके

समान धन दान करनेवाले ये ।

इस प्रकार काझीमें राज्य करते हुए; दियोदासके अस्सी

हजार चप एक दिनके समान व्यतीत हो गये । अपने औरस

पृश्नी भाँति पजाका पान करते रहनेवाल्े राजा रिपुक्रय

( दिवोदास ) के द्वारा यदेते भी अधर्मका संप्रह

ये

किसी छतु राजाका आकमत होनॉ--ये छः प्रकारकी ईतियाँ रै ।

२, सषि, विग्रह, यान, आसन, द्रैधोभाव और सम्वश्रय---

ये छः गुण टै । इनमें बसर और आवश्वकताके आनुखार शस

भेल करना या रखना सन्धि, इससे कषा छेड़ना रिह, स्वयं

आक्रमग करना यान, बोग्य समय अतीक्षामें बैरे सना आसन,

दुएंगो नीति ब्तना द्वैधोभाव और अपेते रवाद्‌ राजाको शरण

सेना समाभ्य कहत्मठा है ।

३- श्रभुझक्ति, उत्साहराक्ति और मन्ति -ये तीन प्रकारकों

झक्तियों हैं । कोष और दण्ड आदिके सम्बन्धकी शक्ति प्रभुशकि/,

सनि आदिके सम्बन्धकी शक्ति मन्वककि आर स्म

प्रकट करने तषा विजय प्रकत करनेकी शक्ति उत्साहज्क्ति

ऋदणातों दे । ह

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थो । चञ्चः वाचकः वच्चकः

शवे ओर मदिरा बेचनेबाठे भी नदीं ये |

घोष मुनायी देता या । पद-पदपर शास्त्रचर्चा मुनायी

थी । सब ओर श्म वार्ताछाप होते और आनन्दम मङ्गलगीत

गाये जाते ये । मांसभक्षी, ऋण लेनेवाले और चोर भी

उनके राज्यमें नहीं थे। पुत्र फिताके चरणोंफी पूजा,

देबाराधना, उपवा, भत, तीर्थ और देबोपासनादो परम धर्म

समझकर करते ये | नारियों अपने पतिके चरणोंकी पूजा,

उनके बचनोंकों सुनना और स्वामीकी आलाका पालन करना

अपना श्र धर्म समझती थीं | सब लोग अपने षदे माईकी

|

कं

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१, उच्च बके पुर्व तथा नोच वणक सीते उत्पक्त शुभा मनुष्य

अनुलोम ङ्‌] जाता है ।

२. लौच कके पुरुष और ख बर्जकी सीते उत्पन्न इुआ मनु*व

बि्येमर खडा जाता है ।

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