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छब्बीसवाँ अध्याय
नन्दबावासे गोपोंकी श्रीकृष्णके प्रभावके विषयमे बातचीत
श्रीशुकदेवजी कहते हैं--परीक्षित् ! व्रजके गोप
भगवान् श्रीकृष्णके ऐसे अलौकिक कर्म देखकर बड़े
आश्चर्ये पड़ गये। उन्हें भगवानकी अनन्त शक्तिका तो
पता था नहीं, वे इकड्ठें होकर आपसे इस प्रकार कहने
लगे-- ॥ १॥ 'इस बालकके ये कर्म बड़े अलौकिक
हैं। इसका हमारे-जैसे गैंबार ग्रामीणोंमें जन्म लेना तो
इसके लिये बड़ी निन्दाकी बात है। यह भला, कैसे उचित
हो सकता है॥ २॥ जैसे गजराज कोई कमल उखाडकर्
उसे ऊपर उठा ले और धारण करे, वैसे ही इस नन्दे-से
सात वर्षक बालकने एक ही हाथसे गिरिराज गोवर्द्धनको
उखाड़ लिया और ख्ेल-खेलमें सात दिनोंतक उठाये
रक्खा ॥ ३॥ यह साधारण मनुष्यके लिये भला, कैसे
सम्भव है ? जब यह नन्हा-सा बच्चा था, उस समय बड़ी
भयङ्कर राक्षसी पूतना आयी और इसने आँख बंद
किये-किये ही उसका स्तन तो पिया ही, प्राण भी पी
डाले--ठीक वैसे ही, जैसे काल शरीरकी आयुको निगल
जाता है॥४॥ जिस समय यह केवल तीन महीनेका था
ओर छकड़ेके नीचे सोकर रो रहा था, उस समय रोते-रोते
इसने ऐसा पाव उक्ला कि उसकी ठोकरसे बह बड़ा भारी
छकड़ा उलटकर गिर ही पड़ा ॥ ५॥ उस समय तो यह
एक ही वर्षका था, जब दैत्य बवंडरके रूपमें इसे बैठे-बैठे
आकाशमें उड़ा ले गया था। तुम सब जानते ही हो कि
इसने उस तृणावर्त दैत्यको गला घोंटकर मार डाला ॥ ६॥
उस दिनकी बात तो सभी जानते हैं कि माखनचोरी करने
पर यशोदारानीने इसे ऊखलसे बाँध दिया था। यह
घुटनोंके नल बकैंया खचते-खीचते उन दोनों विशाल
अर्जुन वृक्षेके बीचमेंसे निकल गया ओर उन्हे उखाड़ ही
डाला ॥ ७ ॥ जब यह म्वालबाल और बलरामजीके साथ
बछड़ोंको चरानेके लिये बनमें गया हुआ था, उस समय
इसको मार डालनेके लिये एक दैत्य बगुलेके रूपमें आया
और इसने दोनों हाथोंसे उसके दोनों ठोर पकड़कर उसे
तिनकेकी तरह चीर डाला ॥ ८ ॥ जिस समय इसको मार
डालनेकी इच्छसे एक दैत्य बछड़ेके रूपमेँ बछड़ोंकि
झुंडमें घुस गया था, उस समय इसने उस दैत्यको
खेल-ही-खेलमे मार डाला और उसे कैथके पेड़ोंपर
पटककर उन पेड़ोंको भी गिरा दिया॥९॥ इसने
बलरमजौके साथ मिलकर गधेके रूपमे रहनेवाले
धेनुकासुर तथा उसके भाई-बन्चुओंको मार डाला और
पके हुए फलोये पूरण तालवनको सबके लिये उपयोगी
ओर मङ्गलमय बना दिया ॥ १०॥ इसीने बलशाली
बलरामजीके द्वारा क्रूर प्रलम्बासुरको मरवा डाला तथा
दावानलसे गौओं और ग्वालबालोको उवार्
लिया ॥ ११ ॥ यमुनाजले रहनेवाला कालियनाग कितना
विषैला था ? परन्तु इसने उसका भी मान मर्दन कर उसे
बलपूर्वक दहसे निकाल दिया और यमुनाजीका जल
सदाके लिये विषरहित-- अमृतमय बना दिया ॥ १२॥
नन्दजी ! हम यह भी देखते हैं कि तुम्हारे इस साँवले
बालकपर हम सभी त्रजवासियोंका अनन्त प्रेम है और
इसका भी हमपर स्वाभाविक ही स्नेह है। क्था आप
बतला सकते हैं कि इसका क्या कारण है॥ १३ ॥ भला,
कहाँ तो यह सात वर्षका नन्दा-सा बालक और कहाँ इतने
बड़े गिरिराजको सात दिनौतक उठाये रखना ! ब्रजराज !
नृ तो तुम्हे पुत्रके सम्बन्धे हमें बड़ी शङ्का हो रही
॥ ६४॥
नन्दबायाने कहा-- गोपो ! तुमलोग॒ सावधान
होकर मेरौ बात सुनो । मेरे बालकके विषयमे तुम्हारी शङ्का
दूर हो जाय । क्योकि महर्षि गर्गने इस बालकको देखकर
इसके विषयमे ऐसा ही कहा था ॥ १५॥ "तुम्हारा यह
बालक प्रत्येक युगम शरीर ग्रहण करता है । विभिन्न
युगोमे इसने श्वेत, रक्त और पीत--ये भिन-भिन्न रेग
स्वीकार किये थे । इस वार यह कृष्णवर्ण हुआ है ॥ १६॥
नन्दजी ! यह तुम्हारा पुत्र पहले कहीं वसुदेवके घर भी
पैदा हुआ था, इसलिये इस रहस्यको जाननेवाले लोग
"इसका नाम श्रीमान् है'--ऐसा कहते है ॥ १७॥
तुम्हारे पुत्रके गुण ओर कमोके अनुरूप और भी
बहुत-से नाम हैं तथा बहुत-से रूप। मैं तो उन
नामोंको जानता हूँ, परन्तु संसारके साधारण लोग नहीं
जानते ॥ १८॥ यह तुमलोगोका परम कल्याण करेगा,