(प्रथम प्रकार) महाश्रिये महाविद्युत्प्रभे स्वाहा,
हृदयाय नमः। श्रियै देवि विजये स्वाहा, शिरसे
स्वाहा । गौरि महावले बन्ध-बन्ध स्वाहा, शिखायै
वषट्। धृतिः स्वाहा, कवचाय हुम्। महाकाये
पद्महस्ते हुँ फद्, अस्त्राय फट्। (दूसरा प्रकार)
'श्रिये स्वाहा, हृदयाय नमः। श्रीं फट्, शिरसे
स्वाहा । श्रीं नमः' शिखायै वषट् । श्रियै प्रसीद
नमः। कवचाय हुम्। श्रीं फट्, अस्त्राय फट् ।'
[इसी तरह अन्यान्य प्रकार भी तन्त्र-ग्रनथोमे कहे
गये हैं।] ॥ १-२॥
--इस प्रकार ` श्री'-मन्त्रके नौ अङ्गन्यास | वासुदेव
बतलाये गये है । उनमेंसे किसी एकका आश्रय ले'।
पद्माक्षकी मालासे पूर्वोक्त मन््रका तीन लाख या
एक लाख बार जप एशर्य प्रदान करनेवाला है ।
साधक लक्ष्मी अथवा विष्णुके मन्दिरमे श्रीदेवोका
पूजन करके धन प्राप्त कर सकता है । खदिरकाष्टसे
प्रज्वलित अग्रिमे धृतमिश्रित तण्डुलोंकी एक
लाख आहुतियाँ दे । इससे राजा वशीभूत हो जाता
है तथा लक्ष्मीकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।
श्रीमन्त्रसे अभिमन्त्रित सर्षपजलसे अभिषेक करनेपर
सब प्रकारकी ग्रहबाधा शान्त होती है । एक लाख
बिल्वफर्लोका होम करनेसे लक्ष्मीकी प्राप्ति और
धनकी वुद्धि होती है ॥ ३--५३ ॥
साधक चार द्वस युक्त निम्नाद्धित 'शक्रवेश्म ' का
चिन्तन करे। पूर्वद्वारपर क्रीडामें संलग्न दोनों
१. 'शारदातिलक' ८। २ की टीका अप्रिपुराणोक्त द्विविध
अङ्गन्यास इसी प्रकार उद्धत किये गये हैं। परंतु मूलमें ˆ षद्
दीर्घपुक्तबरोजेन कुर्यादङ्गानि षट् क्रमात्।' कहा है; उसके अनुसार,
* री दयाय तम:। श्री शिरसे स्याह । ध्र शिखायै वषट् । मैं कबचाय
हुम्। श्रौ नेजजयाय वौयर्। श्र: अस्त्राय फट्।' इस प्रकार न्यास
करै।
२. शक्रयैरम - यत्तरका इस प्रकार निर्माण करना चाहिये--
भुजाओंको ऊपर उठाये हुए श्वेत कमलको धारण
करनेवाली श्यामवर्णा बामनाकृति बलाकौका ध्यान
करे। दक्षिणद्वारपर ऊपर उठाये हुए एक हाथमे
रक्तकमल धारण करलेवाली श्रेताड़ी वनमालिनौका
चिन्तन करे। पश्चिमद्वारपर दोनों हाथोंकों ऊपर
उठाकर श्वेत पुण्डरीककों धारण करनेवाली हरितवर्णा
विभीषिका नामवाली श्रीदूतीका ध्यान करें। उत्तरद्वारपर
शाङ्करीकी धारणा करे। 'शक्रवेश्म'के मध्यमें
अष्टदल कमलका निर्माण करें। कमलदलोंपर
क्रमशः शङ्ख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए
, संकर्षण, प्रद्युम्न ओर अनिरुद्धका ध्यान
करे। उनकी अङ्गकान्ति क्रमशः अञ्जन, दुग्ध,
केसर ओर सुवर्णके समान है । वे सुन्दर बस्त्रोंसे
विभूषित हैँ । उस अष्टदल कमलके आग्नेय आदि
दलोंपर गुग्गुलु, कुरण्टक, दमक ओर सलिल
नामक दिग्गजोंकी धारणा करे। ये चारों स्वर्णं -
कलर्शोको धारण करनेवाले हैँ । कमलकी कर्णिकामें
श्रीदेवीका स्मरण करे । वे चार भुजाओंसे युक्त हैं।
उनकी अङ्गकान्ति सुवर्णके समान है । उनकी
ऊपर उठी हुई दोनों भुजाओंमें कमल है तथा
दक्षिणहस्तमे अभयमुद्रा ओर वामहस्तमें वरमुद्रा
सुशोभित हो रही है । वे शुभ्र एवं सुवासित वस्त्र
तथा गलेमे एक श्वेत माला धारण करती हैं। उन
श्रीदेवीका ध्यान एवं सपरिवार पूजन करके मनुष्य
सब कुछ प्राप्त कर लेता हैः ॥ ६--१४\॥
आक्र कातज पूर्व द)