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भगवान्‌ रुदर प्रसन हो जायं । इनको प्रसन्नता-

मात्रसे सर्वज्ञता सुलभ हो जाती है ।' ब्रह्माजीके

ऐसा कहनेपर वे देवता भगवान्‌ रुद्रकौ स्तुति

करने लगे।

देवगण बोले -- महात्मन्‌! आप देवताओकि

अधिष्ठाता, तीन नेत्रबाले, जटा-मुकुटसे सुशोभित

तथा महान्‌ सर्पका यज्ञोपवीत पहनते है । आपके

नेत्रोंका रंग कुछ पीला और लाल है । भूत और

वेताल सदा आपकी सेवामें संलग्न रहते हैं।

ऐसे आप प्रभुको हमारा नमस्कार है। भगके

नेत्रको बीधनेवाले भगवन्‌! आपके मुखसे भयंकर

अट्टहास होता है। कपदीं ओर स्थाणु आपके

नाम रै । पूषाके दाँत तोड़नेवाले भगवन्‌! आपको

हमारा नमस्कार है। महाभूतोंके संरक्षक प्रभो!

आपको हम नमस्कार करते हैँ । प्रभो ! भविष्ये

वृषभ या धर्म आपकी ध्वजाका चिह्न होगा और

त्रिपुरका आप विनाश करेंगे। साथ ही आप

अन्धकासुरका भी हनन करेंगे। भगवन्‌! आपका

कैलासपर सुन्दर निवास-स्थान है । आप हाथीका

चर्म वस्त्रूपसे धारण करते है । आपके सिरका

ऊपर उठा हुआ केश सबको भयभीत कर देता

है अतः आपका ' भैरव ' नाम है। प्रभो ! आपको

हमारा बारंबार नमस्कार है। देवेश्वर! आपके

तीसरे नेत्रसे आगकौ भयंकर ज्वाला निकलती

रहती है । आपने चनद्रमाको मुकुट बना रखा है ।

आगे आप कपाल धारण करनेका नियम पालन

करेगे । एसे आप सर्वसमर्थ प्रभुको हमारा नमस्कार

है। प्रभो! आपके द्वारा ' दारुवन' का विध्वंस

होगा। नीले कण्ठ एवं तीखे त्रिशूलसे शोभा

पानेवाले भगवन्‌। आपने महान्‌ सर्पको कङ्कण

बना रखा है, ऐसे तिग्म त्रिशूली (तेज त्रिशूलवाले)

आप देवेश्वरको नमस्कार है। यज्ञमूर्तें! आप

हाथमे प्रचण्ड दण्ड धारण करते हैं। आपके

* संक्षिप्त श्रीवराहपुराण *

[ अध्याय ३३

मुखमे वडवानलका निवास है। वेदान्तके द्वारा

आपका रहस्य जाना जा सकता है। ऐसे आप

प्रभुकों बारंबार नमस्कार है। शम्भो! आपने

दक्षके यज्ञका विध्वंस किया है। शिव! जगत्‌

आपसे भय मानता है। भगवन्‌। आप विश्वके

शासक हैं। विश्वके उत्पादक तथा कपर्दी नामके

जटाजूटको धारण करनेवाले महादेव! आपको

नमस्कार है।

इस प्रकार देवताओंद्वारा स्तुति किये जानेपर

प्रचण्ड धनुषधारी सनातन शम्भु बोले- सुरगणो!

मैं देवताओंका अधिष्ठाता हूँ। मेरे लिये जो भी

काम हो, वह बताओ।'

देवताओने कहा- प्रभो! आप यदि प्रसन्न

हैं तो हमें वेदों एवं शास्त्रोंका सम्यक्‌ प्रकारसे

ज्ञान यथाशीघ्र प्रदान करनेकी कृपा कर । साथ

हो रहस्यसहित यज्ञोंकी विधि भी हमें ज्ञात

हो जाय।

महादेवजी बोले--देवताओ! आप सब-

के-सब एक ही साथ पशुका रूप धारण कर

लें और मैं सबका स्वामी बन जाता हूँ, तब

आप सभी अज्ञानसे मुक्ति पा जायँंगे। फिर

देवताओंने भगवान्‌ शम्भुसे कहा - बहुत ठीक,

ऐसा ही होगा। अब आप सर्वथा पशुपति हो

ग्ये।' उस समय ब्रह्माजीका अन्तःकरण

प्रसनतासे भर गया। अतः उन्होंने उन पशु-

पतिसे कहा -' देवेश! आपके लिये चतुर्दशी

तिथि निश्चित है-इसमें कोई संशय नहीं। जो

द्विज उस चतुर्दशी तिथिके दिन श्रद्धापूर्वकं

आपकी उपासना करें, गेहूँसे तैयार किये पक्तान-

द्वारा अन्य ब्राह्मणोंकों भोजन करायें, उनपर आप

परम संतुष्ट हों और उन्हें उत्तम स्थानका

अधिकारी बना दें।'

इस प्रकार अव्यक्तजन्मा ब्रह्माजीके कहनेपर

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