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+ पुराणै परं पुण्यै भविष्य सर्वसौख्वदम् «
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणा्क
उपवास करता है तथा सप्तमीकों दिनमें उपवासकर भक्ष्य-
भोज्योंके साथ विविध शाक-पदार्थोक्रो भगवान् सूर्यके लिये
अर्पण कर आह्मणोंको देता है तथा रात्रिमें मौन होकर भोजन
करता है, वह अनेक प्रकारके सुखोंका भोग करता है तथा
सर्वत्र विजय प्राप्त करता एवं अन्तये उत्तप विधानपर चढ़कर
सूर्यलोकमें कई पन्वन्तरोंतक निवास कर पृथ्वीपर पुत्र-पौत्रोंसे
समन्वित चक्रवर्ती राजा होता है तथा दीर्घकालपर्यन्त
निष्कण्टकं राज्य करता है।
यजा कुरुने इस सप्तमी-क्रतका बहुत कालतक अनुष्ठान
किया और केवल झञाकका हौ भोजन किया । इसीसे उन्होंने कुरू-
क्षेत्र नामक पुण्यक्षेत्र प्राप्त किया और इसका नाप रखा धर्मक्षेत्र ।
सप्तमो, नवमी, पष्ठ, तृतीया ओर पञ्चमी--ये तिथियाँ बहुत
उत्तम है और खी-पुरुयोको मनोवाच्छिति फल प्रदान करनेवाली
हैं। साघकी सप्रमी, आश्चिनकौ नवमी, भाद्रपदकों पष्टी,
बैज्ञाखकी तृतीया और भाद्रपद मासकी पश्षमो--ये तिथियाँ
इन महीनों विशेष प्रशस्त मानी गयी हैं। कार्तिक शुक्ला
सप्तमीसे इस व्रत्को ग्रहण करना चाहिये । उत्तम शाककों सिद्ध
कर ब्राह्मणोंकों देना चाहिये और रश्रिपे स्वये भी शाक हो
महण करना चाहिये । इस प्रकार चार मासतक त्रत कर ब्रतका
पहस्म पारण करना चाहिये। उस दिन पञ्चगव्यसे सूर्य
अभगबान्कों स्नान कगना चाहिये और स्वयं भी पञ्चगव्यका
परादान करना चाहिये, अनन्तर केश़रका चन्दन, अगस्यके
पुष्य, अपराजित नामक धुप और पायसका चैक्य
सूर्यनारायणको समर्पित करना चाहिये । ब्राह्र्णोको भी
पायसका भोजन कराना चाहिये । दूसरे पारणमें कुशाके जल्से
भगवान् सर्यनारायणको स्नान कराकर स्वयं गोमयका प्राक्तन
करना चाहिये और श्वेत चन्दन, सुगन्धित पुष्य, अगरुका धूप
तथा गुडके अपूप नैवेद्ये अर्पण करना चाहिये और वर्धके
समाप्त होनेपर तीसरा पारण करना चाहिये। गौर सर्षपका
उब्दटन गकर भगवान् सूर्यकों स्नान कराना चाहिये। इससे
सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। फिर रक्तचन्दन, करवीस्के पुष्प,
गुग्गुल्का धूप और अनेक भक्ष्य-भोज्यसहित दही-भात
मैवेदम अर्पण करना चाहिये तथा यही ब्राह्मणोंकों भी भोजन
कराना चाहिये। भगवान् सूर्यनारायणके सम्मुख ब्राह्मणसे
पुराण-श्रवण करना चाहिये अथवा स्वयै याँचना चाहिये।
अन्तमें ब्राह्मणको भोजन कराकर पौराणिकको वस्ब-आभूषण,
दक्षिणा आदि देकर प्रसन्न करना चाहिये। पौराणिकके संतुष्ट
होनेपर भगवान् सूर्यनारायण प्रसन्न हो जते है । रक्तचन्दन,
करवीरके पुष्प, गुणुलका धूप, मोदक, पायसका नैवेद्य, घृत,
ताम्रपात्र, पुराण-अन्थ और पौराणिक --ये सब भगवान्
सूर्यको आत्यश्त प्रिय हैं। राजन्! यह शाक-सप्तमी-त्रत
भगवान् सूर्यको अति प्रिय है। इस त्रतका करनेवाला पुरुष
भाग्यदाली होता है।
(अध्याय ४७)
यो ०-9९
श्रीकृष्ण-साम्ब-संवाद तथा भगवान् सूर्यनारायणकी पूजन-विधि
राजा झतानीकने कहां--ब्राह्मणश्रेष्ठ ! भगवान्
सूर्यनारायणका माहात्य सुनते-सुनते मुझे तृप्ति नहीं हो
रही है, इसलिये साप्रमी-कल्पका आप, पुनः कुछ और
विस्तारसे वर्णन करें।
सुमन्तु पुनि बोले--राजन् ! इस विषयमें भगवान्
श्रीकृष्ण और उनके पुत्र साम्बका जो परस्पर संवाद हुआ था,
उसीका मैं वर्णन करता हूँ, उसे आप सुनें।
एक समय साम्बने अपने पिता भगवान् श्रीकृष्णसे
पूछा--'पिताजी ! मनुष्य संसारमें जन्म-प्रहणकर कौन-सा
कर्म करें, जिससे उसे दुःख न हो और मनोवाच्छित फलॉको
प्राप्त कर वह स्वर्ग प्राप्त करे तथा मुक्ति भी प्राप्त कर सके । इन
सबका आप वर्णन करं। मेरा मन इस संसारम अनेक
प्रकासकी आधि-व्याधियोंको देखकर अत्यन्त उदास हो रहा है,
मुझे क्षणमात्र भी जीनेकी इच्छा नहीं होती, अतः आप कृपाकर
ऐसा उपाय बतायें कि जितने दिन भी इस संसारमें रहा जाय,
ये आधि-व्याधियाँ पीडित न कर सकें और फिर इस संसारमें
जन्प न हो अर्थात् मोक्ष प्राप्त हो जाय ।
भगवान् श्रीकृष्णने कहा-- वत्स ! देवताओंके
प्रसादसे, उनके अनुग्रहसे तथा उनकी आराधना करनेसे यह
सब कुछ प्राप्त हो सकता है। देवताओकी आराधना ही परम
उपाय है। देवता अनुमान और आगम-प्रपाणोसे सिद्ध होते
हैं। विशिष्ट पुरुष विशिष्ट देवताकी आराधना करें तो यह