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ग्रहण करती है। वाक्‌ आदि कमेंद्ियाँ

करहत्ाती हैं और झिककी इच्छसे अपने

लिये नियत कर्म ही करती हैं, दूसरा कुछ

नहीं। झब्द आदि जाने जाते हैं और ओोत्लना

आदि कर्म किये जाते हैं। इन सबके लिये

भगवान्‌ इंकरकी गुरुतर आज्ञाका उल्स्कड्डुन

करना असम्भव है। परपरेश्वर जझिवके

झासनसे ही आकादा सर्वव्यापी होकर

समस्त प्राणियोंको अवकाश्च प्रदान करता

है, बायुतत््व प्राण आदि नामधेदोंद्वारा

हर -श्ीतरके सम्पूर्ण जगतकों धारण

करता है । अप्नितत्त्य देवताओं त्टिये हव्य

और कव्यभोजी पितरोंके लिये कव्य

पहुँचाता दै । साथ ही मनुष्योंके लिये पाक

आदिका भी कार्य करता है। जल सबको

जीवन देता है और पृथ्वी सम्पूर्ण जगत्‌कों

खदा धारण किये रहती है ¦

शिवकी आज्ञा सम्पूर्ण देघताओंके

लिये अलङ्घनीय है। उसीसे प्रेरित होकर

दैवराज हुल्‍द्र देशताओंका पालयन, दैत्योंका

दपन और तीनों सत्रेकोका संरक्षण करते हैं।

वरुणदेखव सदा जलतत््वके पाछन और

संरक्षणका कार्य सैभारूते हैं, साथ ही

दण्डनीय भ्राणियोंकों अपने पराशोड्वारा बाँध

लेते हैं। धनके स्वापी यक्षराज केर

प्राणियोको उनके पुण्यक्ते अनुरूप सदा धन

देते हैं और उत्तम बुद्धिबाले पुरुषोंक्तरे

सम्पत्तिके साथ ज्ञान भी प्रदान करते हैं।

ईशभ्रर असाधु पुरुषोंका निग्रह करते हैं तथा

शेष ज्ञिवकी ही आज्ञासे अपने पस्तकयर

पृथ्यीको धारण करते हैं। उन च्ोपकों

श्रीहरिकी तामसी सोडरमूर्लि कहा गया है, जो

जगतल्छा प्रत्यय करनेवाली है। ब्रह्माजी

शिवकी ही आज्ञासे सम्पूर्ण जगतकी सृष्टि

करते हैं लथा अपनी अन्य मूर्तियोंद्धारा पाल्‍न

और संहारका कार्य भी करते हैं। भगवान्‌

विष्णु अपनी त्रिविध मूर्तियोंद्ारा चिश्चका

पालन, सर्जन और संहार धी करते हैं।

विश्चात्मा भगवान्‌ हर भी तीन रूपोप

विभक्त हो सम्पूर्ण जगतका संहार, सृष्टि

और रक्षा करते है; काल सबको उत्पन्न

करता है। वही प्रजाकी सृष्टि करता है तथा

वही विश्वका पालन करता है। यह सब वह

महाकारूकी आज्ञासे प्रेरित होकर ही करता

है। भगवान्‌ सूर्य उन्हींको आज्ञासे अपने

तीन अँशोद्रारा जगत्‌का पालन करते,

अपनी किरणोॉड्वारा वृष्टिके लिये अदेवा ठेते

और स्वयै ही आकाशझमें मेघ नकर यरसते

हैं। चनदरभूृषण शिवका झासन मानकर ही

चन्द्रमा ओषधियॉका पोषण और

प्राणियोंकों आह्वादित करने हैं। साथ ही

देवताओंकों अपनी अमृतपयी कलाओंका

पान करने देते हैं। आदित्य, वसु, रुद्र,

अश्विनीकुपार, परुद्गण, आकादाचारी

ऋषि, सिद्ध, नागगणा, पनुष्य, मृग, पु,

पक्षी, कीट आदि, स्थावर प्राणी, नदियाँ,

समुद्र, पर्वत, वन, सरोवर, अज्भजोंसहिल वेद्‌,

सारतर, यन्त्र, यैदिकस्तोघ्र ओर यज्ञ आदि,

कालाभिसे लेकर शिवपर्यन्त भुवन, उनके

अधिपति, असंख्य ब्रद्याण्ड, उनके

आवरण, सर्तपान, भूत और भविष्य,

दिज्ञा-विटिशाएँ, क्वा आदि कालके भिन्न-

भिन्न भेद तथा जो कुछ भी इस जगते देखा

और सुना जाता है, वह सब भगवान्‌

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