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* श्रीकुष्णजन्मखण्ड *

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अतः उन्होंने सीतासे कहा--'प्रिये! इस समय | रामको असली जानकी लौटा दी। तब श्रीराम

अत्यन्त स्वादिष्ट निर्मल जल, अत्न, मनोहर व्यञ्जन

तथा सारी वस्तुं अत्यन्त शीतल है ।' यों कहकर

उन्होने फल-संग्रह किया और हर्षपूर्वक उन्हें

सीताको प्रदान किया। तत्पश्चात्‌ लक्ष्मणको देकर

पीछे स्वयं प्रभुने भोग लगाया। लक्ष्मणने वह

फल ओर जल ले तो लिया, परंतु खाया नहीं;

क्योंकि वे सीताका उद्धार करनेके लिये मेघनादका

वध करना चाहते थे। (उनको यह पता था कि)

जो चौदह वर्षतक न तो नींद लेगा ओर न भोजन

करेगा; बही योगी पुरुष उस रावणकुमार

मेघनादको मार सकेगा। इसी बीच कमललोचन

रामका दर्शन करनेके लिवे कृपानिधि अग्नि

जानकीको लेकर हर्षपूर्वक अपने आश्रमको चले

गये ओर छाया दुःखित हदयसे अग्निके पास

रहने लगी। वही छया नारायण-सरोवरमें जाकर

तप करने लगी। उसने सौ दिव्य वर्षोतक

शंकरजीके लिये घोर तपस्या कौ; तब शंकरजी

प्रकट होकर उससे बोले--' भद्रे! वर माँगो।' बह

पतिके दुःखसे दुःखी थी; अतः व्यग्रतापूर्वक

शिवजीसे बोली। उसने उस व्यग्रतामें ही

त्रिनेत्रधारी शिवजीसे "पतिं देहि" पति दीजिये

यों पाँच बार वर माँगा। तब सम्पूर्ण सम्पत्तियोंके

प्रदाता शिव प्रसन्न होकर उसे बर देते हुए बोले।

श्रीमहादेवजीने कहा--साध्वि ! तुमने व्याकुल

ब्राह्मणका वेष धारण करके वहाँ आये और | होकर “पति देहि'--पति दीजिये यों पाँच बार

कर्णकटु भविष्य-वचन कहने लगे।

कहा है; अत: श्रीहरिके अंशभूत पाँच इन्द्र तुम्हारे

अग्निदेव बोले--महाभाग राम! मेरी बात | पति होंगे। वे ही सभी पाँचों इन्द्र इस समय

सुनो और सीताकी भलीभाँति रक्षा करो; क्योकि [पाँच पाण्डव हुए हैं और वह छाया द्रौपदी-

प्राक्तन कर्मवश दुर्तिवार्य एवं दुष्ट राक्षस रावण | रूपमेँ यज्ञकुण्डसे उत्पन्न हुई है। यही छाया

सात दिनके भीतर ही जानकीको हर ले जायगा। | कृतयुगमें वेदवती, तताम जनकनन्दिनी और

भला, विधाताने जिस प्राक्तन कर्मको लिख दिया | द्वापरमें द्रौपदी हुई है; इसी कारण यह त्रिहायणी

है; उसे कौन मिटा सकता है? चारों देवताओंने | कृष्णा कहलाती है। यह वैष्णवी तथा श्रीकृष्णकी

भी यही कहा है कि दैवसे बढ़कर श्रेष्ठ दूसरा | भक्त है; इसलिये भी कृष्णा कही जाती है। वही

कोई नहीं है। पीछे चलकर महेन्द्रोंकी स्वर्गलक्ष्मी होगी । राजा

तब श्रीरामजीने कहा--अग्निदेव! तब तो | द्रपदने कन्यके स्वयंबरमें उसे अर्जुनकों दिया।

सीताको आप अपने साथ लेते जाइये और उसकी | वीरवर अर्जुने मातासे पूछा-'माँ! इस समय

छाया यहाँ रहेगी; क्योंकि पत्नीके बिना किया | मुझे एक वस्तु मिली है।' तब माताने अर्जुनसे

हुआ कर्म सभीके लिये निन्दित होता है। तब | कहा--'उसे सभी भाइयोंके साथ बाँटकर ग्रहण

अग्निदेव रोती हुई सीताकों साथ लेकर चले गये | करो।' इस प्रकार पहले शम्भुका वरदान था ही,

और सीताके सदृश जो छाया थी; वह रामके | पीछे माता कुन्तीकी भी आज्ञा हो गयौ-इसी

संनिकट रहने लगी। पूर्वकालमें रावणने खेल- | कारण पाँचों पाण्डव द्रौपदीके पति हुए। ये पाँचों

ही-खेलमें उसी छायाका हरण किया था और | पाण्डव चौदह इद्धोंमेंसे पाँच इन्द्र हैं।

श्रीरामने भाई-बन्धुओंसहित उस रावणका वध माताद्रारा भर्त्सना किये जानेपर शंकरजीने

करके उस छायाका ही उद्धार किया था। अग्नि- | मेरी माता रतिको शाप देते हुए कहा-' रति!

परीक्षाके अवसरपर जो छाया अग्निमें प्रविष्ट हुई | तुम्हारा पति शंकरकी क्रोधाग्रिसे जलकर भस्म

थी: उस छायाको अपने संरक्षणमें रखकर अग्निने । हौ जायगा । इस समय तुम शापित होकर दैत्यके

[ 63] सं° ब्र० वै° पुराण 25

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