प्रहातेजस्वी एवं महाजली कुमार रोघावेहामें
आकर गर्जना करने लगे और बहूत बड़ी
येनाके साथ युद्धके लिये डटकर खड़े हो
गये। उस समय समस्त देखताओंने जय-
जयकारका शब्द किया और देवर्षियोंने इष्ट
बाणीद्वारा उनकी स्तुति की । तब तारक और
कूपारक्छा संग्राम प्रारम्भ हआ, जो अत्यन्त
दुस्सह, महान् भयंकर और सम्पूर्ण
प्राणिर्योको भवभीत करनेवाल्त्र था | कुमार
और तारक दोनों ही श्ञक्ति-युद्धमें परम
श्रवीण थे, अतः अत्यन्त रोषावेहमें वे
परस्पर एक-दूसरेपर प्रहार करने कगे । परम
पराक्रभी वे दोनों नाना प्रकारके पैंतरे बदलते
हुए गर्जना कर रहे थे और अनेक प्रकारसे
दाव-पेंचबसे एक-दूसरेपर आघात कर रहे
थे । उस समय देवता, गन्ध और किन्नर--
सभी चुपचाप खड़े होकर वह दृश्य देखते
रहे । उन्हें परम विस्मय हुआ--यहाँतक कि
वायुका चलना चंद हो गया, सूर्यकी प्रभा
फीकी पड़ गयी और पर्वत एवं वन-
काननोंसहित सारी पृथ्वी कोप उठी । इसी
अवसरपर हिमालय आदि पर्वत खेहाभिभूत
होकर कुमारकी रक्षाके लिये वहाँ आये ।
त्ख उन सभी पर्वतोको भयभीत देखकर
ककर एबं गिरिजाके पुत्र कुमार उन्हें
सरान्तरन देते हुए बोले ।
कल्य-- "महाभाग पर्चतो !
तुमलोग खेद मत करो। तुम्हें किसी
प्रकारकी चिन्ता नहीं करनी चाहिये। मैं
आज तुप सब लोगोंकी आँखोंके सापने ही
इस पाधीका काम तमाम कर दूँगा ।' यों उन
पर्वतो तथा देवगणोक्मे ढाढ़ुस बैंधाकर
कमारने गिरिजा और द्वाम्भुको प्रणाम किया
कान्तिमती
तथा अपनी हाथमें
संर शि० पु० ( मोटा टाइप ) १९--
लिया | ज्मम्भुपुत्र कुमार महाबत्ली तथा महान्
ऐश्वर्यज्ञाल्ली तो थे ही। जब उन्होंने तारकका
तथ करनेकी इच्छासे दाक्ति हाथमें ली, उस
समय उनकी अद्भुत शोभा हुई। तदनन्तर
झकरजीके तेजसे सम्पन्न कुपारने उस
झक्तिसे तारकासुरपर, जो समस्त लोक्कोको
कष्ट ठेनेवाला था, प्रहार किया। उस
झक्तिके आधातसे तारकासुरके सभी अह्नः
छिन्न-भिन्न हो गये और सम्पूर्ण
असुरगणोंका अधिपति यह महावीर सहस्रा
धरादायी हो गचा । मुने ! सबके दैखते-
देखते वहीं कुमाएद्धारा मारे गये तारकके
श्राणापखेरूः उड़ गये। उस उत्कृष्ट वीर
तारकको महासमर ्राणरहित होकर गिरा
हुआ देखकर वीरवर कुमारने पुनः उसपर
यार नहीं किया। उस महाबली दैत्यराज
ज्ञारकके मारे जानेपर देवताओंने चह्दुत-से
असुरोंको मौतके घाट उतार दिया। उस
युद्धमें कुछ असुरोने भयभीत होकर हाथ
जोड़ लिये, कुछके दारीर छिन्न-भिन्न हो गये
और हजारों दैत्य मृत्युके अतिथि बन गये ।
कुछ शरणार्थी दैत्य अञ्जलि याँधकर "पाहि-
पाहि--रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये' यों
पुकारते हुए कुमारके दारणापन्न हो गये।
कुछ मार डाले गये और कुछ मैदान छोड़कर
आग गये। सहस्रौ दैत्य जीवनकी आशासे
भागकर पाताल्वमें घुस गये। उन सखकी
आङातै भग्र हो गयी थीं और मुखपर दीनता
छायी हुई थी।
मुनीक्षर ! इस प्रकार क्ह सारी
दैत्यसेना विनाष्ठ हो गयी । दैयगणोके भयसे
कोई भी वहाँ ठहर न सका। उस दुरात्या
तारकके पारे जानेपर सभी तलोक निष्कण्टक
हो गये और इन्द्र आदि सभी देवता