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|| है ज्ञान, साम है गान । जब वेद्‌ के

पद्यबद्ध मन्त्रों को गान विद्या से अनुप्राणित किया

गया, तो 'सामवेद' बन गया। गान का सीधा

सम्बन्ध भाव-संवेदना से है। अनुभूति की

अभिव्यक्ति में शब्दों की सामर्थ्य छोरी पड़ जाती

है । वेद अनुभूतिजन्य ज्ञान है, उसे व्यक्त करने में

शब्द शक्ति अपर्याप्त है । ऋषि ने अनुभूतिजन्य ज्ञान

को शब्दो में व्यक्त करने का प्रयास किया, किन्त

जव देखा कि पूरे प्रयास के बाद भी अभिव्यक्ति

अनुभूति के स्तर की नहीं बन सकी, तो उसने

ईमानदारी से कह दिया नैति-नेति'- "यह बात पूरी

नहीं हो सकी ।

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